श्री जय प्रकाश पाण्डेय

 

(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी   की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके  व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय  एवं  साहित्य में  सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की  अगली कड़ी में उनका  “व्यंग्य  –गांव नहीं जाना बापू…..” । आप प्रत्येक सोमवार उनके  साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचना पढ़ सकेंगे।)

☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 15 ☆

 

व्यंग्य – गांव नहीं जाना बापू ….. 

 

जैसई गंगू खुले में शौच कर लोटे का पानी खाली कर रहा था कि उधर से आते एक परिक्रमावासी बाबा दिख गये, गंगू ने जल्दी जल्दी पजामे का नाड़ा बांधा और हर हर नरमदे कह के बाबा को सलाम ठोंक दिया। परिक्रमावासी हाथ में टेकने की लाठी लिए थे, सफेद गंदी सी चादर ओढ़े और गोल-गोल चश्मा लगाए गंगू से गांव का नाम पूछने लगे। गंगू के बार बार बाबा – बाबा कहने पर वे चिढ़ गए बोले – मुझे बाबा मत कहो मेरा नाम “बापू” है….. इन दिनों दोनों राजनीतिक पार्टी के नेता खूब मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं और नर्मदा की परिक्रमा करके राजनीति कर रहे हैं इसलिए मैं भी नर्मदा परिक्रमा के बहाने गांवों के हालात देखने निकला हूँ….. चलो तुम्हारे गांव में कुछ चाय-पानी की हो जाए।

गंगू बापू को लेकर गांव की तरफ चल पड़ा…प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच बैगा बाहुल्य गांव टेकरी में बसा है, पड़ोस में कल – कल बहती पुण्य पुण्य सलिला नर्मदा और चारों ओर ऊंची ऊंची हरी – भरी पहाड़ियों से घिरा गांव पर्यटन स्थल की तरह लग रहा था। रास्ते में गंगू ने बताया – बहुत गरीबी, लाचारी बेरोजगारी और बिना पढ़े लिखे लोगों के इस गांव को सांसद जी ने गोद लिया है गोद लिये तीन साल से हो गए…..?   बापू ने पूछा – सांसद जी कभी तुम्हारे गांव आते हैं?

गंगू ने बताया – दरअसल मंत्री बन जाने से वे बेचारे ज्यादा व्यस्त हो गए तो तीन चार साल से नहीं आ पाए हैं पर जब चुनाव होता है तो थोड़ी देर के लिए हाथ जोड़ने ज़रूर आते हैं।

गंगू को चुहलबाजी में थोड़ा मजा आता है पूछने लगा – बाबा जी, सांसद जी ने अचानक ये गांव क्यों गोद ले लिया जबकि वे तो 30-40 साल से इस एरिया के सांसद हैं ?     बापू फिर नाराज हो गए बोले – तुम से कहा न…. कि बाबा नाम से हमें चिढ़ हो गई है फिर भी तुम बार – बार बाबा – – बाबा कह के चिढ़ाते हो….. हमारा नाम  “बापू” है…

तो सुनो अब तुम्हें विस्तार से बताता हूँ. एक मोहनदास करमचंद गांधी थे उन्होंने ग्राम स्वराज की कल्पना की थी उस गांधी ने चाहा था कि गांव गणतंत्र के लघु रूप हैं इसलिए गांव के गणतंत्र पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की इमारत खड़ी की जाए, अब जे ईवेंट छाप प्रधानमंत्री ने कुछ नया करने के चक्कर में सभी सांसदों को एक – एक गांव विकास के लिए पकड़ा दिया। गांव गोद लो और आदर्श ग्राम बनाओ नही तो बिस्तर लेकर घर जाओ….. अंतरआत्मा से कोई सांसद इस लफड़े में पड़ना नहीं चाहता था तो बिना मन के सांसदों ने गांव गोद ले लिया कई ने तो ऐसा गांव गोद लिया जहां कोई पहुंच न पाए, हालांकि सब जानते हैं कि दिल्ली से गरीबों के उद्धार के लिए चलने वाली योजनाएं नाम तो प्रधानमंत्री का ढोतीं हैं मगर गांव के सरपंच के घर पहुंचते ही अपना बोझा उतार देतीं हैं……… ।

बापू की सब बातें गंगू के सर के ऊपर से निकल रही थीं। गंगू बोल पड़ा – बापू ये आदर्श ग्राम क्या होता है ?

