ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ अविराम 1111 – श्री संजय भारद्वाज ☆ हेमन्त बावनकर ☆

हेमन्त बावनकर

ई-अभिव्यक्ति: संवाद ☆ अविराम 1111 – श्री संजय भारद्वाज ☆ हेमन्त बावनकर ☆

अविराम 1111 👈 एक शब्द और एक अंक मात्र ही नहीं, अपने आप में एक वाक्य भी है। “अविराम 1111″ इस वाक्य की पूर्णता में परम आदरणीय श्री संजय भरद्वाज जी का अविराम चिंतन, अध्यात्म, संवेदनशीलता और हमारे प्रबुद्ध पाठकगण का प्रतिसाद एवं स्नेह है जिसने श्री संजय जी की अविराम लेखनी को सतत ऊर्जा प्रदान की है।

ई-अभिव्यक्ति मात्र एक मंच है जिसके माध्यम से प्रतिदिन प्रबुद्ध लेखक गण अपने संवेदनशील अथाह सागर रूपी हृदय – मानस से शब्दों को पिरोकर अपनी अविराम लेखनी से सकारात्मक सत्साहित्य आप तक सम्प्रेषित करने का प्रयास करते हैं। ई-अभिव्यक्ति का अस्तित्व श्री संजय भारद्वाज जी जैसे सुहृदय लेखक एवं आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों के बिना असंभव है।

आज जब अविराम 1111 के इतिहास के पन्नों में विगत अविराम 1111 और भविष्य के अविराम पृष्ठों को पढ़ने का प्रयास करता हूँ तो पाता हूँ कि मुझे श्री दीपक करंदीकर जी (महाराष्ट्र साहित्य परिषद, पुणे) के माध्यम से अप्रैल 2019 के प्रथम सप्ताह में श्री संजय भारद्वाज जी एवं उनके साहित्यिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विश्व से सम्बद्ध होने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उनसे मोबाईल पर बात हुई, आगे भी बात होती रही किन्तु, उनसे मिलने का संयोग 14 जून 2022 की शाम कैप्टेन प्रवीण रघुवंशी जी (अनुवाद विशेषज्ञ एवं हिंदी/संस्कृत/अंग्रेजी/उर्दू के ज्ञाता) के निवास पर श्री बालेन्दु शर्मा दाधीच जी (प्रसिद्ध प्रौद्योगिकीविद, निदेशक-स्थानीय भाषाएँ और सुगम्यता, माइक्रोसॉफ़्ट) एवं श्री अश्विनी कुमार जी (पूर्व कार्यक्रम अधिकारी, मुम्बई दूरदर्शन) के साथ परम पिता परमेश्वर ने निर्धारित किया हुआ था।  तीन वर्षों से मोबाईल पर चर्चा से जो मस्तिष्क में छवि बनी थी वह साकार हो गई।  एक संवेदनशील, सुहृदय साहित्यकार गुरु सदृश्य मित्र की जैसी कल्पना की थी शत प्रतिशत उनको वैसा ही पाया।

संयोगवश आपसे ई-अभिव्यक्ति  में प्रकाशित संजय भारद्वाज जी की रचनाओं के कुछ महत्वपूर्ण लिंक्स साझा करना चाहूंगा जिनपर क्लिक कर आप उनकी रचनाएँ पढ़ सकते हैं –

प्रथम प्रकाशित आलेख 16 अप्रैल 2019 >> 

👉 हिन्दी साहित्य – आलेख – ☆ बिन पानी सब सून ☆ – श्री संजय भारद्वाज 

संजय उवाच का प्रथम प्रकाशित आलेख 15 जून 2019 

👉 हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ संजय उवाच – #1 ☆ – श्री संजय भारद्वाज – 

संजय उवाच के स्तरीय साहित्य से मानस बना कि – भला प्रतिदिन जीवन के महाभारत से जूझते हुए संजय उवाच साप्ताहिक कैसे हो सकता है। श्री संजय जी से अनुरोध किया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया और संजय दृष्टि शीर्षक से आज के संजय की दृष्टि ने अपनी रचनाओं को आपसे प्रतिदिन अविराम साझा करना प्रारम्भ कर दिया…  एक भगीरथ प्रयास की तरह …  

संजय दृष्टि का प्रथम प्रकाशित आलेख 25 जुलाई 2019 से अविराम 

👉 हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि  – हरापन ☆ – श्री संजय भारद्वाज –

मुझे आपसे यह भी साझा करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि ई-अभिव्यक्ति ने विगत 7 अगस्त 2022 को संजय उवाच का 150वां अंक प्रकाशित किया है।

👉 हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ संजय उवाच # 150 ☆ अतिलोभात्विनश्यति – 2☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

अध्यात्म, संवेदनशील चिंतन और साहित्य को हम अपने जीवन से विलग नहीं कर सकते और श्री संजय जी की परिकल्पना के अनुरूप साहित्य की विभिन्न विधाओं, रंगमंच, समाजसेवा, प्रवचन को साकार करने हेतु उनके हिंदी आंदोलन परिवार, आपदां अपहर्तारं, जाणीव – ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स के सकारात्मक प्रयासों को साधुवाद तो दे ही सकते हैं. इस यज्ञ में श्री संजय भारद्वाज जी की अर्धांगिनी परम आदरणीया सौ सुधा भारद्वाज जी को साधुवाद दिए बिना यह यज्ञ अधूरा होगा।

श्री संजय भारद्वाज जी से ई-अभिव्यक्ति की अविराम अपेक्षाएं हैं जिसके लिए हम समय समय पर आपसे संवाद जारी रखेंगे और उनके लिपिबद्ध विचार आप सबको सम्प्रेषित करते रहेंगे।   

श्री संजय भारद्वाज जी की लेखनी पर माँ सरस्वती जी का आशीर्वाद ऐसा ही बना रहे, यह यात्रा नवीन और उच्चतम आयाम स्पर्श करती रहे, उनकी लेखनी अविराम चलती रहे… और आप सभी का प्रतिसाद-स्नेह प्राप्त होता रहे… बस इसी कामना के साथ 

आपका अभिन्न 

हेमन्त बावनकर,

पुणे (महाराष्ट्र)

10 अगस्त 2022

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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हिन्दी साहित्य – संवाद ☆ अविराम 1111 – संजय दृष्टि – पाठकों की प्रतिक्रियाएं – प्रतिसाद … ☆

☆ हिन्दी साहित्य – संवाद ☆ अविराम 1111 – संजय दृष्टि – पाठकों की प्रतिक्रियाएं – प्रतिसाद … ☆

श्री संजय भारद्वाज जी के लेखन-प्रकाशन के 1111 दिन पूरे होने पर  पाठकों की प्रतिनिधि प्रतिक्रियाएँ-

[1] सुश्री वीनु जमुआर

बचपन के दिनों में, प्रहर की रात्रिबेला में, सोने से पूर्व प्रतिदिन दादी-नानी द्वारा सुनाई  गयी  कहानियाँ, लोककथाएँ, लोकगीत इत्यादि ज्ञान तथा विवेक सिंचित व्यक्तित्व को गढ़ने का मार्ग होती थीं।

सर्वविदित है कि प्रतिदिन का प्रयास  पत्थर पर भी लकीरें उकेरता है। निरंतरता साँस की तो जीवित रहने का अहसास, संवेदना सृजन की तो मष्तिष्क के चैतन्य रहने का विश्वास!

समय बदला, गति बदली, संयुक्त का एकल में परिवर्तन हमने देखा। ऐसे समय में सृजनकारों की जिम्मेदारी बढ़ी।

आइए, आज बात करें एक ऐसे युवा मननशील, मनीषी रचनाकार की जो न केवल अनुभूतियों की बात कहता है बल्कि इन्हें अभिव्यक्त करने की भाषा पर भी अपने विचार व्यक्त करता है। कहता है, ‘अपनी भाषा में अभिव्यक्त होना अपने अस्तित्व को चैतन्य रखना है।’

अध्यात्म को देह, मन और प्राण के चारों ओर का दर्शन मानने वाला, सकारात्मक सोच से लबालब भरा हुआ, लक्ष्य सिद्ध होने तक अर्जुन-सी दृष्टि रखने वाला, साहित्य की विविध विधाओं के पृष्ठों पर अपनी कलम से अनमोल जीवन-सूत्रों पर विचार-विमर्श की थाली परोसता है तो राष्ट्रकवि दिनकर जी की पंक्तियों में  हृदय कह उठता है – ‘कलम आज उनकी जय बोल।’

सत्संग की वाणी हो, या शिव का ओंकारा-  श्रव्य, दृश्य, कहन, लेखन, रंगमंच से जुड़ाव, मनुष्य जीवन के जटिल राग को आसान बनाने में सहायक होने की प्रतीति कराते हैं। प्रकृति के प्रति प्रेम, पर्यावरण के प्रति चिंतित, पंछियों की उड़ान, गौरैया पर कार्यक्रम, साहित्यकारों का सम्मान, संजय उवाच के माध्यम से भारतीय दर्शन, यहाँ की अनमोल संस्कृति, परंपरा को जीवित रखने का प्रयास करता सृजन पथ का अथक पथिक!

