सुश्री प्रणिता खंडकर

 ☆ कथा कहानी  – “लाईफ सर्टिफिकेट…☆ सुश्री प्रणिता खंडकर ☆

आज बहुत दिनों के बाद मनोज को फुरसत मिली थी |इसलिए आॅफिस छुटतेही उसके पैर मरिन ड्राईव्ह के समुंदर किनारे की तरफ बढे |वहाँ के कटहरे पर बैठ कर  समुंदर की लहरें तथा आसपास के नजारों को निहारना उसे बेहद पसंद था | मानसी, मयूरी को लेकर आज मैके गई थी, घाटकोपर में | वे दोनों रात में वहीं ठहरनेवाली थी| आज बाहर खाना खाकर ही घर जाने का मनोज का विचार था |

वह चने और मूँगफली की पुडियाँ हाथों में थामकर कटहरे पर जा बैठा | कुछ समय बाद  एक वयस्क दंपति आकर उससे थोडी सी दूरी पर, बैठ गए | उसने सहजता से उनकी तरफ देखा तो उसके ध्यान में आया की, ये दोनों तो दोपहर में उसके दफ्तर में आये थे | NEFT और लाईफ सर्टिफिकेट जमा करवाने! उसने उन्हें बताया था कि उनको इतनी दूर, नरिमन पॉइंट के आफिस तक आने की जरूरत नहीं थी | घर से नजदीक की एल. आय. सी. की किसी भी शाखा में यह काम हो सकता है |

कर्जत से, बहुत दूर से वे दोनों आए थे | उनका ध्यान मनोज की तरफ नहीं गया, लेकिन उनकी बातें, उसे आराम से सुनाई दे रही थी |

‘क्यूँ, खुश हो ना आज श्रीमतीजी? कितने महिनों के बाद हमें ये फुरसत की घडियाँ रास आयी है!’

‘ ये भी कोई पूछने की बात है! आपने तो ऐसी तरकीब निकाली कि किसी को जरा भी संदेह नहीं हुआ!’

अब मनोज की जिज्ञासा जाग गई और वह ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा | तब…

यह श्रीमानजी करीबन्  पैसठ साल के थे और श्रीमतीजी लगभग साठ साल की | उम्र के हिसाब से तो दोनों जवान और फुर्तीले लग रहे थे | श्रीमान गोदरेज कंपनी से सेवानिवृत्त हुए थे और श्रीमतीजी गृहिणी थी | इनके दो बच्चे थे, एक लडका, एक लडकी | दोनों पढे-लिखे, नौकरी करते थे और शादीशुदा थे | इस दंपति का कर्जत में छोटा-सा बंगला था, चार कमरेवाला |

मुंबई तक नौकरी के लिए आने-जाने में सुविधा हो, इसलिए  उनका बेटा श्रीकांत और बहु-श्रेया डोंबिवली में फ्लैट लेकर रहते थे |श्रीकांत की बेटी – सई, इनकी पोती इस साल दसवी कक्षा में पढ रही थी | उसका ये महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण वर्ष था और जुलाई में ही बहुरानी का पदोन्नती के कारण अंधेरी में तबादला हुआ | उस का तो पूरा दिन बाहर ही जाता और लौटने में रात! इसलिए पोती की देखभाल करने के लिए ये दादा-दादी डोंबिवली में, बेटे के घर आकर रहने लगे | सास-बहु का अच्छा मेलजोल था, कोई दिक्कत नहीं थी | सब अच्छे से चल रहा था |

लगभग एक महिना ऐसे बीत गया और इनके दामाद को कंपनी ने जापान भेजने का फैसला किया, एक साल के लिए! बेटी श्रुती एक प्रायवेट कंपनी में उच्चपदस्थ थी | वह रहती मुलुंड में थी और उसका आफिस वरली में था |

उसका बेटा सातवी कक्षा में था और स्कालरशिप की परीक्षा देने वाला था | उसके सास-ससुर उसके जेठ के साथ रहते थे | श्रुती की लव – मैरेज थी, तो सास-ससुर जरा
दूर रहना ही पसंद करते थे | इसलिए श्रुती ने अपने पापा को ही मनाया, अपने घर आकर रहने के लिए | बेटे का स्कूल, ट्यूशन, पढाई ये सब सँभालने में उसकी थोडी सहायता करने के लिए!

