श्री अजीत सिंह
(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं। इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है श्री अजीत सिंह जी द्वारा प्रस्तुत एक अनुभव पर आधारित आलेख ‘मैं अकेला रहता हूं, पर अकेलेपन में नहीं – प्रो एम पी गुप्ता…’।)
☆ आलेख – मैं अकेला रहता हूं, पर अकेलेपन में नहीं – प्रो एम पी गुप्ता ☆ श्री अजीत सिंह, पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन ☆
(हिसार में वरिष्ठ नागरिकों की हमारी संस्था वानप्रस्थ के सदस्य प्रो एम पी गुप्ता जी का 89वां जन्मदिन है। वे अकेले ही रहते हैं पर उनकी दिनचर्या सभी वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक प्रेरणा जैसी है।)
☆ गूगल बन रहा है बुढ़ापे का दोस्त – अजीत सिंह ☆
छोटे होते परिवारों और रोज़गार के लिए दूर शहरों और विदेशों में जाने की नई पीढ़ी की मजबूरी के कारण अक्सर देखने में आता है कि माता-पिता बुढ़ापे में अकेले ही रह जाते हैं। स्थिति उस समय और भी विकट ही जाती है जब पति-पत्नी में से कोई एक चल बसे।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के पूर्व प्रोफेसर 87 वर्षीय डॉ एम पी गुप्ता 12 साल पहले पत्नी के स्वर्गवास होने के बाद घर में अकेले रहते हैं लेकिन अकेलापन महसूस नहीं करते। उन्होंने इसका एक ढंग निकाल लिया है। वे रोजाना 4 घंटे घर में रखे कंप्यूटर पर काम करते हैं। वे ब्रॉडबैंड सुविधा के साथ यह समय इंटरनेट पर अपनी मनमर्जी की जानकारी ढूंढने और उसे पढ़ने में लगाते हैं।
” मैं फेसबुक, वॉट्सएप जैसे सोशल मीडिया साइट पर अपना समय बर्बाद नहीं करता। वहां लोग ऊट-पटांग संदेश भेजकर अपना रौब जमाना चाहते हैं। अक्सर तो फॉरवर्ड किए गए संदेशों की भरमार रहती है। यह सब कुल मिलाकर बहुत बोरिंग होता है।
प्रो गुप्ता का कहना है कि गूगल का मामला अलग है हालांकि ये सभी इंटरनेट या ब्रॉडबैंड पर आधारित हैं।
“गूगल आपको आपकी मर्ज़ी की सूचना खोजने और आनंदित होने की सुविधा देता है। में चाहूं तो नोबेल पुरस्कारों के बारे उनके घोषित होते ही विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकता हूं। या फिर मेरी हॉबी फोटोग्राफी के बारे सब कुछ जान सकता हूं। चाहूं तो अपनी पसंद के पुराने पंजाबी गाने सुन सकता हूं और गीतों के बोल भी प्राप्त कर सकता हूं”।
डॉ गुप्ता ने बताया कि उन्होंने अपने पैतृक कस्बे जगराओं और वहां की मशहूर हस्ती लाला लाजपतराय के बारे में रोचक जानकारी हाल ही में गूगल से ही प्राप्त की।
“मुझे यह जानकर खुशी मिली कि लाला लाजपतराय जगराओं से हिसार आए थे वकालत के लिए और मैं जगराओं से हिसार आया था नौकरी के लिए और यहीं का होकर रह गया।
“समाचार माध्यमों से या फिर मित्रों से बातचीत में अक्सर कुछ सवालों के जवाब पूरे नहीं मिल पाते। गूगल पर जाकर मैं उनके जवाब ढूंढ लेता हूं। ऐसा करने पर मुझे एक तरह की संतुष्टि और आनंद मिलता है। मुझे ऐसा भी लगता है कि काश यह सुविधा उस वक़्त उपलब्ध होती जब मैं यूनिवर्सिटी में पढ़ाता था। उस समय जानकारी इकट्ठा करने के लिए लाइब्रेरियों के चक्कर लगाने पढ़ते थे। कई हफ्ते लग जाते थे। अब वही काम एक दो घंटे या फिर एक दो दिन में हो जाता है।
पहले पुस्तक ढूंढ़ना, फिर जानकारी ढूंढ़ना और फिर हाथ से नोट लिखना या संबंधित पृष्ठों की फोटो कॉपी लेना, यह सब काफी लंबी व ऊबाऊ प्रक्रिया थी। आज तो गूगल पर जानकारी सर्च करना है और फिर उसका कॉपी-पेस्ट लेना है। सीधा प्रिंट ले लो या पेन ड्राइव में डाल लो।
डॉ गुप्ता कहते हैं कि वरिष्ठ नागरिकों को कंप्यूटर व स्मार्टफोन की टेक्नोलॉजी अवश्य सीखनी चाहिए। यह बहुत ही आसान है। गूगल का भरपूर उपयोग करना चाहिए मगर फेसबुक और वॉट्सएप की लत नहीं डालनी चाहिए।
गूगल आपका अकेलापन दूर कर देगा। आप बुढ़ापे का आनंद ले सकेंगे, अपनी शर्तों पर, मन चाहे ढंग से।
डॉ गुप्ता की राय है कि बच्चों को भी वॉट्सएप और फेसबुक की बजाय गूगल के उपयोग की तरफ मोड़ना चाहिए। इसमें अध्यापकों व अभिभावकों की अहम भूमिका होगी।
“जिसकी हमें ज़रूरत है , हम वही जानकारी लेंगे। किसी की हम पर थोंपी जा रही जानकारी क्यों लें?”
