श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चित चोर और मन का चोर…“।)
अभी अभी # 591 ⇒ चित चोर और मन का चोर श्री प्रदीप शर्मा
चोर वह, जो कुछ चुराकर ले जाए। चित चोर वह, जो सब कुछ चुराकर ले जाए, हम संसारी नहीं चाहते, हमारा कोई सब कुछ चुराकर ले जाए, इसीलिए सदा भयभीत रहते हैं।
भयभीत शब्द भय और भीत को मिलाकर बना है। भय अगर डर है तो भीत एक दीवार है। भीत का ही अपभ्रंश भित्ति यानी दीवार है। मराठी में तो भय ही भित्ती है। ।
हमारे पास ऐसा क्या है, जिसे चोर ले जाएगा। आजकल साइबर क्राइम का जमाना है। आपके पास अगर कुबेर का खजाना भी है तो वह केवल एक क्लिक से साफ हो सकता है। पर्स चोर, चैन चोर और चारा चोर तो आज भी बाजार में सरे आम घूमते हैं। चोर वही जो पकड़ा जाए, बाकी सब सेठ साहूकार।
घरों में तरह तरह के सेफ्टी लॉक लगे हुए हैं। टॉयलेट को छोड़ सभी जगह सीसीटीवी मौजूद है। कामवाली पर भी निगाह रखी जा रही है। फिर भी चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से ना जाए। ।
ये सब तो बाहर के चोर हैं। अब जरा अंदर के चोर की भी बात हो जाए। हम तो केवल मन के चोर की ही बात कर रहे हैं, कहने वाला तो यहां तक कह गया है;
तोरा मन बड़ा
पापी सावरिया रे
मिलाये छलबल
से नजरिया रे …
विज्ञान के पास सिर्फ माइंड है और ब्रेन है। आप चाहें तो मन को माइंड और ब्रेन को दिमाग कह सकते हैं। हो सकता है जिसका शातिर दिमाग हो, उसे ही उसकी प्रेमिका ने पापी कह दिया हो।।
ई मन चंचल
ई मन चोर,
ई मन शुद्ध ठगहार।
मन-मन करते सुर-नर मुनि जहँड़े, मन के लक्ष दुवार॥
यह मन चंचल है, यह मन चोर है और यह मन केवल ठगहार है। मन पर विचार और चर्चा करते-करते देवता, मनुष्य और मुनि लोग भी मन ही की धारा में बह गए; क्योंकि मन को निकल भागने के लिए लाखों दरवाजे हैं।
ईमेल और gmail के जमाने में कौन भला मन के मैल की बात करता है। वैसे भी मेल और मैल में केवल एक मात्रा का ही तो फर्क है। अगर मैल की सिर्फ एक मात्रा घटा दी जाए, तो हमारा आपस में मेल हो जाए। कितना आसान है। ।
नजरें मत चुराओ। चुराओ तो किसी का दिल चुराओ। अगर डाका डालने का शौक है तो डाका भी किसी के दिल पर ही डालो। बड़ा फर्क है अंग्रेजी के शब्द cheat और हिंदी के चित में। चित चोर अगर किसी को cheat भी करता है, तो उसे मालामाल कर देता है और शायद इसीलिए उसे छलिया, रसिया और मन बसिया कहते हैं। जो चित चोर है, वही रणछोड़ है और वही माखनचोर भी है..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