‘साहित्यकार के मन का दर्पण होता है उसका लेखन, पाठक की दृष्टि उसे विस्तार देती है, कालजयी बनाती है’, कहने वाले माँ वागेश्वरी के वरद पुत्रों में से एक विशेष- श्री संजय भारद्वाज जी को अंतस से शुभकामनाएँ!

1111 की निरंतरता भागीरथी की भाँति बनी रहे। धारा संग आदरणीय श्री हेमंत बावनकर जी का साथ बना रहे। रचनाकार एवं प्रकाशक का यह स्तुत्य प्रयास आलोकित होता रहे। मनः पूर्वक एक पाठिका का आभार, सदिच्छाएँ।

 – वीनु जमुआर, पुणे

[2] सौ.शशिकला सरगर

आदरणीय संजय भारद्वाज सर जी की लेखन यात्रा को 10 अगस्त 2022 के दिन 1111 दिन पूरे हो रहे हैं। गौरवान्वित करनेवाले इस रचना कार्य के लिए हार्दिक अभिनंदन।

इस आनंद यात्रा का साक्षी बनाने का  परम सौभाग्य मुझे भी मिला। सर, लेखन मानो आपके जीवन की धड़कन है । एक छोटा-सा शब्द, पंक्ति ,सुभाषित को लेकर आप एक गहरा तत्वज्ञान प्रस्तुत करते हैं। मस्तिष्क में रोज नया विचार डालकर आप पाठकों को अंतर्मुख होने के लिए बाध्य करते हैं, ‘व्यष्टि से समष्टि’ तक ले जाते हैं । आपकी लेखनी पाठकों के मन में  रोज नई ऊर्जा, नई चेतना को जगाती है। मानव की व्यथा, उपेक्षितों के लिए आस्था, मानव की प्रकृति के प्रति अनास्था, ये आपके लेखन के विषय रहे हैं।संवेदनशीलता, मानवीयता, चिंतनशीलता को अभिव्यक्त करनेवाले विचार ,आपकी संस्कृत प्रचुर शैली पाठकों को अभिभूत करती है।

आपकी यह लेखन यात्रा निरंतर चलती रहे , यही शुभकामना है।

 – सौ.शशिकला सरगर, कोल्हापुर

[3] सुश्री ऋता सिंह

1111 ‘संजय उवाच’ और ‘संजय दृष्टि’ के लेखन और प्रकाशन हेतु संजय भारद्वाज जी को हार्दिक बधाइयाँ।

विभिन्न विषय ,जीवन मूल्य और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा व मार्गदर्शन निरंतर 1111 दिन बनाए रखना न केवल एक निराली सोच है बल्कि यह उच्च स्तरीय तपस्या है, साधना है।

अपने अंतस की यात्रा, संसार के बीच बैठकर एकाग्रचित्त से करते रहना न केवल अपने धैर्य को जानना है बल्कि स्वयं की क्षमता, ज्ञान की ऊँचाई की परिधि को जानना भी है। साथ ही सरल बोधगम्य शब्दों में अभिव्यक्ति इसकी सर्वोच्च पराकाष्ठा है।

हम सभी पाठक भाग्यशाली हैं जो निरंतर संजय जी के लेखन के प्रसाद का आनंद पिछले 1111 दिनों से प्राप्त करते रहे, मार्गदर्शन का लाभ उठाते रहे। ईश्वर से प्रार्थना है कि रचनाकार आयुष्मान हो तथा समाज के मानसिक विकास के उत्थान हेतु इस क्षेत्र में निरंतर कार्यरत रहे।

 – ऋता सिंह, पुणे

[4] श्री कृष्णमोहन श्रीवास्तव

संजय भारद्वाज जी सरल, सहज और गंभीर स्वभाव के व्यक्ति हैं और उनका यह चरित्र उनके लेखन में भी झलकता है। संजय जी के लेखन और कविताओं में जहाँ जनमानस की आम जिंदगी और उसकी विषमताएँ, हिंदुस्तान की धार्मिक परम्परा, रीति रिवाज और उसकी विसंगतियां आदि प्रतिबिंबित होती हैं, वहीं उनमें जीवन का पाठ / फलसफा / दर्शन भी झलकता है। यह कहा जाता है कि पढ़ना, घड़े का भरना और लिखना उसके छलकने के समान होता है। लेकिन मेरा यह मानना है कि संजय जी का लेखन मूलतः सघन अनुभूतियों / चेतना का व्योम से सीधे ‘डाउनलोड’ होने की प्रक्रिया के लगभग जैसा है! इसके साथ ही चूंकि वे अपने लेखन को रोजमर्रा की जिंदगी में जीते भी हैं, अतः इनकी रचनाओं को मौलिक, प्रामाणिक और प्रासंगिक तो होना ही है। संजय भारद्वाज जी को ई- अभिव्यक्ति के 1111 दिन पूरे होने के अवसर पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ एवं साधुवाद। आशा है कि ई-अभिव्यक्ति की यह धारा यूँ ही अविरल बहती रहेगी।

 – कृष्णमोहन श्रीवास्तव, पुणे

[5] सुश्री अमिता अंबष्ट

विद्यार्थी जीवन में मैंने पढ़ा था कि रीतिकाल के प्रतिष्ठित कवि ‘बिहारी’ के दोहे ‘गागर में सागर ‘हैं। लंबे समय से मैं श्री संजय भारद्वाज जी की रचनाओं का रसपान करती आ रही हूँ और उनका लेखन मुझे गागर में सागर-सा ही प्रतीत होता है।यथार्थ की धरा पर उपजी अनगिन भावों की त्रिपथगा, निरंतर प्रवहमान।

मैं अभिभूत हूँ, सृजन के नित्य नए आयाम रचने वाले रचनाकार की रचनाओं को पढ़कर। फाल्गुन के बासंती रंगों से सजी उनकी हर विधा में लिखी गई रचनाएँ मुझे मुग्ध करती हैं।

संजय भारद्वाज जी की रचनाएँ छोटी- छोटी चीजों पर पैनी दृष्टि, उनके भावों का प्रतिबिंब हैं, मन की भीतरी तहों को स्पर्श करती हुई, कभी कविताओं के रूप में अपनी इंद्रधनुषी छटा बिखेरते हुए तो कभी लघुकथाओं और आलेखों के माध्यम से आम मानव जीवन को आम से खास बनाते सरल-सहज शब्दों में सहेजती हुई। उनकी बहुआयामी प्रतिभा होली के विविध रंगों की भाँति स्वयं से स्वयं का साक्षात्कार करवाती दिखती है, एकदम सजीव, अपने  रंगों द्वारा समाज को व्यापक संदेश देती हुईं।

संजय जी को ई-अभिव्यक्ति के साथ 1111 पूरे करने की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ। आपकी लेखनी की प्रखरता से हम सब सदैव समृद्ध होते रहें, यही आकांक्षा है।

 – अमिता अंबष्ट, रांची, (झारखंड)

[6] सुश्री कंचन त्रिपाठी

चित्रकार, शिल्पकार, शब्दकार कैसे व्यक्त करुँ एक शब्द में। अपने शब्दों में रंग भर कर पाठको के मानसपटल के कैनवास पर सजाने वाला चित्रकार या बिना छेनी की चोट, बिना हथौड़ी की मार, बिना किसी औजार के शब्दो के सामर्थ्य को दर्शाते हुए शब्दों से अपने पाठकों के हृदयपटल पर न जाने कितने सपने गढ़ देने वाला कुशल शिल्पकार!