तब बापू ने बताया कि आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत ग्राम के वैयक्तिक, मानवीय, आर्थिक एवं सामाजिक विकास की निरंतर प्रक्रिया चलती है। वैयक्तिक विकास के तहत साफ-सफाई की आदत का विकास, दैनिक व्यायाम, रोज नहाना – धोना और दांत साफ करने की आदतों की सीख दी जानी चाहिए, गांव में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं, स्मार्ट स्कूल में पढ़ाई – लिखाई, सामाजिक विकास के तहत गांव भर के लोगों में विकास के प्रति गर्व और आर्थिक विकास के तहत बीज बैंक, मवेशी हास्टल और खेती – बाड़ी का विकास होना चाहिए….. और बताऊँ कि बस…… ।

गंगू को लगा ये बापू बड़ी ऊंची ऊंची बातें कर रहा है … परिक्रमावासी बाबा जैसा तो लग नहीं रहा है ? फिर….. अरे अभी दो साल पहले गांव में एक परिक्रमावासी बाबा आये थे तो गाँव भर के लड़कों को गांजा – भांग, दारू सिखा गये थे और गांव की अधिकांश नयी उमर की लड़कियों को निकास के भाग गए थे। पर ये बाबा अपने को बापू – बापू कहके बड़ी बड़ी बातें कर रहा है कहीं कोई खोट तो नहीं है ये परिक्रमावासी में…………

गंगू अंदर से थोड़ा डर सा गया पर बापू के कहने पर गांव में बापू के रुकने की जगह तलाशने लगा, पता चला कि पंचायत भवन में सरपंचन बाई की गैया बियानी है तो रुकने के लिए पंचायत भवन में जगह नहीं मिलेगी, हार कर गंगू ने तय किया कि अपने घर की परछी में बापू को सोने की जगह दे दी जाएगी…… घरवाली को पहले से ही हिदायत दे देंगे कि वो बाबा – आबा के चक्कर में पैर – वैर पड़ने बाहर न आये क्योंकि आजकल अधिकांश बाबा लोगों का कोई ठिकाना नहीं है।

जगह तलाशते – तलाशते हारकर गंगू ने बापू से कहा कि गांव में रुकने के लिए कहीं जगह तो है नहीं….. तो एक दिन की बात है बापू हमारे टूटे घर की परछी में रह लेना, पर बापू सच्ची सच्ची बताएं कि आपकी ये ऊंची ऊंची बेसुरी बातें हमारे समझ के बाहर हैं… काहे से कि हमारे गांव में न तो आज तक बिजली लगी, न सड़क बनीं, एक ठो धूल – धूसरित मदरसा जरूर है जिसमें नाक बहाते बिना चड्डी पहने बच्चे पढ़ने को कभी-कभी जाते हैं मास्टर कभी-कभी आता है छड़ी लेकर…. ।

एक  बार जिले से एक बाई बड़ी सी कार में आयी रही तो कह गई थी कि गांव का सिर्फ़ विकास ही विकास होना है इसलिए  तहसील जाकर सब लोग विकास से परिचय कर लेवें। जनधन योजना में खाते खुलवा लें। मजाक सी कर रही थी वो। बैंक यहां से 30-40 किमी दूर हैं कछु कयोस-अयोस का नाम ले रही थी तो वो भी 15-20  किमी दूर सड़क के किनारे खुलो है। गाँव भर में साल भर बीमारी पसरी रहती है, डॉक्टर तो कभी आओ नहीं इस तरफ। जिले वाली बाई जरूर कह गई थी कि गांव में हर हफ्ते डाक्टर आके जांच-पड़ताल करेगा और दवाईयां देगा, पर सालो जे गांव ऐसी जगह बसो है कि कोई आन नहीं चाहत। एक हैंडपंप खुदो तो वा में पानी नहीं निकलो। जिले वाली बाई कह रही थी कि घर -घर में नल लगा देहें…. पर बापू वो दिना के बाद वो बाई का भी कोई अता-पता नहीं मिलो……

बापू सुनके सुन्न पड़ गये, काटो तो खून नहीं।

बापू बोले – गंगू…. तुम गांधी जी को जानते हो क्या ? अरे वोई गांधी जिसकी फोटो नोट में छपी रहती है और नोट के पीछे से चश्मे में एक आंख से स्वच्छ देखता है और दूसरी आंख से भारत देख देख के मजाक करता है,   अरे वोई गांधी जिसका नाम ले-लेकर सब नेता लोग अपने अपने बंगले और बड़ी मोटर का जुगाड़ करते हैं और गांव के विकास का पैसा, गरीब के उद्धार का पैसा हजम करके बड़े बड़े पेट बढ़ा लेते हैं……। रोजई – रोज तो गांधी को गोली मारी जाती जाती है।

