श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। अब आप प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकते हैं यात्रा संस्मरण – सगरमाथा से समुन्दर)

? यात्रा संस्मरण – सगरमाथा से समुन्दर – भाग-८ – काठमांडू ☆ श्री सुरेश पटवा ?

भक्तपुर से वापसी में काठमांडू के प्रसिद्ध स्थानों को देखते हुए आये। भक्तपुर- काठमांडू मार्ग पर नेपाली संसद जिसे संघीय परिषद कहते हैं, के साथ विभिन्न मंत्रालय भवन बने हुए हैं। राजधानी बहुत ही सघन तरीक़े से बस चुकी है। कहीं भी ख़ाली जगह नहीं दिखती।

राजमहल जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू होने के बाद से संग्रहालय बना दिया गया है, उसे देखा।  उसके बाद काठमांडू के हनुमान ढोका दरबार देखने गये। मल्ल युगीन वास्तुकला के भवन और मंदिर देखे। वहाँ से स्वयंभू नाथ मंदिर पहुँचे। मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है। स्थान भ्रमण पूर्व वहाँ का इतिहास जानना ज़रूरी है। तब ही हम भ्रमण का आनंद ले सकते हैं। 

काठमांडू का प्राचीन इतिहास इसके पारंपरिक मिथकों और किंवदंतियों में वर्णित है। स्वयंभू पुराण के अनुसार, वर्तमान काठमांडू कभी “नागदहा” नाम की एक विशाल और गहरी झील थी, क्योंकि यह सांपों से भरी हुई थी। बोधिसत्व मंजुश्री ने अपनी तलवार से सरोवर को काट कर  वहां से पानी निकाल दिया गया। इसके बाद उन्होंने मंजुपट्टन नामक एक शहर की स्थापना की, और धर्मकार को घाटी की भूमि का शासक बनाया। कुछ समय बाद, एक राक्षस ने निकासी बंद कर दी, घाटी फिर से एक झील में बदल गई। तब भगवान कृष्ण नेपाल आए, राक्षस का वध किया और सुदर्शन चक्र से चोभर पहाड़ी के किनारे को काटकर फिर से पानी निकाला। वह अपने साथ कुछ गोपालों को लाये और भुक्तमन को नेपाल का राजा बनाया। शिव पुराण की कोटिरुद्र संहिता, अध्याय 11, श्लोक 18 इस स्थान को नयापाल शहर के रूप में संदर्भित करता है, जो अपने पशुपति शिवलिंग के लिए प्रसिद्ध था। नेपाल नाम की उत्पत्ति संभवत: इसी शहर नयापाला से हुई है।

काठमांडू शहर दुनिया के सबसे पुराने बसे हुए स्थानों में से एक है। इसकी स्थापना दूसरी शताब्दी ईस्वी में हुई थी। घाटी को ऐतिहासिक रूप से “नेपाल मंडला” कहा जाता था और यह नेवार लोगों का घर रहा है, जो हिमालय की तलहटी में एक शहरी सभ्यता थी। यह शहर नेपाल साम्राज्य की शाही राजधानी था और नेपाली अभिजात वर्ग के महलों, मकानों और उद्यानों में अतिथियों की मेजबानी करता था। यह 1985 से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) का मुख्यालय रहा है। काठमांडू नेपाल के बागमती प्रांत में स्थित नेपाली गणराज्य सरकार की राजधानी है।

काठमांडू कई वर्षों से नेपाल के इतिहास, कला, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का केंद्र रहा है। हिंदू और बौद्ध बहुमत के साथ बहु-जातीय आबादी वाला नगर है। धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव काठमांडू में रहने वाले लोगों के जीवन का एक प्रमुख हिस्सा हैं। पर्यटन अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 2013 में, काठमांडू को दुनिया के शीर्ष दस पर्यटन स्थलों में तीसरा स्थान दिया गया था, और एशिया में पहले स्थान पर था। शहर को नेपाली हिमालय का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह कई विश्व धरोहर स्थलों का घर है: जिनमें दरबार स्क्वायर, स्वयंभूनाथ, बौधनाथ और पशुपतिनाथ प्रमुख हैं। 2010 में विश्व बैंक के अनुसार काठमांडू घाटी प्रति वर्ष 4 प्रतिशत की दर से फैल रही है, जिससे यह दक्षिण एशिया में सबसे तेजी से बढ़ते महानगरीय क्षेत्रों में से एक बन गया है। नेपाल में पहला क्षेत्र है जो तेजी से शहरीकरण और आधुनिकीकरण की अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रहा है।