जीवन की विसंगतियो को, काव्य से गद्य तक की यात्रा को एकरसता में पिरोने की दक्षता, शब्दों में अर्थ ढूँढ़ते हुए सामंजस्य और हल का पता देने वाले श्री संजय भारद्वाज जी एक उत्तम कोटि के साहित्य-शिल्पी हैं I ईश्वर से प्रार्थना है, आपका साहित्य सृजन हिन्दी साहित्य को समृद्ध करता रहे I 

 – कंचन त्रिपाठी, पुणे

[7] सुश्री रेखा दिवाकर सिंह

संजय भारद्वाज जी के लेखन में सम-सामयिकता के साथ सहज अभिव्यक्ति व प्रेरणा का अभूतपूर्व संगम देखने को मिलता है। बेहद सुदृढ़ लेखन, विचारों के आदान प्रदान में सहजता,  स्वाभाविकता तथा सामान्यता का-सा एहसास होता है। सामान्य व्यक्ति भी उनके लेखन से जुड़ाव अनुभव करता है। उनकी अभिव्यक्ति समाज के हर वर्ग को उजागर करती है। बेहतरीन शब्द संपदा, सुगठित लेखन-शैली एवं भाषा का सुरुचिपूर्ण प्रवाह उनके लेखन में विशिष्ट है। सामाजिक चेतना का ब्यौरेवार विवरण लेखन को और अधिक सुस्पष्ट एवं सहज बनाता है। उनकी दृष्टि शोधपरक है। उनका वस्तुओं को देखने का नजरिया आम लोगों से बिल्कुल ही अलग है। संजय जी एक साधारण-सी बात को अपने गहन विश्लेषण से विशिष्ट बना देते हैं। आपके लेखन में गंभीरता के साथ-साथ हास्य विनोद की झलक भी यत्र-तत्र दिख ही जाती है। आपकी रचनाएँ हमें सोचने को मजबूर कर देती हैं कि जिन बातों को हम इतना सरल समझते हैं, वे वास्तव में कितनी गहनता धारण किए हैं। संजय जी के बारे में कुछ भी कहना गागर में सागर भरना जैसा है। कहने को इतना कुछ है कि कुछ न कुछ छूट ही जाता है। ‌शेष  फिर..।

 – रेखा दिवाकर सिंह, संयुक्त निदेशक (राभा.), रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन, पुणे

[8] डॉ रमेश गुप्त ‘मिलन’

संजय भारद्वाज जी सम-सामयिक हिंदी साहित्य के मूर्धन्य हस्ताक्षर हैं। आप कवि, लेखक, नाटककार, रंगकर्मी,समीक्षक, बहुआयामी व्यक्तित्व के साहित्यकार हैं। आपकी ई-अभिव्यक्ति की रचनाओं की यात्रा के हम साक्षी रहे हैं। आपकी रचनाएँ ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायक, सार्थक एवं वसुधैव कुटुंबकम् की भावनाओं से ओतप्रोत हैं।

अध्यात्म से संबंधित रचनाएँ आत्मानुभूति से परिपूर्ण हैं जो संग्रहणीय हैं और साहित्य की अमर धरोहर हैं।

ई अभिव्यक्ति के विशेष परिशिष्ट के प्रकाशन के अवसर पर संजय भारद्वाज जी को हार्दिक बधाई -शुभकामनाएँ।

 –  डॉ रमेश गुप्त ‘मिलन’, पुणे

[9] सुश्री अलका अग्रवाल

यह हम सब के लिए अत्यंत हर्ष का विषय है कि आदरणीय संजय जी जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं तथा लेखक, कवि, प्रकाशक, नाटककार, संचालक, वार्ताकार, निष्णात वक्ता जैसी अनेक भूमिकाओं को सफलतापूर्वक निभाते हैं, उनके 10 अगस्त 2022 को 1111 दिन दैनिक लेखन और दैनिक प्रकाशन के पूर्ण हो जाएँगे।  उनको आत्मिक बधाई व अभिनंदन। संजय जी का लेखन इतना उत्कृष्ट है कि हम सब को चिंतन, मनन व मंथन करने पर विवश करता है। कभी-कभी तो आप बड़ी बात को भी चंद शब्दों में इतनी सरलता से कह जाते हैं कि गागर में सागर वाली उक्ति चरितार्थ हो जाती है। आपका लेखन रोज़मर्रा के व्यवहार या क्रिया-कलाप को लेकर शुरू होता है और अंत में बहुत गूढ़ बात कह जाते हैं। आप हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं तथा हम सबके गुरु हैं। आपकी लेखनी नित यूँ ही चलती रहे, हमें नित नवीन लेखन पढ़ने को मिलते रहें।  माँ सरस्वती का वरद हस्त आप पर सदैव बना रहे, यही कामना है।

 – अलका अग्रवाल, पुणे

[10] सुश्री विनीता सिन्हा

विगत दो-ढाई  वर्षों से जब से संजय जी की रचनाओं से रुबरू होने का मौका मिला है, उनसे एक अलग ही-सा अपनेपन का एहसास होता महसूस करती हूँ। तक़रीबन हर एक रचना को पढ़ने के बाद लगता है कि यही तो मैं सोच रही थी, आपने तो मेरे मन की बातों को शब्दों का रूप दे दिया और इसलिए मैंने पहले भी उनको लिखा था कि ‘लेखक की लेखनी जब पाठक के मन को कैद कर ले तो एक अलग ही तरह की आनन्द की अनुभूति होती है और यह हर रचनाकार के लिए  संभव भी तो नहीं।’

कभी-कभी कुछ बहुत ही गहरी, बात छोटी सी लकीर खींच कह जाते हैं आप, तब सोचने पर खुद को विवश पाती हूँ। कुछ वैसी ही स्थिति आपकी रचना ‘नींद’ पढ़ कर हुई । हरेक रचना बहुत सोचने- मनन करने के बाद लिखी गई सी प्रतीत  होती है। कहीं आध्यात्मिक तो कहीं सामाजिक, अलग- अलग विधाओं से जुड़ी रचनाएँ!

जीवन दर्शन से भरपूर आपकी और भी ढेरों रचनाएँ पढ़ डाली मैंने। जो भी मिला, पढ़ा। अब हाल यह है कि सुबह नींद खुलते ही पहले मोबाईल पर हाथ जाता है कि आज क्या नया लिखा है आपने? धुँधली आँखो से पहले वह पढ़ लेती हूँ, बाकी सारी चीजें बाद में। 

मेरे पास शब्दों के पुष्पगुच्छ नही हैं संजय जी, जो आपके लेखन पर कुछ गहराई से लिख भेजूँ । बस जो महसूस करती हूँ, आपकी रचनाओं से जो गहन चिंतन करने की लालसा पाती हूँ, वही लिख रही हूँ ।

आप नित नये आयाम तय करते जाएँ, यही ईश्वर से प्रार्थना है…और हमें एक से एक आपकी गढ़ी रचनाओं से रूबरू होने का मौका मिलता रहे।

 – विनीता सिन्हा, मुंबई

[11] सुश्री स्वरांगी साने

दैनिक लेखन, दैनिक प्रकाशन की यात्रा के 1111 दिन पूरे कर लेना, अपने आपमें बहुत बड़ी बात है। यह बात और बड़ी और महत्वपूर्ण और अधिक उल्लेखनीय इसलिए हो जाती है कि यह केवल हर दिन का लेखन नहीं है, हर दिन का महत्वपूर्ण लेखन है। हर दिन पाठकों को मनन-चिंतन करने के लिए कोई सूत्र देना, आशावाद का संचार करना और सबको ‘संजय’ (जी की) दृष्टि प्रदान करना जिम्मेदारी वाला कार्य है। इस जिम्मेदारी को जवाबदारी से संभालने का माद्दा जिसके पास होता है वही इतनी लंबी अर्थपूर्ण यात्रा कर सकता है। यह यात्रा अनंत क्षितिज का विस्तार पाए।

 – स्वरांगी साने, पुणे

[12] श्री दिलीप धोंडे

ईश्वर ने आदरणीय संजय जी को शब्द प्रतिभा की सौगात देकर आपके द्वारा दैनिक लेखन के माध्यम से हम पाठकों को नित्य नया उपहार भेजा है।

आपकी अभिव्यक्ति हमें उस विषयवस्तु के अलग पहलुओं से परिचित करवाती है। अनेक बार तो नित्य आसपास घटित होने वाली घटनाओं पर आपका सटीक और समर्थक विश्लेषण मन को छू लेता है।

आपका लेखन सीधे आँखों से मन में उतर जाता है। आपके लेखन में एक संवेदनशील लेखक हमेशा दिखाई देता है।

माँ सरस्वती की उपासना आपके कर कमलों द्वारा इसी तरह निरंतर होती रहे और हम प्रसाद स्वरूप अभिव्यक्ति द्वारा लाभान्वित होते रहें।

दैनिक लेखन और दैनिक प्रकाशन की आपकी यात्रा के 1111 दिन पूर्ण होने पर हार्दिक शुभेच्छा।

