श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्रेयस साहित्य # २७ ☆
☆ संस्मरण ☆ ~ पश्चिम उत्तर प्रदेश का आध्यात्मिक वैभवस्थल शुकतीर्थ (शुक्र ताल) ~ ☆ श्री राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ ☆
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समृद्ध पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जनपद मुजफ्फरनगर, गन्ने की चीनी मिले एवं दूर दूर तक फैले गन्ने की फसलों के बीच मेरा वाहन आगे बढ़ रहा था। एक भ्रमण कार्यक्रम के सिलसिले में मेरा इस जनपद में आना हुआ। आर्थिक रूप से समृद्ध इस जनपद की साहित्यिक समृद्धि के विषय में जानने की उत्कंठा को मुजफ्फरनगर के प्रख्यात साहित्यकार एवं चिकित्सक डॉ. बी.के. पाण्डेय जी ने एवं डॉ. राकेश कौशिक ने पूर्ण किया।
जब से मैं यहां आया मेरी खोजी नजर इस क्षेत्र की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक समृद्धि को ढूंढ रही थी। मुझसे मेरे बड़े भाई श्री उमेश दत्त शर्मा जी से इस विषय बात हुई और होती भी क्यों नहीं, जब मैं उनके गृह जनपद के भ्रमण पर था।
भोपा, अथाई, सब कुछ मेरे जेहन में था। यात्रा का अंतिम पड़ाव पार करने के उपरांत समय की सुई सांय के पाँच से ऊपर के समय को पार कर चुकी थी। मेरी नजर एक मार्ग निर्देशिका की तरफ गयी। जिसपर शुकतीर्थ – तीन किलोमीटर लिखा हुआ दिखाई दिया। शुकतीर्थ शब्द मेरे मन मस्तिष्क में ज्योहीं आए एक विशेष स्पंदन की स्थिति उत्पन्न हुई।
आध्यात्मिक अभिरुचि एवं उस तपोभूमि से जुड़ी हुई कथाएं मेरे मन में मचल रही थी। अब मेरे पास मुजफ्फरनगर की आध्यात्मिक समृद्धि के दर्शन करने का अवसर आ गया था।
श्री सलित जी, जिन्हे स्थानीय रूप से हमारे सहयोग के लिए नामित किया गया था, शायद उन्होंने मेरे मन की बात को समझ लिया था।
सर..मैं समझ रहा हूं आप पावन तीर्थ ‘ शुकतीर्थ ‘की ओर चलना चाहते हैं।
डॉ.रजनीश ने एक पंक्ति में भागवत भगवान के प्राकट्य स्थल की बात और शुकदेव जी की एक लघुकथा कार में बैठे बैठे सामने धर दी। मैं और मेरे दो सहयोगी मित्र हम चारों शुकतीर्थ की पावन भूमि पर पहुंच चुके थे। थोड़ी ऊंचाई पर पैदल चलते-चलते हम उस पावन तीर्थ के प्रवेश द्वार की सीढ़िया पर पहुंचे तो मेरी नजरों के आगे वह अक्षय वटवृक्ष दृष्टिगत हो उठा जिसके नीचे बैठकर सुखदेव जी ने परीक्षित महाराज को भागवत भगवान की प्रथम महिमा कथा सुनाई थी।
यह क्या…!! मंदिर की सीढ़ियों से आगे कुछ ही कदम पड़े थे कि हमें एक पावन दिव्य युवा संत के दर्शन हुये। हम स्वयं ऐसे संत के दर्शन कर रहे थे और वे अगवानी के भाव में हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे।
दिव्य युवा विभूति कोई और नहीं थी बल्कि इस मंदिर को अपनी साधना एवं अध्ययन भूमि बनाने वाले पूज्य श्री अचल कृष्ण शास्त्री जी थे। दोनों हाथों को जोड़कर हम दोनों ने एक दूसरे के अभिवादन को स्वीकार किया। लेकिन हम स्वतः ही बाएं की तरफ मुड़ गए और हम पहुंच गए, उस अद्भुत, दिव्य, आध्यात्मिक स्थल पर जिस स्थान पर बैठकर शुकदेव जी ने महाराजा परीक्षित को श्री भागवत् भगवान की कथा सुनाई थी। आज भी यह पवित्र अक्षयबट वृक्ष जो कि लगभग साढे पांच सौ वर्षों से यहां पर इस रूप में है, मानो आज भी शुकदेव जी यहां पर विराजमान है।
