॥ श्री रघुवंशम् ॥

॥ महाकवि कालिदास कृत श्री रघुवंशम् महाकाव्य का हिंदी पद्यानुवाद : द्वारा प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

☆ “श्री रघुवंशम्” ॥ हिन्दी पद्यानुवाद सर्ग # 2 (31-35) ॥ ☆

 

ज्यों दाहिने हाथ की नखप्रभा से भूषित हुआ बाण का कड़कपत्र

तूणीर के बाण में हाथ चिपका राजा विवश रह गया ज्यों ही चित्र ॥31॥

 

चिपका हुआ हाथ अवरूद्ध इच्छा, छूना जिसे पाप स हो गया था

राजा प्रतापी मन में विकल था, ज्यों मंत्र कीलित विषधर कोई था ॥32॥

 

मनुवंश के न्यायप्रिय वीर नृप से जो निज दशा पर स्वयं अति चकित थे

उस धेनुधारी महासिंह ने और विस्मित किया मानुसी बात करके ॥33॥

 

रूको महीपाल, हुआ बहुत श्रम वृथा यहाँ अस्त्र रहा तुम्हारा

तरू को गिरा ले भले तेज आँधी बल गिरि शिखर हेतु पर व्यर्थ सारा ॥34॥

 

कैलाश  सम श्वेत वृषभारू रोही शिव के चरण पात से पृष्ठ पावन

कुम्भोदर नाम निकुम्भ का मित्र, जानो मुझे शम्भु का दास राजन ॥35॥

 

© प्रो. चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’   

A १, विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर. म.प्र. भारत पिन ४८२००८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments