श्री राकेश कुमार
(ई- अभिव्यक्ति में श्री राकेश कुमार जी का स्वागत है। भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।”
आज प्रस्तुत है स्मृतियों के झरोखे से अतीत और वर्तमान को जोड़ता हुए रोचक आलेख “गुड़” की श्रृंखला का दूसरा भाग।)
☆ आलेख ☆ गुड़ – भाग -2 ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे कवियों की कल्पना की उड़ान भी बड़ी ऊंची होती हैं। एक गीतकार ने तो यहां तक कह दिया “गुड़ नाल (से) इश्क मीठा” होता हैं।
गुड़ खाने की आदत भी किसी नशे से कम नहीं होती हैं। पुराने जमाने में एक बहुत ही पहुंचे हुए साधु थे, सभी की समस्या चुटकी में सुलझा देते थे। एक दिन स्त्री अपने पुत्र को ले कर आई और कहा मेरा पुत्र गुड़ बहुत अधिक मात्रा में सेवन करता है, इसकी ये आदत छुड़वा दीजिए। साधु ने उनको तीन दिन बाद आने के लिए कहा, उसके बाद उस बालक का गुड़ खाना बंद हुआ। साधु के शिष्यों ने पूछा आप ने इतनी आसान सी समस्या को सुलझाने में तीन दिन का समय क्यों लिया। साधु बोले मैं स्वयं बहुत गुड़ खाता था, और चाह कर भी नहीं छोड़ पा रहा था, तो किस हक़ से इस बालक से छोड़ने के लिए कह सकता था।
कुल मिलाकर गुड़ चीज़ ही ऐसी है। यदि आप किसी के चेहरे से मन की खुशी समझ सकते हैं, तो किसी गूंगे को गुड़ खाने के बाद उसके चेहरे को देखें।
लोक भाषा में तो “गुड़ गोबर” का प्रयोग भी दैनिक भाषा में बहुधा हो ही जाता हैं।
पंजाब प्रांत में तो स्त्री की सुंदरता का बखान “मर जवां गुड़ खाके” शब्द बोलकर किया जाता है। जयपुर शाखा में हमारे एक वरिष्ठ अधिकारी जो विदेश पदस्थापना में लंबा समय बीता कर स्वदेश लौटे थे। उन्होंने कहा सर्दी सीजन में लंच करने के बाद गुड़ खाया करे, बाज़ार से ले आना। दूसरे दिन उन्होंने पूछा की अच्छे गुड़ की पहचान क्या होती है। हमने कहा गुड़ तो सभी अच्छे होते हैं, तो वो बोले जिस गुड़ की ढेरी पर सब से अधिक चिंटे चिपके हो, वो ही गुड़ सब से बढ़िया और मीठा होता हैं। तो जब भी गुड़ खरीदने जाए तो इस बात का ध्यान अवश्य रखें।
© श्री राकेश कुमार
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