“बुढ़ापे में अकेलापन बहुत से लोगों को परेशान करता है। इसे दूर करने के लिए टेक्नोलॉजी की मदद ली जा सकती है। समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन ये सभी एकतरफा संवाद करते हैं। अपनी सुनाते हैं, हमारी नहीं सुनते। हमारा सारा समय भी खा जाते हैं। गूगल आज्ञाकारी पुत्र है। जब कहोगे, तभी हाज़िर होगा, जो मांगोगे वही ला कर देगा। आजकल मैं गूगल की मदद से अंगदान, देहदान के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहा हूं”।
डॉ एम पी गुप्ता 1996 में प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए थे। बेटा सेना में कर्नल है और दो बेटियां जयपुर और दिल्ली में अच्छी तरह अपनी अपनी घर गृहस्थी चला रही हैं। बातचीत होती रहती है, मिलना जुलना समय समय पर ही हो पाता है, पर यह कोई समस्या नहीं है।
” मैं अकेला रहता हूं, पर अकेलेपन में नहीं। कुछ साथी मिलते रहते हैं, और सबसे बढ़िया दोस्त गूगल है जो हरदम मेरे साथ ही रहता है”।
डॉ गुप्ता की ज़िन्दगी यूं तो सही ढंग से चली पर 2009 में पत्नी को ब्रेन कैंसर हुआ तो कष्ट भी उठाना पड़ा। 2012 में उनका स्वर्गवास हुआ और तबसे डॉ गुप्ता अकेले ही रहते हैं।
“बुढ़ापे की सही काट यह है कि आदमी अपनी पसंद के किसी रचनात्मक शौक को अपना ले। किसी चीज़ से इश्क करले; पेंटिंग, बागबानी, ज्ञानवर्धन, गायन, लेखन,शेरो-शायरी, किसी से भी। दोस्तों की मंडली भी ज़रूरी है। यह मानसिक सेहत के लिए अति आवश्यक है। खुशी एक मानसिक अवस्था मात्र है। ज़िन्दगी में न ऊंचे पहाड़ हैं न गहरी घाटी। बस छोटे मोटे उतार चढ़ाव हैं”।
डॉ गुप्ता बुधवार व शुक्रवार को वरिष्ठ नागरिकों की संस्था वानप्रस्थ की बैठकों में नियमित रूप से जाते हैं। सेक्टर-15 में उनके कई पुराने मित्र रहते हैं जिनके साथ वे सुबह शाम की सैर भी करते हैं और गपशप भी।
“गपशप बहुत ज़रूरी है, हंसना हंसाना ज़रूरी है और मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है।
उम्र की परवाह न करें। मस्त रहें।
स्व. अटल बिहारी बाजपेयी जी की कविता याद रखें,
‘उम्र का हरेक दौर मज़ेदार है
अपनी उम्र का मज़ा लीजिये।
ज़िंदा दिल रहिए जनाब,
ये चेहरे पे उदासी कैसी,
वक्त तो बीत ही रहा है,
उम्र की ऐसी की तैसी…!
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© श्री अजीत सिंह
पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन हिसार।
मो : 9466647037
(लेखक श्री अजीत सिंह हिसार से स्वतंत्र पत्रकार हैं । वे 2006 में दूरदर्शन केंद्र हिसार के समाचार निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।)
≈ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