हिन्दी साहित्य – कविता – सूरज – सुश्री नूतन गुप्ता
नूतन गुप्ता
सूरज
हर रोज़ शाम होते ही
कहीं चला जाता है।
पर वो कहाँ जाता है?
जाते तो हम हैं
हमारे मन का काला पन डराता है हमें
वह तो आएगा ही कल अपनी
नई किरण के साथ
हम स्वयम् पर नहीं लगाते रोक
दोष देते हैं सदा दूसरे को ही।
उसके जाने से नहीं होता अंधेरा
अंधेरा तो होता है
हमारे मुँह फेर लेने से।
वह तो जाने के बाद भी
बड़ी देर तक भूलता नहीं
जब हम ही भुला दें
तो क्या करे वो भी?
मैं करती हूँ प्रेम
डूबते सूरज से और उगते चाँद से भी
कुछ बातें जो तुम करोगे रात भर सूरज से
वह सुबह आकर सब कहेगा मुझसे
और जो मैं रात भर बतियाऊँगी चाँद से
वो सब होगा तुम्हारे बारे में।
© नूतन गुप्ता
(सुश्री नूतन गुप्ता जी एक कवयित्री एवं गद्यकार हैं । आप शासकीय विद्यालयों में प्रधान अध्यापिका पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन एवं अध्ययन। आप हिन्दी एवं अङ्ग्रेज़ी दोनों साहित्य में समान रुचि रखती हैं।)
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