लोग पीत सूत्रों से लिपटे हुए इस वृक्ष के समीप आकर पूजा अर्चन करते हैं।
भजन कीर्तन चल रहा था मंदिर में शुकदेवजी महाराज और महाराजा परीक्षित एवं उनकी कथा सुनती हुई मूर्तियां विराजमान थी।
वार्ता के केंद्र में परीक्षित महाराज की चर्चा हुई तो मुझे अतीत के वे दिन याद आ गए जब, मैं बचपन में मेरठ जनपद के नगर मवाना मैं रहता था, जहां से मात्र सात किलोमीटर की दूरी पर महाभारत काल का, हस्तिनापुर और परीक्षितगढ़ किला सब कुछ मुझे याद आ रहा था। दो ढाई सौ किमी वृतीय दायरे में फैला यह वही भूभाग है जहां महाभारत काल में नाना प्रकार की घटनाएं घटी। पांडवों की राजधानी हस्तिनापुर हो या उनका दूसरा नगर इंद्रप्रस्थ ( दिल्ली ) हो या अभिमन्यु जी के पुत्र महाराज परीक्षित जी का परीक्षितगढ़ किला हो या कुरुक्षेत्र का मैदान जहां आध्यात्मिक इतिहास की सबसे बड़ी घटना घटी जब भगवान श्री कृष्ण यानी परम ब्रह्म के स्वमुख से श्रीमद्भागवत गीता जी का प्राकट्य हुआ या वह स्थान जिसे आज शुकतीर्थ कहते हैं जहां महाराज परीक्षित ने सुखदेव जी से भागवत भगवान की पावन कथा सुनी थी।
इन सभी स्थानों की बात मै इसलिए कह गया कि जब मैं मंदिरके किनारे ऊंचे स्थान से श्री हनुमान जी का विशाल विग्रह और गंगा मैया के कछार का क्षेत्र देख रहा था, तो मुझे वह पूरा भूभाग समझ में आ रहा था। मेरे मन में महाभारत काल की बातें और ये सारे महत्वपूर्ण स्थान के दर्शन हो रहे थे। मैं एक अलग ही अनुभूति कर रहा था कि यह वही क्षेत्र है जहां ये सारी घटनाएं घटी थीं।
पुनः में शुकतीर्थ की ही बात करता हूं। पश्चिम उत्तर प्रदेश के इस क्षेत्र में बोली जाने वाली कौरवी बोली, जो हिन्दी के शाब्दिक अर्थ को बदलकर रखने का सामर्थ्य रखती है, इस स्थान को शुकर ताल बोला जाता रहा। यद्यपि न यहाँ शुक्राचार्य जी महाराज का स्थान है न ही कोई ताल है, बल्कि यहाँ गंगा कछार है। खैर पूज्य माननीय आदरणीय मुख्यमंत्री जी की दृष्टि इस पावन तीर्थ पर पड़ी और यह स्थान अब अपने पुरातन नाम शुकतीर्थ के रूप अपने आध्यात्मिक वैभव को प्राप्त कर रहा है।
मेरे सहयोगी श्री सनित कुमार में मुझे हजारों वर्ष प्राचीन इस अक्षय बट की एक शाखा के दर्शन हुए जिसमें श्री गणेश भगवान का स्वयं प्राकट्य रूप और शुकदेव जी ( शुकरूप ) की आकृति स्पष्टरूप से दिखाई दे रही थी। इस बीच जब मेरी नज़रें ऊपर की तरफ गई तो अनेकानेक शुक यानी तोते पंक्षियों के जोड़े दिखाई दे रहे थे। ये इस बात को बयां कर रहे थे कि आज से करीब साढ़े पांच हजार वर्ष पूर्व इसी स्थान पर श्री शुकदेव जी महाराज ने महाराजा परीक्षित को इस पावन कथा का श्रवण कराया था।
