श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है।

ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व बुंदेली के विद्वान स्व. डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तवके संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)

स्व. डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव

☆ कहाँ गए वे लोग # ५७ ☆

☆ बुंदेली के विद्वान स्व. डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ईसुरी बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध लोक कवि हैं, उनकी रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का चित्रण है। बुंदेली बुन्देलखण्ड में बोली जाती है। यह कहना कठिन है कि बुंदेली कितनी पुरानी बोली हैं। भरतमुनि के नाट्य शास्‍त्र में भी बुंदेली बोली का उल्लेख मिलता है। भवभूति उत्तर रामचरित के ग्रामीणों की भाषा विंध्‍येली प्राचीन बुंदेली ही थी। आशय मात्र यह है कि बुंदेली एक प्राचीन, संपन्न, बोली ही नहीं अपितु परिपूर्ण लोकभाषा है। क्षेत्रीय आकाशवाणी केन्द्रों ने इसकी मिठास संजोई हुई है। ऐसी लोकभाषा के उत्थान, संरक्षण व नव प्रवर्तन का कार्य तभी हो सकता है जब क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों, संस्थाओं, पढ़े लिखे विद्वानों के द्वारा बुंदेली में नया रचा जावे। बुंदेली में कार्यक्रम हों। जनमानस में बुंदेली के प्रति किसी तरह की हीन भावना न पनपने दी जावे, वरन उन्हें अपनी भाषा के प्रति गर्व की अनुभूति हो। प्रसन्नता है कि बुंदेली भाषा परिषद, गुंजन कला सदन, वर्तिका, अखिल भारतीय बुन्देलखण्ड साहित्य संस्कृति परिषद, पाथेय, जैसी संस्थाओं ने यह जिम्मेदारी व्यापक स्तर पर उठाई हुई है। प्रति वर्ष 1 सितम्बर को स्व. डा. पूरनचंद श्रीवास्तव जी के जन्म दिवस के सुअवसर पर बुंदेली पर केंद्रित अनेक आयोजन होते हैं।

आवश्यक है कि बुंदेली के विद्वान लेखक, कवि, शिक्षाविद स्व. पूरनचंद श्रीवास्तव जी के व्यक्तित्व, विशाल कृतित्व से नई पीढ़ी को परिचित करते रहें। जमाना इंटरनेट का है, किंतु बुंदेली के विषय में, उसके लेखकों, कवियों, साहित्य आदि के संदर्भ में इंटरनेट पर जानकारी नगण्य है।

स्व. पूरनचंद श्रीवास्तव जी का जन्म 1 सितम्बर 1916 को ग्राम पिपरटहा, तत्कालीन जिला जबलपुर अब कटनी में हुआ था। कायस्थ परिवारों में शिक्षा को हमेशा से महत्व दिया जाता रहा है, उन्होंने अनवरत अपनी शिक्षा जारी रखी और पी एच डी की उपाधि अर्जित की। वे हितकारिणी महाविद्यालय जबलपुर से जुड़े रहे और विभिन्न पदोन्तियां प्राप्त करते हुये प्राचार्य पद से 1976 में सेवानिवृत हुये। यह उनका छोटा सा आजीविका पक्ष था पर इस सबसे अधिक वे बहुत बड़े साहित्यकार थे। बुंदेली लोक भाषा उनकी अभिरुचि का विषय था। उन्होंने बुंदेली में और बुंदेली के विषय में खूब लिखा। रानी दुर्गावती बुंदेलखण्ड का गौरव हैं। वे संभवतः विश्व की पहली महिला योद्धा हैं जिनने रण भूमि में स्वयं के प्राण न्यौछावर किये। “वीरांगना रानी दुर्गावती” पर श्रीवास्तव जी का खण्ड काव्य बहुचर्चित, महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रंथ है। “भौंरहा पीपर” उनका एक और बुंदेली काव्य संग्रह है। भूगोल उनका अति प्रिय विषय था और उन्होंने भूगोल की आधा दर्जन पुस्तकें लिखीं, जो शालाओं में पढ़ाई जाती रही हैं। इसके सिवाय अपनी लम्बी रचना यात्रा में पर्यावरण, शिक्षा पर भी उनकी किताबें हैं, विभिन्न साहित्यिक विषयों पर स्फुट शोध लेख, साक्षात्कार आदि अनेक प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में, आकाशवाणी में प्रकाशित – प्रसारित होते रहे हैं। संगोष्ठियों में सक्रिय भागीदारी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा रहा है। मिलन, गुंजन कला सदन, बुंदेली साहित्य परिषद, आंचलिक साहित्य परिषद जैसी अनेकानेक संस्थायें उन्हें सम्मानित कर स्वयं गौरवांवित होती रही हैं। वे उस युग के यात्री रहे हैं जब आत्म प्रशंसा और स्वप्रचार श्रेयस्कर नहीं माना जाता था, एक शिक्षक के रूप में उनके संपर्क में जाने कितने लोग आते गये और वे पारस की तरह सबको संस्कार देते हुये मौन साधक बने रहे।