भूगर्भीय प्लेटों के खिसकने से हिमालयी बसावटों में भूकम्प आते रहते हैं। एक बहुत बड़ा भूकम्प 1934 में आया था। काठमांडू और भक्तपुर के हेरिटेज भवनों को भारी नुक़सान हुआ था। फिर अप्रैल 2015 में 7.8 रीऐक्टर से आए भूकंप ने काठमांडू के ऐतिहासिक क्षेत्र बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिए थे। कुछ इमारतों को बहाल कर दिया गया है जबकि कुछ पुनर्निर्माण की प्रक्रिया में हैं। जिन्हें हमने आज के भ्रमण में देखा।

काठमांडू के लिए स्वदेशी नेपाल भासा शब्द येन है। नेपाली नाम काठमांडू काठमंडपम से आया है, जो दरबार स्क्वायर में खड़ा था। संस्कृत में काष्ठ का अर्थ है “लकड़ी” और मण्डपम का अर्थ है “मंडप”। यह सार्वजनिक मंडप है जिसे नेवाड़ी में मारू सत्ता के नाम से भी जाना जाता है। इसका पुनर्निर्माण 1596 में राजा लक्ष्मी नरसिंह मल्ल के काल में बिसेठ द्वारा किया गया था। तीन मंजिला संरचना पूरी तरह से लकड़ी से बनी थी और इसमें न तो लोहे की कीलों का इस्तेमाल किया गया है और न ही किसी अन्य सहारे का। किंवदंतियों के अनुसार, शिवालय के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली सभी लकड़ी एक ही पेड़ से प्राप्त की गई थी। अप्रैल 2015 में एक बड़े भूकंप के दौरान वह संरचना ढह गई। अभी सहारा देकर खड़ी की जा रही रही है। कई लकड़ी के खम्भे और मियारें बदली जा रही हैं।

प्राचीन पांडुलिपियों के कॉलोफ़ोन, काठमांडू को नेपाल मंडल में काठमांडप महानगर के रूप में संदर्भित करते हैं। बौद्ध लामा आज भी इसका पाठ काठमनाप करते हैं। इस प्रकार, काठमांडू को काठमांडप के नाम से भी जाना जाता है। मध्ययुगीन काल के दौरान, शहर को कभी-कभी कांतिपुर कहा जाता था। यह नाम संस्कृत के दो शब्दों – कांति और पुर से मिलकर बना है। कांति एक ऐसा शब्द है जो “सौंदर्य” के अर्थ में प्रयुक्त होता है। सौंदर्य ज्यादातर प्रकाश से जुड़ा है और पुर का अर्थ है स्थान, इस प्रकार इसका अर्थ “प्रकाश का शहर” है।

स्वदेशी नेवार लोगों में, काठमांडू को ये डे (नेवार: येँ दि) के नाम से जाना जाता है, और पाटन और भक्तपुर को क्रमशः याला डे (नेवार: कील दे) और ख्वापा डे (नेवार: ख्वाप द्) के नाम से जाना जाता है। “येन” यंबू (नेवार: यम्बु) का छोटा रूप है, जो मूल रूप से काठमांडू के उत्तरी भाग को संदर्भित करता है। पुरानी उत्तरी बस्तियों को यांबी कहा जाता था जबकि दक्षिणी बस्ती को यांगला के नाम से जाना जाता था। वर्तनी “काटमांडू” का प्रयोग अक्सर पुराने अंग्रेजी भाषा के पाठ में किया जाता था। हाल ही में, हालांकि, अंग्रेजी में “काठमांडू” वर्तनी अधिक सामान्य हो गई है।

काठमांडू के कुछ हिस्सों में पुरातात्विक खुदाई में प्राचीन सभ्यताओं के प्रमाण मिले हैं। मालीगांव में पाई गई सबसे पुरानी एक मूर्ति 185 ईस्वी सन् की थी। ढांडो चैत्य की खुदाई में ब्राह्मी लिपि में एक शिलालेख के साथ एक ईंट का पता चला है।  पुरातत्वविदों का मानना ​​है कि यह दो हजार साल पुराना है। पाषाण शिलालेख नेपाल के इतिहास के प्रमुख स्रोत हैं।

काठमांडू का सबसे पहला पश्चिमी संदर्भ पुर्तगाली जेसुइट के एक उल्लेख में प्रकट होता है। जोआओ कैब्राल जो 1628 के वसंत में काठमांडू घाटी से गुजरे थे और उस समय के राजा, शायद काठमांडू के राजा लक्ष्मीनरसिंह मल्ल द्वारा तिब्बत से भारत के रास्ते में उनका स्वागत किया गया था। उन्होंने बताया कि वे नेपाल साम्राज्य की राजधानी “कैडमेन्डु” पहुंचे।

