सुश्री नीलम भटनागर 

 ☆ पुस्तक चर्चा ☆ कृष्ण काव्य पीयूष — शब्द अमृत ☆ सुश्री नीलम भटनागर ☆ 

कृष्ण काव्य पीयूष — शब्द अमृत 

कृष्ण अमृत में पगी श्याम रंग में रंगी बड़ी देर सो ही रही अब पुनः पढ़कर जगी कुछ समय से ऐसा लगने लगा था कि अब तो भक्ति बस ऊपरी दिखावे की बात हो गई है मंदिरों में टीवी पर या कुछ त्योहारों पर । लेकिन चि विवेक रंजन ने कृष्ण काव्य पीयूष भेजी व समीक्षा करने का आग्रह किया । पढ़ा तो लगा कि  ऐसे ही नहीं कहा गया है कि हमारा धर्म सनातन है । 

 मन जब सोचेगा की इति हुई तभी पुनः आरंभ होता दिखेगा।

 एक नजर में ही लगा 

सच में यह रस की  गागर है या यह भक्ति का सागर है 

कैसे कुछ लिखूं इस पर यह खुद ही तो नट नागर है 

न जाने  क्यों अवचेतन में यह सोच बन गई थी  कि विदेशों में तो प्रवासी भारतीय केवल मौज मजे में डूबे रहते हैं , नित नई पार्टियां या भौतिक आनंद ही उनका लक्ष्य होता है ।

पर इस पुस्तक के दर्शन मात्र से यह भ्रम टूट गया । सच ही बिहारी ने यूं ही नही कहा है –

ज्यों ज्यों  डूबे श्याम रंग 

त्यों त्यों उज्जवल होए

पुस्तक खोलते ही अपनी आदत के अनुसार अनुक्रमणिका पर प्रथम दृष्टि गई सारी दुनिया से भक्ति रस में आकंठ डूबे प्रवासी भारतीय रचनाओं के माध्यम से संकलित हैं। 

कनाडा की पूनम चंद्रा  जी ने ” गिरधर ” में लिखा है 

श्याम सलोने हो गए

 स्वर्ण जैसी किरणों ने 

 श्याम को छुआ 

यह मनमोहक दृश्य सिर्फ मेरे लिए है 

सिर्फ मेरे लिए 

तो पूनम जी हर का कृष्ण उसके लिए ही है और आपने यह सब को याद दिला दिया ।

क्योंकि मन श्याम रंग में डूब कर निकलता है तो उज्जवल होकर निकलता है यह विचित्र सत्य है।  बगल के पृष्ठ पर मनु जी की ब्रज में फाग की पंक्तियां हैं 

नभ धरा दामिनी नर-नारी रास रंग राग

 भाव विभोर हो सब कृष्ण संग खेले फाग 

पढ़कर कभी किसी होली पर लिखी  अपनी ही पंक्तियां याद आ गई 

ऐसी होली मची है ब्रज बरसाने बीच

 रंग और अबीर की मची हुई है कीच

 राधा रंग गई ललिता रंग गई 

रंगे ग्वाल बाल

बावला है मन खेलता यहीं से उनके संग 

कौन कौन सी रचना पढ़ें , जिसे पढ़ो उसी में मन डूबता ही जाता है ।  सारे संग्रह को का भाव पक्ष इतना प्रबल है कि पढ़कर वर्णन करना वैसा ही है जैसे प्रभु के विराट स्वरूप का वर्णन करना । 

अचानक सुशील शर्मा कि धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र पर दृष्टि गई और लगा कि गीता का कितना सुंदर भाव अनुवाद है 

ओम हूं मैं व्योम हूं मैं भूत भवन परमात्मा 

स्वर्ग हूं मैं अपवर्ग हूं मैं हिरन गर्भ आत्मा 

प्रतिभा पुरोहित अहमदाबाद की जीवन का सार पढ़ी,  लगा कि इतने अगम्य कृष्ण को इतना सरल कर लिखा है इन्होंने 

कान्हा ने छेड़ी जब बांसुरी की तान 

वृंदावन में छिड़ गया मधुर रागों का गान 

यही तो है हमारे कान्हा सरल से सरल तम और कठिन से अगम्य ।  रसखान के कान्हा गोपियों से छछिया भर छाछ लेकर नाचते हैं , सूर की मन की आंखों से मन में प्रवेश कर बैठते हैं । भक्ति काल के अनेक अनेक कवियों से ऊपर उठना ही होगा मुझे ,  आखिर कृष्ण काव्य  पीयूष का आस्वाद लेना है । 

 श्री कृष्ण के कर्म योगी रूप पर सदा से ही दुनियां और भारतीय प्रेरित होते रहे हैं ।

उसे ही श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव विदग्ध जी ने कुछ ही पंक्तियों में इतना अच्छा वर्णन किया है कि प्रत्येक शब्द का अर्थ समझते मन खो जाता है । वे लिखते हैं 