 – श्री दिलीप धोंडे, पुणे

[13] डॉ. लतिका जाधव

संजय जी का अभिनंदन। ई-अभिव्यक्ति में अपनी कलम से समाज, अध्यात्म, विज्ञान, साहित्य और पर्यावरण जैसे अनेक जीवन विषयों से जुड़े मुद्दों पर लिखना आपकी विशेषता रही है। आपकी कविताओं में विविधता है। जीत के लिए संघर्ष, परिश्रम और अनुशासन का संदेश युवाओं को प्रेरणा देता है।

जीवन मूल्यों पर सकारात्मक चिंतन, समस्याओं पर चिंता, अथक प्रयास से मिलने वाले यश का गुणगान जैसे नीति तत्व आपके लेखन का अटूट हिस्सा हैं।

आपकी हिंदी भाषा प्रवाही है। संस्कृत प्रचुर हिंदी आपकी विशेषता दिखाई देती है। फिर भी रचनाओं में उभरती अनुभूतियों से यह कविताएँ पाठकों को सरलता से प्रभावित करती हैं। हिंदी भाषा का स्तर हमेशा उत्तमता से परिपूर्ण रहे, इस बात पर आप काफी  गंभीरतापूर्वक लेखन करते हैं, जो  प्रशंसनीय लगता है।

 – डॉ. लतिका जाधव, पुणे

[14] श्री शिवप्रकाश ब्रिजमोहनजी गौतम

प्रिय कल्याण मित्र संजय भारद्वाज जी को सर्वप्रथम 1111 दिन के अविरत सृजन के पूर्णत्व की हृदयतल से बधाई।

प्रतिदिन कुछ नया लिखना यह असाधारण कार्य है। आपका लेखन उत्तम मार्गदर्शक होता है। अध्यात्म को सुगमता से समझाता एवं संग्रहित करने योग्य आपका लेखन रहा है।

आपका सृजन, मनन करने योग्य एवं हृदयस्पर्शी होता हैं। माँ शारदा की असीम अनुकंपा आप पर बरस रही है। आपके बहुमूल्य सृजन में से कुछ मैंने भी सहेज रखा है ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इससे लाभान्वित हो। सीमित शब्दों में आपके लेखन के प्रति कुछ भाव व्यक्त कर पाना असंभव है। आपके अविरत सृजन को नमन।

 – शिवप्रकाश ब्रिजमोहनजी गौतम, दिग्रस, यवतमाल

[15] सुश्री रेखा प्रमोद सिंह

हिन्दी  साहित्य जगत में आदरणीय संजय भारद्वाज जी का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। इनके रचना संसार को शब्दों में बांधना मेरे लिए संभव नहीं है। सच में आप कलम के जादूगर हैं। आपका  गहन चिंतन-मनन और विशेषकर ‘संजय-उवाच’ लोगो की सोई चेतना को जाग्रत कर रहा है। आपकी लेखनी एक ओर अध्यात्म और जीवन-दर्शन की राह दिखलाती है तो दूसरी ओर व्यवस्था पर भी प्रहार करती है। आप की दृष्टि में नारी  का स्थान बहुत सम्मानीय है, धरती माँ की तरह।

आपकी क्रौंच कविताएँ हों या अन्य, आपके प्रकृति- प्रेम को दर्शाती हैं। आपकी कविताओं जैसे ‘खोया-पाया’ और ‘है और था’ में गीता की वाणी जैसे जीवन का गूढ़ रहस्य छुपा है । खोया-पाया’ का एक अंश है-  रीता आया था/ सो कुछ नहीं खोया/ सृष्टि संपन्न लौट रहा हूँ/ बस, पाया  ही पाया।’ अद्भुत, निशब्द करती कविता। एक सकारात्मक सोच लिए। जीवन को  नयी दृष्टि से देखना, बहुत खूब! इसी तरह आपकी लघुकथाएँ हृदयतल को छूती हैं। आपका लेखन, युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन कर रहा है। ‘

दैनिक लेखन के 1111 दिन पूरे होना, आपकी कर्मठता और सृजनशीलता को दर्शाता है। आपने असंभव को संभव कर दिया। कोटि-कोटि नमन।

 – रेखा प्रमोद सिंह, पुणे

[16] सुश्री माया मीरपुरी

प्रतिदिन अंतरात्मा की कोख से सृजित होती हैं रचनाकार आदरणीय संजय भारद्वाज की अद्भुत रचनाएँ। जिन्हें संबल प्राप्त होता है उनकी अपनी जीवन संगिनी आदरणीया सुधा जी से। रोज़ आलोकित होता है ई-पटल सारगर्भित रचना-संपदा से। भाग्यशाली  हैं हम जो 19 खंडों में ‘राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका’ नामक लेख पढ़ने को मिला। रचनाकार की जान उसकी लेखनी है। आपकी मेहनत, कर्मनिष्ठा का प्रतिफल है।

अध्ययन और अध्यवसाय की गहनशीलता, आत्मीयता, सकारात्मक सोच, ज्ञान-विज्ञान की नयी तकनीकी प्रयोगशीलता, अनुशासनबद्धता, कथनी-करनी की प्रतिबद्धता, संचालन सूत्रीय सक्षमता, प्रामाणिकता, शब्द-चयन क्षमता, देश को सर्वोपरि मानने की सद्भावना, सृष्टि के कम -कण में सत्यम्-शिवम्-सुंदरम् की प्रचीति रहस्य है इस सफल सक्रियता का। 

श्रवण, लेखन, वाचन, रंगमंच, सत्संग, अनेक ई-गोष्ठियों का प्रस्तुतीकरण, स्नेह सम्मेलनों, उत्सवों विशेषकर वार्षिकोत्सव का आयोजन, वरिष्ठ नागरिकों के लिए बने ‘जाणीव आश्रम’ के प्रति समर्पण, वृद्धाश्रम, अनाथाश्रम, सुधार गृह , मूकबधिर संस्थाओं में जाकर यथाशक्ति योगदान प्रदानीकरण, साथ ही क्षितिज प्रकाशन का स्तरीय प्रकाशन-कर्म स्तुत्य है।

लेखन-प्रकाशन के 1111 दिन पूरे होने पर कृतज्ञता-अभिव्यक्त करते हुए अशेष मंगलकामनाएँ। 

 – माया मीरपुरी, पुणे

[17] सुश्री कुसुम गोकर्ण

संजय भारद्वाज के लेख अच्छे मार्गदर्शक होते हैं।

 – कुसुम गोकर्ण, पुणे

[18] सुश्री नीलिमा वैद्य

संजय जी का दैनिक लेखन पाठकों को सक्रियता और ऊर्जा प्रदान करता है। समाज का गहरा सच उनके लेखन में दर्पण की तरह प्रतिबिंबित होता है। कोरोना काल मे जब सर्वत्र निराशा और आतंक का माहौल बना था, मौत का तांडव मचा था, तब उनके लेखन से आशा की किरणें मिलती रहीं, संकट से लड़ने का हौसला मिलता रहा।ज्ञानदा ग्रुप पर उनका लेखन पढ़ने के लिए प्रतिदिन की सुबह का इंतज़ार रहता है।

आजकल कठिन कविताएँ लिखने का दौर चल पड़ा है। पाठको की वैचारिकता और सहनशीलता की परीक्षा ही ली जाती है। यही कारण है कि संजय जी की सहज और सरल भाषा मे लिखी कविताएँ अधिक प्रभावशाली जान पड़ती हैं। माँ सरस्वती की संजय जी पर अबाधित कृपा बनी रहे और वे हम सबकी ज्ञानतृषा को तृप्त करते रहें।

 – नीलिमा वैद्य, पुणे

[19] सुश्री पूर्णिमा पांडेय

वेदना का शब्दांकन नहीं होता, एहसासों का चित्रांकन नहीं होता लेकिन संजय जी की कलम अपनी अनुभूतियों के माध्यम से इन सभी को हमारे सामने ऐसे प्रस्तुत करती है कि हम निशब्द हो जाते हैं। संजय जी के विचार- शब्दार्थ, भावार्थ और यथार्थ तक पहुँचने का सशक्त माध्यम हैं।

मनुष्य को ऊर्जावान रखने के लिए प्रेम,अपनत्व और संवेदनशीलता के स्नेह की आवश्यकता होती है । संजय भारद्वाज जी गागर में सागर भरने वाले व्यक्तित्व हैं । लेखन में सातत्य या निरंतरता हो तो दिन-ब-दिन लेखन में निखार आते जाता है और यही सत्य संजय भारद्वाज जी के साथ शत- प्रतिशत लागू होता है। संजय जी जिस काम का बीड़ा उठा लेते हैं, फिर उसमें पीछे नहीं हटते। फिर चाहे वो संस्था चलाने का काम हो, चाहे कलम चलाने का। पराई पीर में समरस हो जानेवाला संवेदनशील मन, आसपास घटित होती घटनाओं को विश्लेषणात्मक दृष्टि से देखने वाली सोच और शब्दों पर अपना प्रभुत्व संजय जी की लेखनी की विशेषता है।