मध्ययुगीन लिच्छवी शासकों से पहले की अवधि के बहुत कम ऐतिहासिक अभिलेख मौजूद हैं। नेपाली राजशाही की वंशावली गोपालराज वंशावली के अनुसार, लिच्छवियों से पहले काठमांडू घाटी के शासक गोपाल, महिपाल, आभीर, किरात और सोमवंशी थे। किरात वंश की स्थापना यलम्बर ने की थी। किरात युग के दौरान, पुराने काठमांडू के उत्तरी भाग में यंबू नामक एक बस्ती मौजूद थी। कुछ चीनी-तिब्बती भाषाओं में, काठमांडू को अभी भी यंबू कहा जाता है। येंगल नामक एक और छोटी बस्ती मंजुपट्टन के पास पुराने काठमांडू के दक्षिणी हिस्से में मौजूद थी। सातवें किरात शासक, जितेदास्ती के शासनकाल के दौरान, बौद्ध भिक्षुओं ने काठमांडू घाटी में प्रवेश किया और सांखू में एक वन मठ की स्थापना की।

1950 के दशक में काठमांडू और इसके आसपास के अन्य शहरों जैसे पाटन में जनसंख्या में बड़ी वृद्धि देखी गई। हालांकि, भक्तपुर राजधानी से बहुत दूर था और काठमांडू घाटी के अन्य शहरों में हुए विकास से बचा हुआ था। भक्तपुर भी केंद्रीय शक्तियों द्वारा बहुत अलग-थलग और उपेक्षित था। जब एक नया राजमार्ग बनाया गया, तो यह शहर को पूरी तरह से बायपास करता था और इसके बजाय बाहरी इलाके से होकर गुजरता था। 1962 में भक्तपुर का हवाई दृश्य देखने पर दूर दाईं ओर न्यातापोला मंदिर और पृष्ठभूमि में लंगटांग पहाड़ दिखता था। पहाड़ टूटने और बारिश से सघन हरियाली ने उनको ढँक दिया है।

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18 जून 2022 को सुबह सात बजे काठमांडू से पोखरा जाने हेतु बस में  सवार हुए। बस स्थानक पर भारत में सात रुपयों में मिलने वाली चाय तीस रुपयों में ख़रीद कर पी। एक आरामदायक सोफ़ानुमा सीट वाली बस में सबसे पीछे की सीट मिली। पोखरा नेपाल के पश्चिमांचल विकास क्षेत्र जिसकी सीमा उत्तराखंड से मिलती है, का एक पर्यटन नगर है। यह गण्डकी अंचल के कास्की जिला के पोखरा घाटी मैं स्थित है। पोखरा नेपाल का दूसरा बडा शहर है। पोखरा नेपाल के पश्चिमांचल विकास क्षेत्र, गण्डकी अंचल और कास्की जिला का सदरमुकाम है।

नेपाल का पृथ्वी राजमार्ग राजधानी काठमाण्डौ, भरतपुर और देश के पूर्वी क्षेत्र से पोखरा को जोडता है। सिदार्थ राजमार्ग भैरहवा के सिमा से बुटवल होते हुए पोखरा को जोडता है। पोखरा-बाग्लुंग-बेनी सडक पोखरा को उत्तर पश्चिम के मुक्तिनाथ, मुस्तांग से जोडती है। शहरी यातायात सहज है। टैक्सी कहीं भी मिल सकती है। पोखरा मैं एक अंतर्देशीय विमानस्थल है। इस विमानस्थल को अन्तराष्ट्रीय बनाने का प्रयास हो रहा है। अभी यहाँ से काठमाण्डौ, भरतपुर व जोमसोम तक की उडान उपलब्ध है। पोखरा से दिल्ली तक सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है। आप नेपाल में हैं तो गांधी मार्ग, नेहरू चौक, शास्त्री नगर, इंदिरा मार्केट जैसे शब्दों जिनसे कुछ लोगों की चिढ़ होती है, उनसे मुक्त हैं। बस को चले एक घंटा होने को आया है परंतु आप अभी काठमांडू से बाहर नहीं निकले हैं। जब आप बस्ती पीछे छोड़ेंगे तब हिमालय के पहाड़ों से बातें कर रहे होंगे। नेपाल में रेल नहीं होने से सड़क यातायात एकमात्र आवागमन का साधन है तो ट्राफ़िक की कल्पना की जा सकती है। हम एक पहाड़ की चढ़ाई से गुज़र रहे हैं। सोचा अब काठमांडू से बाहर निकल जाएँगे। लेकिन यह क्या, पहाड़ पार करते ही फिर मकानों की क़तार शुरू हो गई। समतल ज़मीन नहीं होने से सभी मकान चार मंज़िला हैं। भूकम्प संवेदी क्षेत्र होने से अधिक ऊँचे मकान बना नहीं सकते। पहाड़ों को ही कटना मिटना होगा। पहली बस्ती चंद्रागिरी आई। थोड़ी देर में पता चला कि आगे एक घाटी में पूरी बस्ती आबाद है। जैसे-जैसे आबादी का दबाव बढ़ता जाएगा घाटियाँ और पहाड़ियाँ आबाद होती जायेंगी।     

