श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष 

सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’

(श्रीकृष्ण जन्माष्टमी  के शुभ अवसर पर प्रस्तुत है ,नरसिंहपुर मध्यप्रदेश की वरिष्ठ साहित्यकार सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’ जी का आलेख “आओ मनाएँ….श्रीकृष्ण  जन्मोत्सव”। )

✍   आओ मनायें…श्रीकृष्ण’ का जन्मोत्सव ✍ 

 

भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि की भयानक तूफानी अंधियारी रात में धरती को असुरों के अत्याचारों से मुक्त कराने ‘कृष्ण’ रूपी सूर्य उदित हुआ, जिनका जन्मदिन हम हर साल बड़े ही हर्ष-उल्लास से मनाते हैं… द्वापर युग में सृष्टिपालक भगवान विष्णु सोलह कला संपन्न पूर्णावतार लेकर आये और अपने इस स्वरूप में उन्होंने मर्यादा पालन के साथ-साथ बालपन से ही सभी प्रकार की लीलायें दिखाई… परन्तु दुर्बल मानव मन केवल कुछ ही लीला के आधार पर उनके संपूर्ण जीवन का आकलन कर स्वयं को उनके समकक्ष खड़ा कर लेता हैं…
अक्सर लोग उनके माखनचोर, मटकीफोड़, वस्त्रचोर, रास रचैया, मुरली बजैया, छलिया, रणछोड़, बहुपत्नीवादी, कूटनीतिज्ञ आदि कुछ प्रसंगों का ज़िक्र कर अपनी हरकतों पर पर्दा डालना चाहते हैं… जबकि उनके कर्मयोगी, संयमी, आदर्श शिष्य, पुत्र, भाई, राजा, मित्र, सलाहकार, सारथी, सहयोगी, सेवक, योद्धा, विवेकी, कला मर्मज्ञ, राजनीतिज्ञ आदि और भी कई महत्वपूर्ण उल्लेखनीय तथ्यों को अनदेखा कर देते हैं…
इसकी वजह शायद ये हैं कि कर्तव्य पालन, धर्मरक्षक, कर्मवादी होना थोड़ा मुश्किल होता हैं जबकि उन सब हरकतों का हवाला देकर खुद की गलतियों को न्यायसंगत ठहराना अपेक्षाकृत सहज होता हैं… उनका वास्तविक विराट स्वरूप वही हैं, जो उन्होंने ‘महाभारत’ के दौरान अपने सखा कुंतीपुत्र ‘अर्जुन’ को दिखाया था, जिसे इन मानवीय नेत्रों से देख पाना संभव नहीं उसके लिये तो दिव्य दृष्टि चाहिये और जिनके पास वो हैं केवल वही उन्हें समग्रता में देख सकते हैं…
उन सभी लीलाओं के मर्म को समझने की बुद्धि हमारे पास नहीं इसलिये यदि हम जीवन में कुछ बनना चाहते हैं तो आज उनके जन्मदिवस के इस पावन दिन पर उनसे यही विनती करें कि वो हमें कर्मपथ पर अनवरत चलने का साहस और दृढ इच्छाशक्ति प्रदान करें… उनके ‘गीता’ के कर्मसिद्धांत को अपने जीवन में अक्षरशः उतार सकें हम सबको ऐसा विवेक दे… तो आओ मिलकर मनायें उन विराट व्यक्तित्व महानायक और हमारे अपने श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव… सभी को उनके अवतार दिवस की हार्दिक शुभकामनायें… ???!!!
*© ® सुश्री इंदु सिंह ‘इन्दुश्री’*
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