श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

 

☆ संजय दृष्टि  –  अखंड महाकाव्य

 

अखंड रचते हैं,

कहकर परिचय

कराया जाता है,

कुछ हाइकू भर

उतरे काग़ज़ पर

भीतर घुमड़ते

अनंत सर्गों के

अखंड महाकाव्य

कब लिख पाया,

सोचकर संकोच

से गड़ जाता है!

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

सुबह 9.24, 20.11.19

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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माया

अखंड की परिभाषा है बिना किसी खंड के लिखते रहना , रचनाकार का खंड -खंड में लिखना और उसे क्रमबद्ध रूप से संजोना अपने आपमें एक बड़ी उपलब्धि हो सकती है ।
इस क्रम में बहुत- बहुत बधाई संजय जी !

अलका अग्रवाल

जब गागर मे सागर भरने से ही काव्य की इति श्री हो जाये तो अखंड महाकाव्य की रचना का औचित्य नहीं रह जाता। आपको सफल व सुंदर लेखन के लिए हार्दिक बधाई।

Rita Singh

खंड -खंड में लिखना ही शायद महाकाव्य की रचना करने समान है।कवि उसी ओर अग्रसर होते दिखाई देते हैं।