आपने अक्सर नेपालियों के उदास कठोर चेहरों को देखा होगा। उनकी लम्बाई ज़्यादा नहीं होती है। पहाड़ों पर चढ़ने-उतरने से शरीर के पिछले तरफ़ मोटापा नहीं होकर सपाट होता है। वे अपने इलाक़े का प्रतिबिम्ब होते हैं। पहाड़ी लोग चेहरे पर एक अजीब सी उदासी लिए होते हैं वहीं सागरों के नज़दीकी लोग लहरों सी चंचलता से आँखें मटकाते रहते हैं। पहाड़ों पर उदासी का आलम होता है परंतु यहाँ के पहाड़ सदाबहार हैं। यहाँ पर्णपाती वन नहीं होते। बारिश और समुद्रतल से ऊँचाई के कारण हमेशा पेड़ों की मखमली चादर से ढँके पहाड़ों पर बादलों के सफ़ेद टुकड़े और आती जाती धुँध उदासी को निराशा में नहीं बदलने देती। ढाबे या रास्तों के होटल को खाजा घर लिखते हैं। एक खाजा घर पर बस रुकी। चना मसाला प्याज़ नीबू के साथ पिछत्तर रुपए में लिया। बस चलने लगी तो चना ज़ोर गरम बस में ही खाया।

एक घंटे बाद बस ड्राइवर ने त्रिशूली नदी के किनारे एक खाजा घर पर पच्चीस मिनट का लंच स्टॉप दिया। नदी किनारे पराठा और टमाटर चटनी का भोजन ग्रहण करते नदी की प्रकृति को निहारते रहे। सामने ही नदी एक भँवर बना रही थी। पानी की तरह आदमी को भी थोड़ी सी अधिक जगह मिले तो वह भी पसरने लगता है। वहीं दिल का भँवर बनता है। दिल का भँवर करे पुकार-प्यार का राग सुनो। जीवन के तेज बहाव में जो कचरा इकट्ठा होता है वह पीछा नहीं छोड़कर वहीं घूमता है। आदमी भी घूमने लगता है। भँवर से निकलने के लिए हिकमत और हिम्मत दरकार होती है। अन्यथा जीवन का भँवर आदमी को शराब की प्यालियों के साथ ग़म के सागर में डुबो देता है।

एक बड़ी बस्ती चरौंदी आई। उसके बाद एक लम्बा दर्रा शुरू हुआ है, जिसमें भू-ऋखलन होने से बस चींटी की तरह रेंगती रही। दाहिनी तरफ त्रिशूली नदी संकरे पहाड़ी दर्रे से चिपकी सड़क के साथ चलती रही। नदी के भूरे से पानी और ऊँची पहाड़ी हरियाली के बीच चींटी की तरह रेंगते रहे। एक छोटी बस्ती मुग्लिंग के बाद सड़क के बाएँ तरफ़ से एक नदी साथ चलने लगी। दाहिनी तरफ़ वाली नदी का साथ छूट गया। ज़िंदगी में आदमियों का साथ भले ही छूट जाए पर पहाड़ों में झरनों और नदियों का साथ नहीं छूटता। वे घूमफिर कर कहीं न कहीं मिल जाते हैं। आपको अकेला नहीं छोड़ते। समतल ज़मीन पर पहुँचा कर आगे निकल जाते हैं। थोड़ी बड़ी बस्तियाँ आंबुखैरेनी, तनहुँ, दामौली के बाद दोनों नदियों का संगम हो गया। वे फिर पश्चिम की तरफ़ चल पड़ीं। वहाँ गंडक नदी उनका रास्ता देख रही है। बारिश के दिनों में तीनों मिलकर बिहार की तराई में तबाही मचा कर गंगा में मिलेंगी और गंगा भारतीय संस्कृति की तरह सबको समाहित करके बंगाल की खाड़ी में आश्रय पायेगी।