आदमी की आँख का

जब मर जाता है पानी,

खतरे का निशान

पार कर जाता है,

आदमी की आँख में

जब भर आता है पानी,

खतरे के निशान से

उतर जाता है पानी।

मेरे मन के बहुत करीब है ये रचना। ऐसी न जाने कितनी रचनाएँ, संजय जी की लेखनी से अवतरित हुई हैं। इन रचनाओं में जीवन की वेदना है , संवेदना है, धड़कता हुआ युगबोध है, ऊँचाई है, गहराई है, विस्तार है। ये रचनाएँ अपने आप में दो-तीन-चार, न जाने कितने आयाम समेटे हुए हैं।

आपकी लेखन यात्रा अनवरत सफलतापूर्वक चलती रहे और हम सब उत्तरोत्तर श्रेष्ठ से  श्रेष्ठतर  रचनाओं का स्वाद लेते हुए, कुछ सार्थक ग्रहण करते करते अपना जीवन भी सँवारने का प्रयास करते रहें।

 – पूर्णिमा पांडेय, नवी मुंबई

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ९ ऑगस्ट – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ ९ ऑगस्ट – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर,  ई–अभिव्यक्ती (मराठी) ?

विष्णुदास भावे

विष्णुदास अमृत भावे (9ऑगस्ट 1819 – 9 ऑगस्ट 1901)हे आद्य मराठी नाटककार होते.त्यांना मराठी नाट्यपरंपरेचे जनक मानले जाते. त्यांचा उल्लेख ‘महाराष्ट्र नाट्यकलेचे भरतमुनी’असा होतो.

त्यांचा जन्म सांगली येथे झाला.त्यांचे वडील अमृतराव भावे हे सांगली संस्थानचे राजे चिंतामणराव पटवर्धन यांच्याकडे नोकरीला होते.

विष्णुदास अतिशय बुद्धिमान हस्तकला कारागीर होते. अगदी बारीकसारीक हालचाल करू शकणाऱ्या असंख्य लाकडी बाहुल्या त्यांनी बनवल्या होत्या. त्या वापरून ते ‘सीतास्वयंवर’ हे नाटक करणार होते. परंतु तत्पूर्वी कर्नाटकातील भागवत मंडळींप्रमाणे कीर्तनी खेळ रचण्याची आज्ञा सांगलीचे राजे पटवर्धन यांनी त्यांना दिली व 1843 साली भावेंनी ‘सीतास्वयंवर’ हे मराठीतील पहिले नाटक रंगमंचावर आणले.

पुढे नाट्यलेखन व निर्मिती करून भावेंनी अनेक ठिकाणी अनेक नाटकांचे प्रयोग केले.

1853मध्ये त्यांनी मुंबईला ‘इंद्रजितवध’चा पहिला नाट्यप्रयोग केला. त्यांनी ‘इंद्रजितवध’, ‘राजा गोपीचंद’, ‘सीतास्वयंवर’ वगैरे नाटकांचे अनेक प्रयोग केले. त्यांची निर्मिती व दिग्दर्शन त्यांनी केले होते. ‘सीतास्वयंवर’ या नाटकात त्यांनी गीतलेखनही केले होते.’राजा गोपीचंद’ या नाटकाचे हिंदी प्रयोगही त्यांनी केले होते.

विष्णुदास भावेंनी बनवलेल्या लाकडी बाहुल्या पुढे रामदास पाध्येंच्या हातात आल्या. त्यांनी  पत्नी अपर्णा पाध्येंच्या सहकार्याने खूप अभ्यास करून त्याच बाहुल्या वापरून ‘सीतास्वयंवर’चा प्रयोग केला.

भावेंवरील चनुलाल दुबे यांच्या पुस्तकाचा ‘हिंदी आणि मराठी व्यावसायिक रंगभूमीचे जनक विष्णुदास भावे’ हा मराठी अनुवाद व्यंकटेश कोटबागे यांनी केला.

☆☆☆☆☆

वामन शिवराम आपटे

वामन शिवराम आपटे (1858 – 9 ऑगस्ट 1892) हे कोशकार होते.

आपटेंचा जन्म सावंतवाडीजवळील एका खेड्यात समृद्ध परिवारात झाला.ते लहान असतानाच त्यांचे आई-वडील स्वर्गवासी झाले.

त्यांची बुद्धिमत्ता ओळखून त्यांच्या मुख्याध्यापकांनी त्यांना केलेल्या मदतीमुळे त्यांचे शालेय जीवन सुरळीत पार पडले.90%पेक्षाही जास्त गुण मिळवून त्यांनी मॅट्रिकची परीक्षा उत्तीर्ण केली.

डेक्कन महाविद्यालयातून त्यांनी बी.ए. केले. त्यावेळी त्यांना भाऊ दाजी संस्कृत पुरस्कार मिळाला. नंतर गणित घेऊन प्रथम श्रेणीत एम.ए. केले व भगवानदास  शिष्यवृत्ती मिळवली.

त्यानंतर उत्तम सरकारी नोकरीचा मोह टाळून ते लोकमान्य टिळक, चिपळूणकर, आगरकर

यांच्यासमवेत न्यू इंग्लिश स्कूलमध्ये अध्यापक व व्यवस्थापक म्हणून काम करू लागले.

पुढे ते फर्ग्युसन महाविद्यालयाचे प्राचार्य झाले.

‘द स्टुडंट्स इंग्लिश – संस्कृत डिक्शनरी’, ‘द स्टुडंट्स संस्कृत -इंग्लिश डिक्शनरी’, ‘संस्कृत – हिंदी कोश’, ‘स्टुडंट्स गाईड टू संस्कृत कॉम्पोझिशन’, ‘द स्टुडंट्स हँडबुक ऑफ प्रोग्रेसिव्ह एक्सरसाईझेस (भाग 1 व 2) इत्यादी पुस्तके जगभरात मान्यताप्राप्त आहेत.

☆☆☆☆☆

सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, विकीपीडिया, पोएम कट्टा.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ८ ऑगस्ट – संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? ई-अभिव्यक्ती -संवाद ☆ ८ ऑगस्ट -संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

भीमराव गस्ती (इ.स. १९५० – ८ ऑगस्ट २०१७.)

भीमराव गस्ती यांचा जन्म यमनापूर – बेळगाव इथे झाला. देवदासी प्रथा नष्ट व्हावी म्हणून त्यांनी आयुष्यभर संघर्ष केला. ते साहित्यिक होते, त्याचप्रमाणे जेष्ठ सामाजिक कार्यकर्तेही होते. बेरड समाजाच्या व्यथा-वेदना आणि त्यांच्या होणार्याम छ्ळाचे चित्रण त्यांनी आपल्या ‘बेरड’ या आत्मचरित्रात केले आहे. या आत्मचरित्राने साहित्य क्षेत्रात खळबळ उडवून दिली.

भीमराव गस्ती यांचे प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षण यमनापूर इथे झालं. पुढे एम. एस्सी इलेक्ट्रॉनिक्स ही पदवी त्यांनी मिळवली. त्यानंतर रशियाची राजधानी मास्कोयेथील पेट्रिक लुमुंबा विद्यापीठातून याच विषयाची डॉक्टरेट संपादन केली. हैद्राबादयेथील रिसर्च अॅंीड डेव्हलपमेंट ऑर्गनायझेशनमधे त्यांना ज्येष्ठ शास्त्रज्ञाची नोकरी मिळाली.

एकदा एका दरोड्यासंदर्भात पोलिसांनी बेरड समाजाच्या २० निरपराध लोकांना अटक केली व त्यांचा अनन्वित छळ केला. या अन्यायाविरुद्ध गस्तींनी  न्यायालयात झुंज दिली. मोर्चे काढले. आंदोलने केली. या घटनेने त्यांचे जीवनच बदलले. त्यांनी बेरड समाजाच्या उन्नतीसाठी स्वत:ला वाहून घेतले. त्यांनी निपाणी येथे देवदासींच्या  १८० मुलींसाठी  वसतिगृह सुरू केले. तिथे देवदासींच्या मुली शिकून शिक्षिका, प्राध्यापिका, तहसीलदार झाल्या. सामाजिक प्रबोधनाची चळवळ त्यांनी सुरू केली. शेकडो देवदासींचे विवाह लावून दिले. बेरड, रामोशी समाजाच्या विकासासाठी यमनापूर येथे ‘उत्थान’ ही संस्था सुरू केली. भटके, विमुक्त विकास प्रतिष्ठान या संस्थेचे ते अनेक वर्ष उपाध्यक्ष होते.    

