श्री कुमार जितेन्द्र

 

(युवा साहित्यकार श्री कुमार जितेंद्र जी  कवि, लेखक, विश्लेषक एवं वरिष्ठ अध्यापक (गणित) हैं। आज प्रस्तुत है उनका एक विचारार्थ आलेख उनकी एक समसामयिक आलेख चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे। )

☆ चिंतन करे पर चिंता मुक्त रहकर परिणाम सुनहरे होंगे☆

 चिंता और चिंतन – ओह चिंता शब्द पढ़ते ही चिंता में डाल दिया है। क्या लिखे, क्या नहीं लिखे, क्या करे… क्या नहीं करे.. और जो लिखे या कुछ ऎसा करे वो किसी अनुकूल हो सकता है। अगर नहीं हुआ तो परिणाम क्या होगा। ऎसे हजारों अनगिनत प्रश्नों की मन में बौसार लग जाती है। यही चिंता है जिसका परिणाम भयंकर होता है। दूसरी तरफ किसी बात या कार्य को करने से पहले उस पर चिन्तन किया जाए तो परिणाम कुछ और होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि दोनो शब्दों में बहुत बड़ा फ़र्क है। वैसे फर्क होना भी स्वाभाविक है। तो आईए मित्रों आज हम कुमार जितेन्द्र “जीत” के साथ चिंता और चिन्तन को एक विश्लेषण से समझने का धीरे धीरे प्रसास करते हैं। विश्वास है मेरा विश्लेषण आपके के अनुकूल होगा।

मन में क्यों उत्पन्न होती है चिंता –  जी हां एक अच्छा प्रश्न उभर कर सामने आया है कि आख़िर हमारे मन में क्यों उत्पन्न होती है चिंता? क्या वजह है उसकी जो इंसान को अन्दर से खोखला कर देती है। सरल शब्दों में कहा जाए तो चिंता जब हम मन में किसी को पाने की चाहत रखते हैं, जो हमारे पास नहीं है और वह पूरी न हो या उसको खो जाने का डर लगा रहता है। किसी काम को तय समय पर पूरा नहीं करने से हमारा मन एवं बुद्धि दोनों अशांत से रहते हैं। जिससे चिंता उत्पन्न होती है। दूसरे रूप में नजर डाली जाए तो चिंता एक संज्ञानात्मक रूप, शारीरिक रूप, भावनात्मक रूप और व्‍यवहारिक रूप से उत्पन्न घटको की  मनोवैज्ञानिक दशा है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार चिंताचिन्ता को अनेक मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। जिसमें से कुछ प्रमुख विश्लेषण निम्न है-

‘‘चिन्ता एक ऐसी भावनात्मक एवं दु:खद अवस्था होती है, जो व्यक्ति के अहं को आलंबित खतरा से सतर्क करता है, ताकि व्यक्ति वातावरण के साथ अनुकूली ढंग से व्यवहार कर सके।’’

‘‘प्रसन्नता अनुभूति के प्रति संभावित खतरे के कारण उत्पन्न अति सजगता की स्थिति ही चिन्ता कहलाती है।’’

 

‘‘चिन्ता एक ऐसी मनोदशा है, जिसकी पहचान चिन्ह्त नकारात्मक प्रभाव से, तनाव के शारीरिक लक्षणों लांभवित्य के प्रति भय से की जाती है।

‘‘चिन्ता का अवसाद से भी घनिष्ठ संबंध है।’’

‘‘चिन्ता एवं अवसाद दोनों ही तनाव के क्रमिक सांवेगिक प्रभाव है। अति गंभीर तनाव कालान्तर में चिन्ता में परिवर्तित हो जाता है तथा दीर्घ स्थायी चिन्ता अवसाद का रूप ले लेती है।’’

जानिए क्या होता है चिंतन –  जब हम किसी बात को लेकर मन में कुछ पल के लिए सोचे और सोचने के बाद हमें शांति, एकाग्रता, उत्साहपूर्ण और प्रेम की अनुभूति होने लगे तो उसे हम चिंतन कह सकते हैं।

चिंतन के रूप – वर्तमान समय में इंसान किसी बात को लेकर चिंतन जरूर करता है। आज हम आपको चिंतन के रूप के बारे जागरूक करेंगे। ताकि हमारी भविष्य की पीढ़ी अच्छी राह मिले।