उनके कुछ चर्चित बुंदेली गीत उधृत कर रहा हूं . . .

कारी बदरिया उन आई. . .  ️

कारी बदरिया उनआई, हां काजर की झलकार।

 

सोंधी सोंधी धरती हो गई, हरियारी मन भाई,

खितहारे के रोम रोम में, हरख-हिलोर समाई।

 

ऊम झूम सर सर-सर बरसै, झिम्मर झिमक झिमकियाँ।

लपक-झपक बीजुरिया मारै, चिहुकन भरी मिलकियां।

रेला-मेला निरख छबीली- टटिया टार दुवारे,

कारी बदरिया उनआई, हां काजर की झलकार।

 

औंटा बैठ बजावै बनसी, लहरी सुरमत छोरा।

अटक-मटक गौनहरी झूलैं, अमुवा परो हिंडोरा।

 

खुटलैया बारिन पै लहकी, त्योरैया गन्नाई।

खोल किवरियाँ ओ महाराजा सावन की झर आई

ऊँचे सुर गा अरी बुझाले, प्रानन लगी दमार,

कारी बदरिया उन आई, हां काजर की झलकार।

 

मेंहदी रुचनियाँ केसरिया, देवैं गोरी हाँतन।

हाल-फूल बिछुआ ठमकावैं भादों कारी रातन।

माती फुहार झिंझरी सें झमकै लूमै लेय बलैयाँ –

घुंचुअंन दबक दंदा कें चिहुंकें, प्यारी लाल मुनैयाँ।

हुलक-मलक नैनूँ होले री, चटको परत कुँवार,

कारी बदरिया उनआई, हाँ काजर की झलकार।

 

इस बुंदेली गीत के माध्यम से उनका पर्यावरण प्रेम स्पष्ट परिलक्षित होता है।

इसी तरह उनकी एक बुन्देली कविता में जो दृश्य उन्होंने प्रस्तुत किया है वह सजीव दिखता है।

 

बिसराम घरी भर कर लो जू. . .

बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां,

ढील ढाल हर धरौ धरी पर, पोंछौ माथ पसीना।

तपी दुफरिया देह झांवरी, कर्रो क्वांर महीना।

भैंसें परीं डबरियन लोरें, नदी तीर गई गैयाँ।

बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां।

 

सतगजरा की सोंधी रोटी, मिरच हरीरी मेवा।

खटुवा के पातन की चटनी, रुच को बनों कलेवा।

करहा नारे को नीर डाभको, औगुन पेट पचैयाँ।

बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां।

 

लखिया-बिंदिया के पांउन उरझें, एजू डीम-डिगलियां।

हफरा चलत प्यास के मारें, बात बड़ी अलभलियां।

दया करो निज पै बैलों पै, मोरे राम गुसैंयां।

बिसराम घरी भर कर लो जू, झपरे महुआ की छैंयां।

 

वे बुन्देली लोकसाहित्य एवं भाषा विज्ञान के विद्वान थे। सीता हरण के बाद श्रीराम की मनः स्थिति को दर्शाता उनका एक बुन्देली गीत यह स्पष्ट करने के लिये पर्याप्त है कि राम चरित मानस के वे कितने गहरे अध्येता थे।

अकल-विकल हैं प्रान राम के–

अकल-विकल हैं प्रान राम के बिन संगिनि बिन गुँइयाँ।

फिरैं नाँय से माँय बिसूरत,करें झाँवरी मुइयाँ।

 

पूछत फिरैं सिंसुपा साल्हें, बरसज साज बहेरा।

धवा सिहारू महुआ-कहुआ, पाकर बाँस लमेरा।

वन तुलसी वनहास माबरी, देखी री कहुँ सीता।

दूब छिछलनूं बरियारी ओ, हिन्नी-मिरगी भीता।

खाई खंदक टुंघ टौरियाँ, नादिया नारे बोलौ।

घिरनपरेई पंडुक गलगल, कंठ – पिटक तौ खोलौ।

ओ बिरछन की छापक छंइयाँ, कित है जनक-मुनइयाँ ?

अकल-विकल हैं प्रान राम के बिन संगिनि बिन गुँइयाँ।

 

उपटा खांय टिहुनिया जावें, चलत कमर कर धारें।

थके-बिदाने बैठ सिला पै, अपलक नजर पसारें।

मनी उतारें लखनलाल जू, डूबे घुन्न-घुनीता।

रचिये कौन उपाय पाइये, कैसें म्यारुल सीता।

आसमान फट परो थीगरा, कैसे कौन लगावै।

संभु त्रिलोचन बसी भवानी, का विध कौन जगावै।

कौन काप-पसगैयत हेरें, हे धरनी महि भुंइयाँ।

अकल-विकल हैं प्रान राम के बिन संगिनि बिन गुँइयाँ।

 

बुंदेली भाषा का भविष्य नई पीढ़ी के हाथों में है, अब वैश्विक विस्तार के सूचना संसाधन कम्प्यूटर व मोबाईल में निहित हैं, समय की मांग है कि स्व. डा. पूरनचंद श्रीवास्तव जैसे बुंदेली के विद्वानों को उनका समुचित श्रेय व स्थान, प्रतिष्ठा मिले व बुंदेली भाषा की व्यापक समृद्धि हेतु और काम किया जावे।

© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार

संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023 मोब 7000375798, ईमेल apniabhivyakti@gmail.com

संकलन – श्री प्रतुल श्रीवास्तव

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

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आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १ ☆ कहाँ गए वे लोग – “पंडित भवानी प्रसाद तिवारी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २ ☆ डॉ. राजकुमार तिवारी ‘सुमित्र’ ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५ ☆ व्यंग्यकार श्रीबाल पाण्डेय ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ७ ☆ “स्व गणेश प्रसाद नायक” – लेखक – श्री मनोहर नायक ☆ प्रस्तुति  – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ८ ☆ “बुंदेली की पाठशाला- डॉ. पूरनचंद श्रीवास्तव” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ९ ☆ “आदर्श पत्रकार व चिंतक थे अजित वर्मा” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ११ – “स्व. रामानुज लाल श्रीवास्तव उर्फ़ ऊँट बिलहरीवी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १२ ☆ डॉ. रामदयाल कोष्टा “श्रीकांत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆   

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १३ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, लोकप्रिय नेता – नाट्य शिल्पी सेठ गोविन्द दास ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १४ ☆ “गुंजन” के संस्थापक ओंकार श्रीवास्तव “संत” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १५ ☆ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कविवर – पंडित गोविंद प्रसाद तिवारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆ 

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १७ – “डॉ. श्री राम ठाकुर दादा- समाज सुधारक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १८ – “राजकुमार सुमित्र : मित्रता का सगुण स्वरुप” – लेखक : श्री राजेंद्र चन्द्रकान्त राय ☆ साभार – श्री जय प्रकाश पाण्डेय☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १९ – “गेंड़ी नृत्य से दुनिया भर में पहचान – बनाने वाले पद्मश्री शेख गुलाब” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