भीमराव गस्ती यांची पुस्तके

१. *बेरड (आत्मचरित्र), 2. आक्रोश, 3. सांजवारा

*या पुस्तकाला  महाराष्ट्र राजी पुरस्कारासह आणखी ७ पुरस्कार मिळाले आहेत. 

भीमराव गस्ती यांना मिळालेले काही पुरस्कार, सन्मान

१ अरुण लिमये पुरस्कार

२ कर्नाटक राज्य साहित्य पुरस्कार

३ गोदावरी गौरव पुरस्कार

४ पंचगंगा सहकारी साखर कारखाना पुरस्कार

५ मुंबाई मराठी साहित्य संघातर्फे बा.सी. मर्ढेकर पुरस्कार

६ रत्नाप्पा कुंभार साहित्य पुरस्कार

९व्या समरसता साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

आज त्यांचा स्मृतिदिन आहे. त्या निमित्ताने, साहित्य सेवा आणि समाजसेवेच्या त्यांच्या कार्याला प्रणाम. ? 

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

सुमति क्षेत्रमाडे

सुमति क्षेत्रमाडे या विख्यात कादंबरीकार. त्यांनी अनेक कादंबर्यास व कथा लिहिल्या. त्या अतिशय लोकप्रियही झाल्या. त्यांच्या काही कादंबर्यांावर चित्रपट निघाले. महाश्वेता कादंबरीवर त्याच नावाची टी.व्ही. मालिका झाली, तर ‘युगंधरा’ कादंबरीवर ‘माझिया माहेरा’ ही मालिका झाली.    

त्यांचा जन्म ७ मार्च १९१३चा. त्यांनी वैद्यकीय शिक्षण मुंबईमधे घेतले. नंतर यातील उच्च शिक्षणासाठी त्या इंग्लंडला गेल्या. वैद्यकीय व्यवसाय त्यांनी कोल्हापूरला केला. त्यांची पहिली कादंबरी ‘आधार’ ही दवाखान्याती वातावरणावर आधारित आहे. त्यांनी मराठीप्रमाणेच गुजराती भाषेतही विपुल लेखन केले आहे.

सुमति क्षेत्रमाडे यांची विशेष गाजलेली कादंबरी म्हणजे ‘युगंधरा’. यात स्त्रीची अनेक रूपे दाखवली आहेत. त्यांनी सुरूवातीला छंद म्हणून लिहायला सुरुवात केली पण छंद जोपासताना विपुल साहित्यनिर्मिती झाली. मानवी वर्तनाचे सूक्ष्म निरीक्षण, अचूक ज्ञान  आणि संवेदनाशील मन या गोष्टी त्यांच्या कादंबर्यासतून दिसून येतात. त्या शाळेत असल्यापासून लेखन करत होत्या. प्रेम हा त्यांच्या लेखनाचा स्थायीभाव आहे. तत्कालीन राजस्त्रिया आणि आणि अन्य स्त्रिया यांना समाजात, कुटुंबात मिळणारी दुय्यम वागणूक यावर त्यांनी प्रभावीपणे लेखन केले आहे.

सुमति क्षेत्रमाडे यांच्या काही कादंबर्याा –

पांचाली, नाल-दमयंती, मखमली बटवा, चतुरा, अग्नीदिव्य, बाभळीचे काटे, पुनर्जन्म , बंदिनी सत्यप्रिय गांधारी, याज्ञसेनी इ. ४८ कादंबर्याम त्यांनी लिहिल्या.

सुमति क्षेत्रमाडे यांचे ८२ व्या वर्षी ८ ऑगस्ट १९९८ मधे निधन झाले.

 आज त्यांचा स्मृतीदिन आहे. त्या निमित्त त्यांना भावपूर्ण श्रद्धांजली.? 

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी, गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ७ ऑगस्ट – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ ऑगस्ट – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

संस्कृतपंडित व लेखक श्री. बाळशास्त्री हुपरीकर यांचा आज स्मृतिदिन . ( मृत्यू दि. ७/८/१९२४.) 

हे कोल्हापूर महाविद्यालयात संस्कृतचे प्राध्यापक होते. त्याचबरोबर, वेदान्तशास्त्राचे, तसेच, ज्ञानदेव आणि शंकराचार्य यांच्या साहित्याचे गाढे अभ्यासक आणि भाष्यकार अशीही त्यांची ओळख होती. 

त्यांनी लिहिलेले विविध ग्रंथ पुढीलप्रमाणे —– 

१) श्री अनुभवामृत पर्यबोधिनी टीका. 

२) ( हर्बर्ट स्पेन्सरसाहेबांची ) अज्ञेय मीमांसा व आर्य वेदांत.  

३) ग्रंथमाला. 

४) श्रीमद्भगवद्गीता अथवा ज्ञानयोग शास्त्र. —- हा ग्रंथ करवीर पीठाच्या शंकराचार्यांनी गौरवलेला होता. 

५) विद्यारण्य व ज्ञानेश्वर यांच्या दृष्टीने वेदातील मतांचे तात्पर्य. 

श्री. हुपरीकर यांच्याविषयी आणखी एक महत्वाचे सांगायचे ते असे की, लो. टिळक यांनी लिहिलेल्या “ गीतारहस्य “ या गाजलेल्या ग्रंथावर त्यावेळच्या ज्या काही मान्यवरांनी जाहीरपणे टीकात्मक ( जरा कडवट ) भाष्य केले होते, त्यामध्ये श्री. हुपरीकर यांचाही समावेश होता. 

श्री. बाळशास्त्री हुपरीकर यांना विनम्र अभिवादन.🙏

☆☆☆☆☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे 

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी, गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ६ ऑगस्ट – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ ६ ऑगस्ट – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

दत्तात्रय पांडुरंग खांबेटे

द. पां. खांबेटे यांनी मराठी साहित्यात वेगळ्या प्रकारचे म्हणजे युद्धकथा, हेरकथा, विज्ञान काल्पनिका, परमाणूशास्त्र यासह अध्यात्म आणि भविष्य या विषयांवर लेखन केले आहे. शिवाय अनेक वर्षे ते हंस, मोहिनी व नवल या मासिकांत नियमितपणे दरमहा लेखन करत होते.

सोमाजी गोमाजी कापसे, भाऊ हर्णेकर, रमाकांत वालावलकर, मुमुक्षू, ज्ञानभिक्षू, के. दत्त, प्रज्ञानंद, अवधूत आंजर्लेकर ही त्यांची लेखनातील टोपणनावे.

निवडक साहित्य:

आटप, अरे आटप लवकर-रहस्यकथा

माझं नाव रमाकांत वालावलकर.

दहा निळे पुरूष. . विज्ञान काल्पनिक

चंद्रावरचा खून. . गूढ कथा

न्यूनगंड. . . मानसशास्त्र

वयाच्या 71 व्या वर्षी 1983 मध्ये त्यांचे निधन झाले.🙏

☆☆☆☆☆

महमहोपाध्याय डाॅ. ब्रह्मानंद देशपांडे

डाॅ. ब्रह्मानंद देशपांडे हे प्रसिद्ध वक्ते, इतिहास संशोधक व महानुभाव पंथाचे अभ्यासक होते. त्यांना मराठी, हिंदी, इंग्रजी, संस्कृत,गुजराती, कन्नड, बंगाली, उर्दू, बुंदेलखंडी व छत्तीसगढी अशा दहा भाषा येत होत्या. शिवाय ब्राह्मि, फारसी आणि मोडी लिपीचे ते तज्ञ होते.

महानुभाव या मासिकाचे ते कार्यकारी संपादक होते. त्यांचे दिडशेहून अधिक शोधनिबंध प्रसिद्ध झाले आहेत. त्यांनी आकाशवाणीवर अनेक रूपके, परीक्षणे सादर केली आहेत. महानुभाव व जैन साहित्याचे ते अभ्यासक होते.

त्यांचे चौतिसहून अधिक संशोधनपर ग्रंथ प्रकाशित झाले आहेत. त्यापैकी काही असे:

इये नाथांचिये नगरी, चक्रपाणी चिंतन, देवगिरीचे यादव, रत्नमाला स्तोत्र, शब्दवेध, सप्तपर्णी, लिळाचरित्र  एकांक इत्यादी.

प्राप्त सन्मान :

18वी अखिल महाराष्ट्र इतिहास परिषद, श्रीगोंदे चे अध्यक्ष.