सकारात्मक चिंतन –  ओह शब्द पढ़ते ही मन में कुछ अच्छे ख्याल आने शुरू हो जाते हैं। वैसे आना भी स्वाभाविक है क्योंकि हम ठहरे इंसान….. हाँ हाँ… थोड़ा हंस लेते हैं। मित्रों  वर्तमान परिस्थितियों में अगर देखा जाए तो एक गहरी चिंता पूरे विश्व के सामने खड़ी हो गई है। और वो हम सब जानते ही हैं। समझ भी गए होंगे… वो है नोवेल कोरोना वायरस का कहर जो पूरे विश्व में फैल गया है। जिसका इलाज पूर्णतः अभी हुआ नहीं है। हजारों की संख्या में लोगों की मौते भी हो गई है। अब अगर हम उस चिंता पर सकारात्मक ऊर्जा से चिंतन करना शुरू कर दिया जाए तो परिणाम अपने स्वयं, परिवार, समाज, क्षेत्र और देश के लिए अच्छा रहेंगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कोरोना वायरस के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए हम सरकार द्वारा जो हमे सावधानी रखने की सलाह दी जाती है। उन सावधानियों को समझे उस पर मनन करे। क्योकि वर्तमान स्थिति को देखते हुए कोरोना वायरस से बचने का एकमात्र उपाय बचाव ही है। यानी हम अपने आप को कितना सुरक्षित रख सकते हैं। *मित्रों* पूरी दुनिया विषम परिस्थितियों से गुजर रही है। हमे आवश्यकता है उस पर सकारात्मक चिंतन कर सभी को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।

नकारात्मक चिंतन – ओह पड़ गए न सोचने की अब किसकी बात होने जा रही है। तो मित्रों आज हम चिंतन के दूसरे रूप जो सदियों से मानव जाति के लिए नुकसानदेह रहा है वो है नकारात्मक चिंतन। चलो हम वर्तमान परिस्थितियों पर ही विश्लेषण करे… आज हमारे सामने कोरोना वायरस के कहर को लेकर जो चारों ओर घमासान मचा हुआ है। हम उसको समझ नहीं रहे हैं। कुछ लोग उस पर नकारात्मक चिंतन करने में लगे हुए हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव को हल्के में ले रहे हैं। उसके ऊपर न जाने कितने हँसी मजाक के संदेश, वीडियो बना रहे हैं। जो हमारे लिए घातक हो सकता है। क्योकि कोरोना वायरस की जागरूकता के बिना हम उसको रोक नहीं सकते हैं। और यह सब नकारात्मक चिंतन का ही एक भाग है। जिसका परिणाम कैसा होगा उसके बारे में हम कह नहीं सकते हैं। जैसा नाम वैसे परिणाम होंगे।

नकारात्मक चिंतन से फैलती है अफवाहें – ओह…. सबसे बड़ा वायरस जो कोरोना से भी तेज फैलता है वो है नकारात्मकत चिंतन से फैलती अफवाहें। *मित्रों*  वर्तमान में इन अफवाहें से बच के रहना होगा। किसी प्रकार का भ्रामक संदेश  फैलाने की कोशिश ना करे। हमें सोशल मीडिया पर सावधानी रखनी होगी। और एक अच्छे जागरूक इंसान बनने की कोशिश करनी होगी।

मित्रों आपसे सकारात्मक चिंतन में सहयोग की आशा –  मित्रों वर्तमान समय में साफ़ सफाई का विशेष ध्यान रखें। यही सबसे बड़ा उपाय है। किसी भीड़ भाड़ वाले इलाकों में एक पल भी नहीं रुके। किसी स्वास्थ्य संबधी कोई तकलीफ हो तो उसे छिपाने की कोशिश कताई ना करे। समय रहते अपने नजदीकी अस्पताल में दिखाने की मेहरबानी जरुर करे। तथा वर्तमान में अगर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो 24 घंटे का कर्फ्यू कोरोना वायरस चक्र में एक ब्रेक साबित हो सकता है। जी हां मित्रों 24 घंटे अगर कोरोना वायरस को नए इंसानी रूपी शरीर देखने को नहीं मिलेंगे तो वातावरण में मौजूद बड़ी संख्या में कोरोना वायरस खत्म हो जाएँगे। और हमारे लिए एक नए उजाले की किरण होगी।

मित्रों  हमारी सड़कें, बाज़ार ,दफ्तरों के दरवाजे, रैलिंग लिफ्ट आदि स्वतः ही स्टरलाइज हो जाएंगे। अंतः आप सभी से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि आप इस मुहिम में साथ दें और सकारात्मक चिंतन कर अपने सकारात्मक विचारो से दूसरो को जागरूक करे । और हमारे लिए काम करने वाले जन सेवकों, चिकित्सकों व सैनिकों का उत्साह वर्धन करे।  चिंतन जरूरी है अवश्य करे, पर चिंता मुक्त रहकर

 

✍?कुमार जितेन्द्र

साईं निवास – मोकलसर, तहसील – सिवाना, जिला – बाड़मेर (राजस्थान)

मोबाइल न. 9784853785

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments