श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

(ई-अभिव्यक्ति में श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’ जी का स्वागत। पूर्व शिक्षिका – नेवी चिल्ड्रन स्कूल। वर्तमान में स्वतंत्र लेखन। विधा –  गीत,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। भाषा ज्ञान – हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत। साहित्यिक सेवा हेतु। कई प्रादेशिक एवं राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा अलंकृत / सम्मानित। ई-पत्रिका/ साझा संकलन/विभिन्न अखबारों /पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। पुस्तक – (1)उमा की काव्यांजली (काव्य संग्रह) (2) उड़ान (लघुकथा संग्रह), आहुति (ई पत्रिका)। शहर समता अखबार प्रयागराज की महिला विचार मंच की मध्य प्रदेश अध्यक्ष। आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – लाजवंती।)

☆ लघुकथा # ८९- लाजवंती श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

हमारी कॉलोनी के लोगों ने एक गेट टूगेदर ग्रुप बनाकर रखा था।

व्हाट्सएप पर रोज गुड मॉर्निंग तो चलती थी 15 दिन में या हम यूं भी कह सकते हैं कि महीने में दो बार सभी कॉलोनी के लोग एक-एक करके सभी के घरों में इसी बहाने आते जाते मिलते थे। एक दूसरे का दुख-सुख भी बाँटते थे। कुछ दिन तो यह सब ठीक चला पर अब तो जाने का मन नहीं करता। पुष्पा जी मन ही मन बड़बड़ा रही थी। तभी अचानक उनके घर उनकी सखी जूही आ गई।

क्या बात है बहन बड़ी उदास दिख रही हो? दरवाजा भी खोल कर बैठी थी क्या मेरा इंतजार कर रही थी?

हां सखी, तुम्हारे आने से फूलों की तरह महक इस कमरे में भर गई, जैसे तुम्हारा जूही नाम है इस तरह तुम जूही हो।

वह तो मैं हूं।

पर अब तुम कहो आज तो हम सभी को मिसेज शर्मा के यहां जाना है। क्या पहन कर जाओगी अच्छे से थोड़ा क्लासी लुक में जाना है वे अमीर तो नहीं है लेकिन  दिखावा बहुत करती हैं।

हां हां बहन सखी दिखावा क्यों ना करें उनका बेटा अमेरिका में काम करता है।

पति का क्या ? जो दूसरी औरत के साथ चला गया ।

जूही लेकिन क्या हुआ?

इन्हें भी तो ₹50,000 महीने के फ्री में देता है बढ़िया फ्लैट है अपने मन से जी रही है।

ठीक है बहन जाने दो चलो इसी बहाने थोड़ा सा हम घूम फिर लेंगे पुष्पा ने कहा।

जूही ने कहा- लेकिन कल अचानक कुछ आवाज तुम्हारे पड़ोस से आ रही थी लोग तरह-तरह की बातें कर रहे हैं।

कैसी बातें कर रहे हैं लोग?

लोगों को कंफ्यूजन है कि तुम्हारे घर में झगड़ा हो रहा था या पड़ोस में।

मैंने सुना मुझे रहा नहीं गया मेरा जी मुंह को आ गया इसलिए मैं चली आई।

ठीक किया सखी जूही ने कहा।

कल मेरी बहू आई थी पोती को लेकर। एक तो कभी  हाल-चाल नहीं पूछते। मुझे 15000 पेंशन मिलती है।

उसमें भी इन लोगों को कुछ पैसे चाहिए थे। वही जोर-जोर से झगड़ा कर रही थी। घर परिवार में उसने ऐसी गुट बाजी कर ली है कि सबको अपनी तरफ कर लिया है और मुझे बुरा बना दिया है। जिसको जैसा दिखती है वैसे ही बात करती है बहुत ही चालाक औरत है और आजकल यह मोबाइल क्या आ गया है पहले तो मुझे गुस्सा दिलाती है फिर मेरी सारी बातें चुपचाप रिकॉर्ड कर लेती है और जाकर मेरे बेटे अमित को सुना देती है अपने अनुसार और पता नहीं क्या-क्या एडिटिंग भी कर लेती है।

इसी शर्म के मारे तो मैं लाजवंती के पुष्प की तरह हो गई हूं लाजवंती हां कभी छुआ है तुमने उसे छूकर देखना तो मेरे मन की दशा को अपने आप तुम समझ जाओगे चलो शाम को मिलते हैं।

© श्रीमति उमा मिश्रा ‘प्रीति’

जबलपुर, मध्य प्रदेश मो. 7000072079

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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