श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – आपदा।)

☆ लघुकथा # ८६ – खिलौने वाला श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

क्या बात है, लगता है आज कुछ कमाई नहीं हुई?

हां सच है भगवान भी पैसे वालों की ही मदद करता है उन्हीं को ज्यादा देता है।

लोग दुकानों से बिना मोलतोल के खरीद लेते हैं पर जब हम गरीबों के ठेले पर आते हैं तो बहुत मोल भाव करते हैं।

अब तो चौराहे पर खड़े होते हैं और गाड़ी के सामने जब लोग आ जाते हैं तो सब आगे निकल जाते हैं और वह कहते हैं कि तुमने नया तरीका भीख मांगने का निकाल लिया है कहते हैं, बाबूजी गाड़ी की सफाई कर दें।

तो वह कहते हैं कि अब सारा पैसा हम ही से कमाओगे क्या? एक बेटा था जिसको पढ़ाया लिखाया विदेश भेजा कर्ज लिया। आज उसी ने दाने-दाने को मोहताज किया है।

तभी कमल ने कहा भगवान के घर देर है पर अंधेर नहीं हैं। भगवान सब मदद करेगा अच्छे लोगों की बस।

तुम भगवान की बातें मत करो मेरा खून खोल जाता है।

अचानक किशोर जी बाहर जाते हैं और वह गिर जाते हैं।

उनकी पत्नी कमला मदद के लिए लोगों को बुलाती है।

तभी अचानक एक आदमी आता और कहता है – अरे! आंटी मैं आपके पास आया था कल हमारे घर में पार्टी है उसमें खाना बनाने के लिए चलिए।

अंकल को क्या हो गया मैं अस्पताल ले चलता हूं।

जब अस्पताल पहुंचता है तो वह देखता है कि उस अस्पताल में डॉक्टर दोस्त ही है। अस्पताल यह गुरुजी का है और उनके आश्रम भी है आप लोग वहीं पर क्यों नहीं रहते चलिए अकेले रहने से अच्छा है सबके साथ रहेंगे।

काम भी मिल जाएगा इससे कई लोगों को फिर फायदा होगा। ठीक है बेटा मैं यहां पर एक काउंटर लगा लूंगा और जो भी पैसा मिलेगा उससे तुम अस्पताल और इन बुजुर्गों की सेवा करना मेरा भी मन लगा रहेगा अब इस उम्र में पैसे का क्या  करूंगा? 

जीवन खिलौने ही तो है ।

उसे ऊपर वाले (भगवान) की खेल में हम सब अटक कर खेल रहे हैं।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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