पोखरा

पोखरा शहर नेपाल के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। यह काठमांडू के बाद नेपाल का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। यह अन्नपूर्णा पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यह एवरेस्ट ट्रैकिंग बेस कैंप सहित कई बाहरी गतिविधियों का केंद्र है। यहाँ अन्नपूर्णा सर्किट ट्रैक होने के कारण ट्रैकरों की भारी भीड़ रहती है। ऊँची पहाड़ी चोटियाँ, झील व नदी इस शहर के सौंदर्य में इज़ाफा करते हैं। आप इस शहर की साहसिक यात्रा कर सकते हैं और आसान दर्शनीय स्थलों की यात्रा का भी आनंद ले सकते हैं। काठमांडू के बाद सर्वाधिक लोग इस जगह की यात्रा करते हैं। पोखरा के सुंदर दृश्य, पहाड़ों पर सूर्य और चंद्रमा की लाल, पीली, सुनहरी और धवल छाया, प्राचीन झील के किनारे राहत की साँस सुप्त जीवन को जगाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते है।

आप पोखरा शहर में अन्नपूर्णा पर्वत की तलहटी में छुट्टी बिता सकते हैं। शहर और उसके आसपास चलने और ट्रेकिंग परीक्षणों का आनंद ले सकते हैं, पर्वतारोहण भी कर सकते हैं। पोखरा शहर की गलियों और बाजारों में खरीदारी कर सकते हैं। पेड़ों के साये में शहर के परिदृश्य का शानदार नजारा देख सकते हैं। शहर की सड़कों पर भोजनालय, क्लब और बार कई स्थान पर खुले मिलते हैं। जहां आप भोजन के साथ मनोरंजक गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं। पोखरा अतुलनीय नज़ारों का भंडार है जो साल भर पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ आकर अविस्मरणीय सफर की नींव रखी जा सकती है।

हमारी बस शाम को चार बजे पोखरा पहुँच गई। जवाहर जी ने होटल आयस्लेंड में कमरा बुक कर रखा था। कमरे में पहुँच एक कप गरम चाय पीकर अपना एनर्जी स्विच ऑन किया। नहा धोकर दिन भर की थकान उतारी। तैयार होकर पैदल ही फेवा झील किनारे घूमने निकल गये। अधिक दूर नहीं थी। दस मिनट में फेवा झील पहुँच गये। नौकायन का आनंद लिया।

यह नेपाल की दूसरी सबसे बड़ी झील है। इसकी खास बात यह है कि इसके पारदर्शी जल में अन्नपूर्णा व धौलागिरी पर्वत श्रृंख्लाओं का प्रतिबिंब साफ झलकता है। लेकिन बादल और बारिश की संगत से प्रतिबिम्ब का कोई पता नहीं था। हाँ आस-पास के पहाड़ी पेड़-पौधे स्वच्छ जल में लहराते दिखे जिससे झील का पानी हरा नज़र आ रहा था। नज़ारा इतना अद्भुत कि आप बिना पलक झपकाए घंटों तक बस इस झील के पानी को देख सकते है। आपको किसी साथी की भी ज़रूरत महसूस नहीं होगी। यहाँ बैठकर दुनिया के सबसे मनोरम सूर्यास्त के आप गवाह बन सकते थे परंतु बारिश की रिमझिम में सूर्य भगवान भी छिपे रहे। गंगा आरती की तरह यहाँ भी शाम को झील किनारे देवी आरती होने लगी है।

झील में नौकायन हेतु भावताव की प्रक्रिया में आधा घंटा निकला लेकिन छै सौ रुपया में जाने वाली नौका तीन अन्य सैलानियों के साथ साझा करने से तीन सौ में सौदा तय हुआ। नौका से वराही मंदिर द्वीप पर गये। इसके अन्य नाम है – झील मंदिर व वराही मंदिर। यह मंदिर वराही देवी को संमर्पित है जिन्हें माँ दुर्गा का ही रूप माना जाता है। यहाँ दो मंज़िला पगोड़ा भी है। इस द्वीप की मान्यता हिन्दूओं व बौद्धिष्टों दोनों के बीच एक समान है। यह मंदिर अराधना का केन्द्र है। इसकी मुख्य मूर्ति पारंपरिकता की झलक बिखेरती है जो लकड़ी, ईंट व पत्थर से बनी है। यह मान्यता है कि माँ दुर्गा ने वराही का अवतार राक्षसों को मारने के लिए धारण किया था। यह मंदिर शक्ति का प्रतीक है। मंदिर की परिक्रमा करके नौकायन सम्पन्न हुआ। नौकायन के बाद झील के किनारे ही घूमते रहे। अंत में एक अच्छे से दिखते रेस्टोरेंट में भोजन करके होटल में आराम किया।   

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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