 तुम से अनुप्राणित राजनीति

 तुम से विकसित अध्यात्म ज्ञान

 तुम ज्ञाता पथ दर्शक शिक्षक 

कर्मठ योगी अतिभासमान 

बालक किशोर नवयुवक प्रौढ़ 

और वृद्ध सभी के परम मित्र

शिशु बाल गोपाल तरुण सारथी

तुम्हारे विविध चित्र 

भारत जन मन सम्राट सुखद 

भगवान पूज्य हे सत्य काम 

तुम जल थल कण-कण में विद्यमान

हे देव तुम्हें शत शत प्रणाम

मेरा भी प्रणाम स्वीकार हो प्रभु,  क्योंकि मुझे खुद से तुम्हारा यह रूप अत्यंत आकर्षित करता है । प्रत्येक कवि की रचना में मन डूबा जाता है ।गहरे और गहरे पढ़ने का मन होता है । सचमुच का विशेष अमृत है, यह किताब ।

को बड़ छोटू कहत अपराधू ,   रस में सराबोर हो जाइए ।

दृष्टि गई श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव की रचना कृष्ण ही ब्रह्म है पर । विद्गध जी के पुत्र श्री विवेक रंजन भी बहुमुखी रचनाकार हैं । मुझे पिता-पुत्र एक दूसरे के पूरक लगते हैं । प्रभु सबको ऐसा ही पुत्र दे । 

पढ़िए उनकी रचना 

कृष्ण हैं काफ़ीया कृष्ण ही रदीफ़ 

कृष्ण से नज्म है कृष्ण ही वज्म है

 कृष्ण हैं हर किताब हर्फ-हर कृष्ण है 

कृष्ण है शाश्वत कृष्ण अंत हीन है

कृष्ण ही हैं प्रकृति कृष्ण संसार हैं

राहगीर हैं हम कृष्ण की राह के

तीन पंक्तियों वाले यह छन्द रोचक है 

एक रचनाकार जो अपने उपनाम के कारण अनुक्रम में ही आकर्षित कर बैठी का जिक्र जरूरी लगता है । शीतल जैन  अहमक लड़की , सिंगापुर में बैठकर वे इस तरह कृष्ण प्रेम में डूबी हुई है कि 

कान्हा  जिस पल हम दोनों 

एक साथ एक दूसरे के ख्याल में होते हैं 

तब मैं तुम से भी ऊपर होती हूं 

तब मैं रचती हूं तुमसे 

बसती हूं तुम में 

लीन हो जाती हूं तुम में ही 

तुम्हारे ख्याल मुझसे  मिलकर

मुझे मीरा कर देते हैं 

और मुझे मीरा होना पसंद है 

अहमक लड़की तुम सचमुच मीरा ही हो

 मुझे लगता है काश कभी तुम से मिल पाती ।

पढें तो पूरी पुस्तक , पर इस प्रेम दीवानी को अवश्य आत्मसात करें । मेरी कल्पना में अचानक तुम आ जाती हो,  रहो तुम सिंगापुर में मीरा बनकर पाठकों के हृदय में समाई रहो ।

लिखना तो हर कविता पर चाहती हूँ । इतने कृष्ण प्रेम को देखकर मेरी हालत रथ पर बैठे अर्जुन जैसी हो रही है , कमजोर , कांपते हुए ।उनके पास ज्ञान था हमारे पास प्रेम है। श्री कृष्ण का प्रेम हर युग में दीवाना कर देने वाला है।  कृष्ण काव्य पीयूष की  सारी रचनाए पढ़िए । कविताअमृत रस में डूब जाइए।

संपादक जी के वक्तव्य में एक बात बड़ी गहरी लगी तो मुझे भी लिखनी है ।  कि जिनकी रचनाएं शामिल नहीं कर पाए उनसे वह क्षमा प्रार्थी हैं । मैं भी जिनकी रचनाओं पर टीप नही कर सकी उनसे  क्षमा प्रार्थी हूं । 

सभी पाठकों से की ओर से भगवान कृष्ण से यह प्रार्थना करती हूं । 

मेरी भव बाधा हरो 

राधा नागर सोए 

जा तन की झाई पड़े 

श्याम हरित दुति होय

बिहारी ने राधा की कृपा से श्याम जू  को हरे कर दिया और वह ऐसे हरे हुए की पूरे विश्व में हरे कृष्णा, हरे कृष्णा छा गए हैं । 

तो सबको हरे कृष्णा,  श्री कृष्णा ।

© सुश्री नीलम भटनागर

 502 विज्ञान विहार, गुड़गांव 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Arti Bhatnagar

Wow neelam didi aapki sameeksha n to book ko kharidne ki lalsa jaga di ,plz let me know from where i can get it