बापू गांव की उबड़ – खाबड़ गली से गुजरते हुए गंगू के पेट में हवा भरते चल रहे थे, गली में किसी बच्चे के पढ़ने और होमवर्क रटने की आवाज आ रही है.. “मां खादी की चादर ले दे…….. मैं गांधी बन जाऊँ”…… ।

गंगू का घर आ गया था, बापू अंगना में बैठ गए थे,

सरपंच पति वहां से निकले तो गंगू दौड़ के सरपंच पति के कान में खुसरफुसर करते हुए कहने लगा कि खेत में फारिग होने गए थे तो जे परिक्रमावासी टकरा गया, ऊंची ऊंची बात करता है… कहता है मुझे बाबा मत कहो मेरा नाम “बापू” है….. नोट में जो एक डोकरा छपा दिखता है कुछ कुछ उसी के जैसे दिखता है……. और पूंछ रहा था कि गांव में कोई गांधी जी को जानता है कि नहीं……..

सरपंच पति हर हर नरमदे कहते हुए अंगना में बैठ गए। गंगू ने बापू को बताया – जे गांव के सरपंच पति हैं और इनका नाम भी  बापू बैगा है। एक बापू दूसरे बापू को देखकर ऐसे मुस्कराये जैसे पुरानी पहचान हो फिर  बापू बोले – यार सरपंच पति, तुम्हारे गांव में मोबाइल का सिग्नल नहीं मिल रहा है तुम्हारा गांव तो डिजीटल इंडिया को ठेंगा दिखा रहा है।  सरपंच पति ने कहा – बाबा जी, बात जे है कि इस गांव से 20-25 किमी के घेरे में सिग्नल नहीं है गांव के पास एक ऊंची पहाड़ी के ऊपर एक पेड़ में चढ़ने पर मोबाइल के लहराते संकेत कभी कभी मिलते हैं जैई कारण से यहां कयोस-अयोस बैंक नहीं खुल पाई। जनधन खाता के दस बीस खाता खुले थे बैंक वाले पैसा ले गए रसीद भी नहीं दई पासबुक तो दईच नहीं। फसल बीमा के नाम का भी पैसा खा गए।  8-9 लोगन को मुद्रा योजना में एक – एक बकरा लोन में पकड़ा दिया, बकरी की मांग करी तो बोले अभी बकरा से काम चला लो, गांव में एक भी बकरी नहीं है बिना बकरी के सब बकरा मर गए और अब सबको नोटिस भेजन लगे…… ।

बापू सुनके सुन्न पड़ गये काटो तो खून नहीं……. ।

बापू कहन लगे कि सांसद से बताया नहीं कि ऐसे में गांव आदर्श गांव कैसे बन पाएगा। बापू सांसद जी को बताया था वो बोले जो है सब ठीक-ठाक है। पर भाई ऐसे में ये गांधी के सपनों का गांव नहीं बन पाएगा, सांसद से संवाद नहीं है विकास के नाम पर ठेंगा दिख रहा है, आवास योजना में घर नहीं बने, कोई घरवाली को गैस नहीं मिली, मास्टर पढाने आता नहीं, बेरोजगार युवक गांजा दारू में मस्त हैं, शौचालय बने नही और तुम सरपंच पति हो आदर्श ग्राम बनाने का पैसा कहां गया?

सरपंच पति तैश में आ गया बोला – बापू हमको चोर समझते हो? तुमको क्या मतलब हमारे गांव में विकास हो चाहे न हो…… परिक्रमावासी बनके राजनीति करन आये हो…….

गंगू घबरा गया….. हाथ से पानी का गिलास छिटक के दूर गिरा और बापू अचानक बैठे बैठे गायब हो गए……. ।

सरपंच पति और गंगू तब से आज तक यही सोच रहे हैं कि कहीं नोट में छपा डुकरा भूत बनके तो नहीं आया था। उस दिन के बाद से पूरे इलाके में हवा फैल गई कि गांधी जी भूत बनके सांसद का आदर्श ग्राम देखने आए थे।

 

© जय प्रकाश पाण्डेय

416 – एच, जय नगर, आई बी एम आफिस के पास जबलपुर – 482002  मोबाइल 9977318765
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