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हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २१ – “ज्ञान और साधना की आभा से चमकता चेहरा – स्व. डॉ कृष्णकांत चतुर्वेदी” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २२ – “साहित्य, कला, संस्कृति के विनम्र पुजारी  स्व. राजेन्द्र “रतन”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २३ – “मेरी यादों में, मेरी मुंह बोली नानी – सुभद्रा कुमारी चौहान” – डॉ. गीता पुष्प शॉ ☆ प्रस्तुती – श्री जय प्रकाश पांडे ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २४ – “संस्कारधानी के सिद्धहस्त साहित्यकार -पं. हरिकृष्ण त्रिपाठी” – लेखक : श्री अजय कुमार मिश्रा ☆ संकलन – श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २५ – “कलम के सिपाही – मुंशी प्रेमचंद” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २६ – “यादों में रहते हैं सुपरिचित कवि स्व चंद्रकांत देवताले” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २७– “स्व. फ़िराक़ गोरखपुरी” ☆ श्री अनूप कुमार शुक्ल ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २८ – “पद्मश्री शरद जोशी” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # २९ – “सहकारिता के पक्षधर विद्वान, चिंतक – डॉ. नंद किशोर पाण्डेय” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३० – “रंगकर्मी स्व. वसंत काशीकर” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३१ – “हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, फारसी के विद्वान — कवि- शायर पन्नालाल श्रीवास्तव “नूर”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३२ – “साइकिल पर चलने वाले महापौर – शिक्षाविद्, कवि पं. रामेश्वर प्रसाद गुरु” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३३ – “भारतीय स्वातंत्र्य समर में क्रांति की देवी : वीरांगना दुर्गा भाभी” ☆ डॉ. आनंद सिंह राणा ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३४ –  “जिनके बिना कोर्ट रूम भी सूना है : महाधिवक्ता स्व. श्री राजेंद्र तिवारी” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३५ – “सच्चे मानव – महेश भाई” – डॉ महेश दत्त मिश्रा” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३६ – “महिलाओं और बच्चों के लिए समर्पित रहीं – विदुषी समाज सेविका श्रीमती चंद्रप्रभा पटेरिया” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३७ – “प्यारी स्नेहमयी झाँसी वाली मामी – स्व. कुमुद रामकृष्ण देसाई” ☆ श्री सुधीरओखदे   ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३८ – “जिम्मेदार शिक्षक – स्व. कवि पं. दीनानाथ शुक्ल” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३९ – “सहृदय भावुक कवि स्व. अंशलाल पंद्रे” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४० – “मानवीय मूल्यों को समर्पित- पूर्व महाधिवक्ता स्व.यशवंत शंकर धर्माधिकारी” ☆ डॉ.वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४१ – “प्रखर पत्रकार, प्रसिद्ध कवि स्व. हीरालाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४२ – “जिनकी रगों में देशभक्ति का लहू दौड़ता था – स्व. सवाईमल जैन” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४३ – “संवेदनशील कवि – स्व. राजेंद्र तिवारी “ऋषि”” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४४ – “कर्णदेव की दान परम्परा वाले, कटनी के पान विक्रेता स्व. खुइया मामा” ☆ श्री राजेंद्र सिंह ठाकुर ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४५ –  “सिद्धांतवादी पत्रकार – स्व. महेश महदेल” ☆ डॉ. वंदना पाण्डेय ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४६ – “मधुर गीतकार-  स्व. कृष्णकुमार श्रीवास्तव ‘श्याम’” ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४७ – “साहित्य के प्रति समर्पित : आदरणीय राजकुमार सुमित्र जी” ☆ श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४८ – “गीतों के राजकुमार मणि “मुकुल”- स्व. मणिराम सिंह ठाकुर “मणि मुकुल”  ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४९ – “शिक्षाविद और सहकारिता मनीषी – स्व. डा. सोहनलाल गुप्ता” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५० – “मंडला, जबलपुर के गौरव रत्न – श्रद्धेय स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५१ – “चर्चित कथाकार एवं मेरे श्रद्धेय अग्रज –  स्व. श्री हर्षवर्धन जी पाठक” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५२ – “सुप्रसिद्ध साहित्यकार और शिक्षाविद – स्व. श्री इन्द्र बहादुर खरे और उनका सृजन” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५३ – “प्रखर पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी – स्व. पं. कुंजबिहारी जी पाठक” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५४ – “माडल हाई स्कूल के पूज्य शिक्षक स्मृति शेष रमेश कुमार पांडेय जी” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५४ – “माडल हाई स्कूल के पूज्य शिक्षक स्मृति शेष रमेश कुमार पांडेय जी” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ५५ – “बहुमुखी प्रतिभा के धनी – स्व. प्रोफेसर एन. बी.गोस्वामी” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆

हिन्दी साहित्य – जीवन यात्रा ☆ कहाँ गए वे लोग # ५६ – सरस्वती पुत्र स्व प्रोफ़ेसर चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध ☆ श्री सुरेश पटवा ☆

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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