मना कैसे करते! इस तरह नानाजी मुलुंड में रहने आये | पती – पत्नी एक दूसरे से बिछड गये | सच कहे तो, एक-दूसरे से अलग रहना इनके लिए बहुत कठिन हो रहा था |इतने साल साथ-साथ रहने की आदत पड गयी थी और वैसे भी ढलती उम्र में एक-दूजे का साथ जरूरी लगता है ना!

एक हफ्ता पहले श्रीमानजी ने कर्जत का चक्कर लगाया, तो घर में एल.आय.सी. का पत्र मिला | दोनों की पेंशन पालिसी का NEFT और लाईफ सर्टफिकट जमा करवाना था | रिटायर होते समय जो पूंजी मिली थी, उन्होंने ‘जीवन अक्षय’ पेंशन प्लान में निवेशित की थी |

पती और पत्नी के नाम, दो अलग पॉलिसियाँ ली थी | इस कारण हर माह एक ठोस रकम हाथ में आने की गारंटी थी |दोनों की उम्रभर की सुविधा और नामिनी के रूप में एक में बेटी का और दूसरी पालिसी में बेटे का नाम पंजीकृत किया था | माँ-बाप की मृत्यु के पश्चात दोनों बच्चों को, बडी रकम मिलने वाली थी, जो उन्होंने मूलतः निवेशित की थी |

उस समय  कम पैसों में सब संभाल के भी हमने ये निवेश किया, इसका उन्हें मन ही मन आनंद हुआ और आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे | अपने आँसू पोंछते-पोंछते उनके मन में एक बढिया सी कल्पना आयी…

उस पत्र पर नरिमन पॉइंट के हेड-आफिस का पता था | बच्चे तो अपने-अपने काम में व्यग्र थे | उनको ये काम सौंपने का कोई फायदा नहीं होनेवाला था | हम दोनों खुद जा कर ही ये जमा करके आते है, ताकि हस्ताक्षर में कुछ बदलाव हो गया हो तो दिक्कत नहीं आएगी | उन्होंने अपने बच्चों को ये समझाया |

एक दिन के लिए अपनी पोती की व्यवस्था उसकी सहेली के यहाँ और पोते की व्यवस्था पडोस वाली चाचीजी के घर कर दी |

आज उनकी शादी की सालगिरह थी | इस प्रकार मिल के उन्होंने मनायी थी! भीड भाड का समय छोडकर, साढे बारह के आसपास वे व्ही. टी. स्टेशन पहुँचे | फिर ‘स्टेटस’ में मनपसंद खाना और  चर्चगेट में ‘रूस्तम’ की आइस्क्रीम!

उसके बाद ‘योगक्षेम’ में फार्मस जमा करके, मरिन ड्राईव्ह के समुंदर किनारे बैठ कर जी भर के बातें कर ली |

सात बज रहे थे, तो श्रीमानजी ने कहा, ‘ चलो श्रीमतीजी,  चलते है | टैक्सी से व्ही. टी. जाकर, रात के खाने के समय तक घर पहुँचेंगे तो बच्चों को भी , हमारी चिंता नहीं करनी पडेगी |’

‘हाँ, चलिए | मगर मेरा पेट तो आज खुशी से इतना भर गया है, कि अब घर जाकर मुझे कुछ नहीं खाना |’ श्रीमतीजी शरमाते हुए बोली |

‘लाईफ सर्टिफिकेट का इस तरह इस्तेमाल करके, अपना लाईफ एंजॉय करने वाली इस दंपति को, मन- ही- मन सलाम करके, मनोज भी वहाँ से निकल पडा, अपनी पेट पूजा के लिए!

© सुश्री प्रणिता खंडकर

ईमेल – [email protected] वाॅटसप संपर्क – 98334 79845.

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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