‘देवगिरीचे यादव’ ला महा. राज्याचे उत्कृष्ट ग्रंथ निर्मिती पुरस्कार

‘रत्नमाला स्तोत्र’ ला महानुभाव विश्वभारती पुरस्कार

दिवाकर रावते भूमिपूत्र पुरस्कार

संत साहित्य संशोधन पुरस्कार

उत्तर भारतीय ब्राह्मण महासंघातर्फे त्यांना महामहोपाध्याय ही पदवी प्रदान करण्यात आली होती.

वयाच्या 73व्या वर्षी 2013 मध्ये त्यांचे दुःखद निधन झाले. 🙏

☆☆☆☆☆

कृष्णशास्त्री राजवाडे

कृष्णशास्त्री हे साहित्य व अलंकारशास्त्र ह्या विषयांचे अभ्यासक व अध्यापक होते. ब्रिटिश काळात त्यांची शिक्षण खात्याच्या भाषांतर विभागात नेमणूक झाली. (1856). अलंकारविवेक हा त्यांचा उल्लेखनिय ग्रंथ. यात संस्कृतातील अलंकारांचा परिचय करून देण्यात आला आहे. मराठी रचनांच्या संदर्भासह व उदाहरणांसह हा ग्रंथ असल्यामुळे संस्कृत साहित्य मराठीत आणण्याचा हा पहिला प्रयत्न ठरतो.

त्यांनी मालतीमाधव, मुद्राराक्षस, शाकुंतल, महावीरचरित या नाटकांचे मराठी अनुवाद केले आहेत. ऋतुवर्णन आणि उत्सवप्रकाश ही काव्ये रचली आहेत.

पुणे येथे 1885 साली भरलेल्या दुस-या मराठी साहित्य संमेलनाचे ते अध्यक्ष होते.

1820 ते 1901 हा त्यांचा कालखंड. वयाच्या 81 व्या वर्षी ते पुणे येथे निवर्तले.🙏

☆☆☆☆☆

लक्ष्मण लोंढे

मराठी साहित्यात विज्ञान कथा लेखन करण्-या लेखकांतील आघाडीचे लेखक !

वयाच्या 50 व्या वर्षी स्वेच्छानिवृत्ती स्विकारून पूर्ण वेळ विज्ञान कथा लेखनासाठी दिला.

‘सायन्स टुडे’ या नियतकालिकात त्यांची दुसरा आईनस्टाईन ही कथा इंग्रजीत प्रसिद्ध झाली. या कथेला जागतिक सर्वोत्कृष्ट कथा हा पुरस्कार कन्सास विद्यापिठाकडून मिळाला. जगातील निवडक विज्ञान कथांमध्येही या कथेची निवड झाली. मराठी लेखकाला हा सन्मान प्रथमच मिळाला होता.

लक्ष्मण लोंढे यांचे प्रकाशित साहित्य:

अस घडली नाही. . . कादंबरी

आणि वसंत पुन्हा बहरला

कारकीर्द

काउंट डाऊन

गुंता

थॅक यू मि. फॅरेड

दुसरा आईनस्टाईन

धर्मयोद्धा, लक्ष्मण उवाच, लक्ष्मण झुला, वाळूचे गाणे इत्यादी

प्राप्त पुरस्कार: शांताराम कथा पुरस्कार

लक्ष्मण लोंढे यांचे 2015 मध्ये वयाच्या 70 व्या वर्षी निधन झाले.

मराठी साहित्यात वेगवेगळ्या प्रकारचे लेखन व संशोधन केलेल्या या चारही साहित्यिकांचा आज स्मृतीदिन आहे. त्यांच्या कार्यास व स्मृतीस नम्र अभिवादन.🙏

☆☆☆☆☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : विकिपीडिया, मराठी विश्वकोश, विकीवॅन्ड.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

 

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ४ ऑगस्ट – संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

? ई-अभिव्यक्ती -संवाद ☆ ४ ऑगस्ट -संपादकीय – सौ. उज्ज्वला केळकर – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

शरदिनी डहाणूकर (१९४५- ४ऑगस्ट २०१२)

शरदिनी डहाणूकर या भिकू पै घुंगट यांच्या कन्या. ते मुंबईला प्रख्यात डॉक्टर होते. शरदिनी यांचे शालेय शिक्षण मुंबईत झाले. १९६९ मधे त्या एम.बी.बी.एस. झाल्या. अमेरिकेत राहून त्यांनी जननांग वैद्यक  आणि प्रसूतिशास्त्रात उमेदवारी केली. औषधी शास्त्रात त्यांनी एम. डी. केले .भारतीय आयुर्वेदिक शास्त्रात आणि वनस्पती शास्त्रात त्यांना खूप रस होता. भारतात आल्यावर त्यांनी वेणी माधवशास्त्री जोशी यांच्याकडे आयुर्वेदाचे ५ वर्षे शिक्षण घेतले. त्या आधारे त्यांनी आयुर्वेदात सांगितलेल्या वनस्पती आणि त्यांचा औषधोपचरात होणारा उपयोग यांच्याकडे आधुनिक अॅुलोपॅथिक नजरेने पहाण्याचा एक नावीन्यपूर्ण मार्ग प्रस्थापित केला.

मुंबईच्या के.ई.एम. रुग्णालयात त्यांच्या प्रयत्नाने आयुर्वेद संशोधन केंद्र सुरू झाले. त्यांच्या संशोधनाने, भारतात अस्तीत्वात असलेल्या परंपरागत वैद्यकीय ज्ञानाचा, आधुनिक कसोट्यांवर पडताळा घेता आला. या कामासाठी त्यांना अनेक पुरस्कार मिळाले.

शरदिनी डहाणूकर आणि उर्मिला थत्ते यांनी मिळून औषधी व वनस्पती शास्त्रावरची अनेक पुस्तके लिहिली.  शरदिनीताईंचे लेखन मराठी आणि इंग्रजी दोन्ही भाषातून झालेले आहे. वृक्ष, फुले आणि वंनस्पतींवरची त्यांची अनेक मराठी पुस्तके प्रकाशित झाली आहेत.

शरदिनी डहाणूकर यांची काही मराठी पुस्तके. –

१.    औषधे आणि आपण, २.पांचालीची थाळी, ३.फुलवा, ४. मानस्मरणीचे मणी, ५. सगे सांगाती, ६. वृक्षगान, ७. हिरवाई.

आज त्यांचा स्मृतीदिन आहे. त्या निमित्त त्यांना भावपूर्ण श्रद्धांजली.? 

☆ ☆ ☆ ☆ ☆

सौ. उज्ज्वला केळकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी, गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – सौ. उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ ३ ऑगस्ट – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ ३ ऑगस्ट – संपादकीय – सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

लेखिका , प्राध्यापिका आणि समीक्षिका म्हणून ख्यातनाम असलेल्या श्रीमती सरोजिनी वैद्य यांचा आज स्मृतीदिन . ( १६/६/१९३३ — ३/८/२००७ ) 

ललित लेखन, चरित्रलेखन, आणि समीक्षा, हे साहित्यप्रकार अधिकतर हाताळणाऱ्या सरोजिनीताई यांनी आधी स. प. कॉलेज, पुणे इथे, पुढे रुईया कॉलेज, मुंबई इथे आणि नंतर मुंबई विद्यापीठात अध्यापक, अधिव्याख्याता, आणि मराठी विभाग-प्रमुख म्हणून एकूण ३७ वर्षे मराठी अध्यापनाचे काम केले. निवृत्तीनंतर महाराष्ट्र राज्य मराठी विकास संस्थेच्या संस्थापक व संचालक म्हणून या संस्थेची त्यांनी पायाभरणी केली. त्याचबरोबर शासकीय आणि खाजगी स्तरावरही अनेक संस्थांना मार्गदर्शन केले. 

त्यांनी केलेले आणखी एक महत्वाचे काम म्हणजे, अमराठी मंडळींसाठी मराठी शिक्षणक्रम बनवून,अशांना नोकरीसाठी आवश्यक असणाऱ्या पदविकेची आणि प्रमाणपत्रांची सुविधा त्यांनी उपलब्ध करून दिली. त्याचबरोबर कोशवाङमय सूची, चरित्र माहिती, परिभाषा कोश, अशा मूलगामी योजना आखण्याचे, आणि त्या यशस्वीपणे पूर्ण करण्याचे कामही त्यांनी केले. मराठी भाषेच्या व एकूणच वाङमयाच्या अभिवृद्धीसाठी त्यांनी अथक परिश्रम केले. 