अब हम सभी पूज्य अचल कृष्ण शास्त्री जी के विराजित स्थल पर पहुंच चुके थे। महाराज श्री अचल शास्त्री जी ने श्री भागवत भगवान के प्राकट्य की संक्षिप्त कथा सुनाइ, यह तो हमारा अमृत पान सा था। साथ ही साथ आपने प्रसाद और छाछ भी प्रदान किये जिसने हमें आत्मिक रूप से महाराज से जोड़ दिया।
पूज्य अचल शास्त्री जी महाराज अभी युवा है लेकिन बौद्धिक रूप से आपने प्रचुर आध्यात्मिक ज्ञानअर्जन कर लिया है, ऐसा मुझे उनसे बात करने के उपरांत आभासित हो रहा है। भागवत भगवान की कथा के वाचक आचार्य अचल कृष्ण शास्त्री जी ने बताया कि प्रतिवर्ष इस स्थान पर हजारों लोग आते हैं और यहां अस्थाई रूप से कुछ दिनों के लिए रुकते हैं। भागवत कथा को सुनते हैं। उन सभी मानना है कि जिस स्थान पर राजा परीक्षित जी ने प्रथम भागवत कथा सुनी थी। हमको भी उस स्थान पर इस पावन कथा का श्रवण कर स्वयं को धन्य करना है।
अब मैं चर्चा करुंगा एक ऐसे संत की जिन्होंने इस तीर्थ के पुनरोत्थान/ जीर्णोद्धार में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया यह संत भगवान थे स्वामी कल्याण देव जी महाराज। भारत में सैकड़ों ट्रस्टॉ, आध्यात्मिक पीठों की स्थापना करने वाले स्वामी कल्याण देव जी को पद्म भूषण, पद्म विभूषण जैसी उपाधियों से भारत की सरकार ने न सिर्फ सम्मानित किया बल्कि भारत के पहले प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी एवं प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से लेकर माननीय पपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी ने इस स्थान पर आकर या अन्य स्थानों पर सम्मान सम्मान करने हेतु महाराज जी को बुलाकर उनके दर्शन प्राप्त किये। ये सारे चित्र हमें इस स्थान पर निर्मित संग्रहालय में देखने को मिलते हैं। हमें स्वामी कल्याण देव जी की से जुड़े उन सारी सामग्रियों के भी पावन दर्शन हुए जो हमें उनके साक्षात दर्शन की पावन अनुभूति करा रहे थे।
हमारे प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री जी जो स्वयं में योगी है, उनका संतों के प्रति और आध्यात्मिक तीर्थं स्थानों के प्रति लगाव होना स्वाभाविक है। ऐसा इस स्थान के साथ भी है और हमें उनके कुछ चित्र को इस स्थान पर देखकर लग भी रहा था।
इस स्थान पर स्थाई रूप से बना हुआ हेलीपैड इस बात को बयां कर रहा है कि माननीय मुख्यमंत्री जी अक्सर इस स्थान पर आते हैं।
इस पावन यात्रा के समाप्ति पर पूज्य अचल शास्त्री जी ने हमें भेंट स्वरूप एक पुस्तिका ” ऐतिहासिक शुकतीर्थ संक्षिप्त परिचय ” दी, जिसके लेखक हैं स्वामी ओमानंद जी एवं प्रकाशक है श्री सुखदेव आश्रम स्वामी कल्याण देव सेवा ट्रस्ट सुख तीर्थ ( शुक्र ताल ), मुजफ्फरनगर उत्तर प्रदेश।
इस आध्यात्मिक यात्रा ने मुझे न सिर्फ पश्चिम उत्तर प्रदेश के आध्यात्मिक वैभव की यात्रा कराया बल्कि इस यात्रा की समाप्ति पर मैं अपने साथ साहित्यिक आध्यात्मिक और भौतिक अनुभूतियों को लेकर वापस जा रहा हूं।
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© श्री राजेश कुमार सिंह “श्रेयस”
लखनऊ, उप्र, (भारत )
दिनांक 22-02-2025
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈





