श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। ) 

☆ संजय दृष्टि – सफलता का सूत्र  ☆

किसी टाइल या एसबेस्टॉस की शीट के छोटे टुकड़े को अपनी तर्जनी से दबाएँ। फिर यही प्रक्रिया क्रमशः मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा और अंगूठे से करें। हर बार कम या अधिक दबाव शीट या टाइल पर पड़ेगा पर वह अखंडित रहेगी। अब उंगलियों और अंगूठे को एक साथ भींच लीजिए, मुट्ठी बन जाएगी। मुट्ठी की गुद्दी से वार कीजिए। टाइल या शीट चटक जाएगी।

जीवन का गुपित और निहितार्थ इस छोटे-से प्रयोग में छिपा है। प्रत्येक का अपना सामर्थ्य और अपना अस्तित्व है। इस अस्तित्व की सीमाओं का भान रखनेवाला बुद्धिमान होता है जबकि अपने  गुमान में जीनेवाला नादान होता है। अकेले अस्तित्व के अहंकार से मुक्त होकर सामूहिकता का भान करना जिसने सीख लिया, सफलता और आनंद का रुबिक क्यूब उसने हल कर लिया।

 

©  संजय भारद्वाज, पुणे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

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शशिकला सरगर

रुबिक क्यूब —— अलग सोच ,सुंदर सोच

लतिका

मर्मस्पर्शी!?

सत्येंद्र सिंह

कैसे पढ़ने को उपलब्ध होगी. क्या अपनी कविताएँ भी पोस्ट करने की अनुमति है.