एकीकडे त्यांची स्वतःची साहित्य संपदाही वाढतच होती. त्यांच्या प्रकाशित साहित्यापैकी काही निवडक साहित्य असे —

पहाटगाणी — पहिलं ललित लेख संग्रह 

टी.एस. ईलीयट आणि नवीन मराठी कविता — समीक्षा 

जीवनलेखन —- नाटक 

आठवणी काळाच्या आणि माणसांच्या 

कहाणी लंडनच्या आजीबाईंची 

नानासाहेब फाटक – व्यक्ती आणि कला 

संक्रमण —- वैचारिक 

समग्र दिवाकर — नाट्यछटाकार दिवाकर यांचे अप्रकाशित लेखन 

माती आणि मूर्ती — समीक्षा 

रमाबाई रानडे – व्यक्ती आणि कार्य 

वाङमयीन महत्ता  

गोपाल हरी देशमुख ऊर्फ लोकहितवादी 

“ ज्ञानदेवी “ या ग्रंथाचे संपादन आणि लेखन– हे त्यांचे खूप मौलिक काम समजले जाते. याच्या तीन खंडांचे संपादन हा त्यांच्या विद्वततेचा, मौलिक विचारांचा आणि सहृदयतेचा परिपाक असल्याचे गौरवाने म्हटले जाते. 

त्यांच्या अनेक ग्रंथांना राज्य शासनाचे पुरस्कार मिळालेले आहेत. तसेच इतरही पुरस्कार असे — 

भारतीय शिक्षण प्रतिष्ठानचा उत्कृष्ट शिक्षक पुरस्कार, शैक्षणिक कार्यासाठी ‘ सत्यशोधक पुरस्कार ‘, महाराष्ट्र साहित्य परिषद,पुणे तर्फे पुरस्कार, सु.ल.गद्रे पुरस्कार, जांभेकर पुरस्कार, नगर वाचन मंदिर पुरस्कार, दादर वनिता समाजाचा जीवनगौरव पुरस्कार . बडोदा वाङमय परिषदेचे अध्यक्षपद त्यांनी भूषविले होते. 

चरित्र वाङमयाला वेगळे कसदार वळण देणाऱ्या , सतत ‘ वाङमयसेवक ‘ याच भूमिकेतून काम करत राहिलेल्या , आणि ज्यांना “ वाग्विलासिनी “ असे आदराने संबोधले जात असे , अशा सरोजिनी वैद्य यांना आदरपूर्वक श्रद्धांजली.🙏

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सुश्री मंजुषा सुनीत मुळे 

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :साहित्य साधना – कराड शताब्दी दैनंदिनी, गुगल, विकिपीडिया

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ २ ऑगस्ट – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

श्री सुहास रघुनाथ पंडित

? ई-अभिव्यक्ती – संवाद ☆ २ ऑगस्ट – संपादकीय – श्री सुहास रघुनाथ पंडित – ई – अभिव्यक्ती (मराठी) ?

चेतन दातार

चेतन दातार हे अभिनेते व रंगकर्मी तर होतेच पण अत्यंत वेगळ्या विषयांवर लेखन करणारे नाटककारही होते.देवदासी प्रथा, समलैंगिकता हे त्यांच्या नाटकांचे विषय होते.श्री.विठ्ठल बंडू तुपे यांच्या कादंबरीवर आधारित त्यांनी लिहीलेले ‘झुलवा’ हे नाटक देवदासी प्रथा या विषयावर होते.ते खूप गाजले.तसेच ‘एक माधवबाग’हे नाटक समलैंगिकता या विषयाशी संबंधीत आहे.या नाटकातील समलिंगी तरूणाने, आपल्या लैगिंकतेबद्दल सांगणारे आईला लिहीलेल्या पत्राचे वाचन अनेक संबंधित संस्थांमध्ये करण्याचा उपक्रमही करण्यात आला होता.

त्यांनी इंग्रजी, हिंदी व जर्मन नाटकांवर आधारित नाट्यलेखन केले आहे.

चेतन दातार यांची नाट्यसंपदा:

एक माधवबाग, झुलवा, राधा वजा रानडे, सावल्या, आरण्य किरणं (मूळ हिंदी), काॅटन56 व पाॅलिएस्टर 84 (मूळ इंग्रजी), मै भी सुपरमॅन (मूळ जर्मन) ‘आविष्कार’ या नाट्यसंस्थेचे ते आधारस्तंभ होते.

दातार यांची नाट्यनिर्मिती:

गिरिबाला(रवींद्रनाथ टागोर-नृत्यनाट्य)

हरवलेले प्रतिबिंब(महेश एलकुंचवार)

दोन ऑगस्ट 2008 ला चेतन दातार यांचे निधन झाले.आज त्यांच्या स्मृतीदिनी या वेगळ्या वाटेवरील नाटककाराला अभिवादन.🙏

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श्री सुहास रघुनाथ पंडित

ई-अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ : विकिपीडिया.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर≈

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ई-अभिव्यक्ति – संवाद ☆ १ ऑगस्ट – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर ☆ ई-अभिव्यक्ति (मराठी) ☆

सौ. गौरी गाडेकर

? ई -अभिव्यक्ती -संवाद ☆ १ ऑगस्ट – संपादकीय – सौ. गौरी गाडेकर,  ई–अभिव्यक्ती (मराठी) ?

लोकमान्य टिळक

लोकमान्य बाळ (ऊर्फ केशव) गंगाधर टिळक (23 जुलै 1856 – 1ऑगस्ट 1920)हे भारतीय स्वातंत्र्यसेनानी, शिक्षक, संपादक आणि लेखक होते.

ते बी.ए., एलएल. बी. झाले होते.

विष्णुशास्त्री चिपळूणकर, टिळक व आगरकर यांनी न्यू इंग्लिश स्कूलची स्थापना केली. त्यात टिळक शिक्षक म्हणून विनावेतन काम करीत. पुढे 1884 मध्ये डेक्कन एज्युकेशन सोसायटीची स्थापना करून त्या संस्थेतर्फे 1885मध्ये फर्ग्युसन महाविद्यालयाची स्थापना करण्यात आली. त्यात टिळक गणित व संस्कृत हे विषय शिकवीत.

1881मध्ये चिपळूणकर, टिळक व आगरकर यांनी आर्यभूषण छापखाना काढला आणि केसरी (मराठी) व मराठा (इंग्रजी)  ही वर्तमानपत्रे सुरू केली. आगरकर केसरीचे व टिळक मराठाचे संपादक होते. तरी केसरीत टिळकांचे अग्रलेख प्रसिद्ध होत. पुढे आगरकर व टिळक यांच्यात मतभेद झाल्यानंतर टिळक केसरीचे संपादक झाले.1881 ते 1920 या चाळीस वर्षांत टिळकांनी 513 अग्रलेख लिहिले. त्यापैकी ‘सरकारचे डोके ठिकाणावर आहे काय?’, ‘उजाडले पण सूर्य कुठे आहे?’, ‘प्रिन्सिपॉल, शिशुपाल की पशुपाल?’, ‘टोणग्याचे आचळ’,  ‘टिळक सुटले पुढे काय?’ वगैरे अग्रलेख अजूनही प्रसिद्ध आहेत.

टिळक हे संस्कृत, गणित, खगोलशास्त्र या विषयांमधील मान्यताप्राप्त अभ्यासकही होते. अत्यंत क्लिष्ट विषय ते अभिनव व  नावीन्यपूर्ण प्रकारे हाताळत.

त्यांची ‘ओरायन’, ‘आर्क्टिक होम ऑफ वेदाज’, भगवदगीतेतील कर्मयोगाची समीक्षा करणारे ‘गीतारहस्य’, ‘टिळक पंचांग पद्धती’ इत्यादी अनेक पुस्तके आजही लोकप्रिय आहेत.

‘टिळकांची पत्रे’, ‘सिलेक्टेड डॉक्युमेंट्स ऑफ लोकमान्य बाल गंगाधर टिलक,1880 -1920’ वगैरे पुस्तकांत टिळकांच्या लेखनाचे संपादन केले आहे.

टिळकांच्या जीवनावर ‘लोकमान्य :एक युगपुरुष’ हा चित्रपट काढला होता.

लोकमान्य टिळकांच्या आजच्या या स्मृतिदिनी त्यांना विनम्र अभिवादन. 🙏

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सौ. गौरी गाडेकर

ई–अभिव्यक्ती संपादक मंडळ

मराठी विभाग

संदर्भ :साहित्य साधना, कऱ्हाड शताब्दी दैनंदिनी, विकीपीडिया, पोएम कट्टा.

≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडळ (मराठी) – श्रीमती उज्ज्वला केळकर/श्री सुहास रघुनाथ पंडित /सौ. मंजुषा मुळे/सौ. गौरी गाडेकर ≈

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