SURMAYI LATA (HINDI)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक की पुस्तक चर्चा# 119 ☆

☆ “सुरमयी लता” – श्री सुरेश पटवा ☆ चर्चाकार – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

(संयोगवश श्री सुरेश पटवा जी की पुस्तक“सुरमयी लता” की समीक्षा अन्य लेखक / लेखिकाओं द्वारा भी प्राप्त हुई है जिसे हम शीघ्र ही अगले अंकों में प्रकाशित कर रहे हैं।)

 

श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(हम प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’जी के आभारी हैं जो  साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक की पुस्तक चर्चा” शीर्षक के माध्यम से हमें अविराम पुस्तक चर्चा प्रकाशनार्थ साझा कर रहे हैं । श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी, जबलपुर ) पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका दैनंदिन जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। इस स्तम्भ के अंतर्गत हम उनके द्वारा की गई पुस्तक समीक्षाएं/पुस्तक चर्चा आप तक पहुंचाने का प्रयास  करते हैं।

आज प्रस्तुत है श्री सुरेश पटवा जी की नवीन पुस्तक  “सुरमयी लता” की समीक्षा।

कृति. . . सुरमयी लता

लेखक. . . . सुरेश पटवा

मूल्य. . . . १९५ रु, पृष्ठ. . . १०६

प्रकाशक. . . सर्वत्र, मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल

चर्चाकार. . . विवेक रंजन श्रीवास्तव, भोपाल

☆ तुम्हारा ये जाना न माने जमाना, रहेंगी सदा गुलजार लता – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆

अलेक्सा प्ले हिट्स आफ लता, इतना कहने भर की जरूरत है और अलेक्सा अनफारगेटबल एलबम बजाने लगेगी ” तू जहाँ जहाँ भी होगा मेरा साया साथ होगा “. कुछ व्यक्ति होते हैं जो मर कर भी अमर होते हैं. अपनी सुरीली आवाज के साथ लता हमेशा हर पीढ़ी के साथ रहेंगी. सुख, दुख, राष्ट्रीय पर्व, भक्ति, त्यौहार कोई भी अवसर हो लता का कोई न कोई गीत सहज सुलभ है. गीतकार और संगीतकार को कम ही लोग याद करते हैं, अधिकांश लता जी की आवाज को पहचानते हैं और उसके जरिये ही फिल्म, हीरोईन, या गीत को जानते हैं. लता जी गीत की ब्रांड एम्बेसडर बन चुकी हैं. ऐसी लीजेंड हस्ती पर स्वाभाविक रूप से ढ़ेर सारे काम हुये हैं. नसरीन मुन्नी की किताब “लता मंगेशकर-इन हर ऑन वॉइस“, लेखक हरीश भिमानी की चर्चित किताब इन सर्च ऑफ लता मंगेशकर, लता मंगेशकर: ए बायॉग्रफी बाई राजू भारतन, ऑन स्टेज विद लता, लेखिका: नसरीन मुन्नी कबीर और रचना शाह, लता: वॉइस ऑफ द गोल्डन एरा द्वारा मंदर वी बिचू, इंफ्लुएंस ऑफ लता मंगेशकर्स सॉन्ग्स इन माई सॉन्ग्स ऐंड लाइफ, लेखक: तारिकुल इस्लाम आदि किताबें अंग्रेजी में आ चुकी हैं. मूलतः हिन्दी में अपेक्षाकृत कम काम हुआ है. यद्यपि यतींद्र मिश्रा की पुस्तक “लता: सुर गाथा” प्रकाशित हो चुकी है. हिन्दी में लता जी पर किताबों की इस कमी को बहुविध लेखक तथा अध्यययन कर्ता श्री सुरेश पटवा ने बड़ी मेहनत से सुरमयी लता लिखकर किंचित पूरा किया है. और इस तरह उन्होंने हिन्दी जगत का अर्ध्य लता जी को समर्पित किया है.

श्री सुरेश पटवा

इस पुस्तक की विशेषता है कि  शताब्दी की इस सुरसाम्राज्ञी की बड़ी जीवनी को सुरेश जी ने अत्यंत संक्षेप में आम आदमी की जिज्ञासा के अनुरूप मनोहारी तरीके से समेट कर प्रस्तुत किया है. किताब लता पर संदर्भ के रूप में तो उपयोगी है ही, गीत संगीत में रुचि रखने वाले प्रत्येक पाठक का ध्यानाकर्षण करती है. लता की आवाज में जादू था, वे बच्चों सी मीठी बोली, अठखेली करती किशोरी से लेकर प्रौढ़ संजीदगी भरी आवाज में लय ताल राग के अनुरूप गाती थीं.

1974 में लता मंगेशकर का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में सबसे अधिक गाने गानेवाली गायिका के तौर दर्ज किया गया था, जिसमें कहा गया था कि उनके द्वारा 1948 से 1974 तक सोलो, ड्यूट और कोरस में लगभग 25000 गाने गाये गये हैं, ये संख्या 20 से अधिक भारतीय भाषाओं को मिलाकर बताई गयी थी. लेकिन इस रिकॉर्ड के लिए मोहम्मद रफी साहब ने भी चुनौती कर दी और गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड को पत्र के माध्यम से दावा कर दिया कि उन्होंने सोलो ड्यूट और कोरस में लगभग 28000 गाने गाए हैं. गिनीज बुक के दूसरे एडिशन के आने के पहले ही सन 1980 में रफी साहब का निधन हो गया और उनके निधन के बाद जब 1987 में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड का नया एडिशन आया तो उसमें मोहम्मद रफी साहब के नाम के साथ लता मंगेशकर का नाम भी शामिल था, क्योंकि लता मंगेशकर लगातार गाने गा रहीं थी. परंतु  इन रिकॉर्ड के तथ्यों एवं प्रमाणिकता पर सवाल खड़े होने लगे. शोधकर्ता हरमिंदर सिंग हमराज ने लता जी के प्रत्येक गाये हुये गाने को अपनी किताब में सूचीबद्ध किया जो संख्या लगभग छः हजार गिनी गई. अतः गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने 1991 के एडिशन में लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी दोनों का ही नाम हटा दिया. अस्तु महान व्यक्तित्व और विवादों का चोली दामन का साथ बना ही रहता है, यह असामान्य नही है. ईर्ष्या उसी से होती है जो सफल हो. फिर लता जी को तो स्वयं उनकी बहन आशा भोंसलें जी, जो स्वयं एक अत्यंत सफल प्ले बैक सिंगर हैं, उनसे भी चैलेंज मिलता रहा. पटवा जी ने अपनी किताब में एक चैप्टर ही “विवादों के साये ” लिखा है. जिसमें उन्होंने बेबाकी से लता जी के ओ पी नैयर, मोहम्मद रफी, आदि से विवादों का उल्लेख कर पाठको के लिये स्पष्ट वादिता का लेखन किया है.

दिल से, धुंधली यादें, किस्सा रस, विवादों के साये, गीत संगीत की लंबी पारी, सराहना का सर्वोच्च शिखर इन छः चैप्टर्स में सुरेश जी ने गागर में सागर भरने का प्रयास कर लता जी के प्रति एक फिल्मी संगीत के रसिक श्रोता की श्रद्धांजली के रूप में लता जी के दुखद अवसान पर मात्र ३ दिनों में यह किताब लिख कर पूरी की है. लता जी का निधन ऐसी पीड़ा दायक घटना थी, जिससे सभी स्तब्ध रह गये थे. स्वाभाविक रूप से इस मर्मांतक घटना को अपने अपने तरीके से प्रत्येक भावुक हृदय व्यक्ति ने अभिव्यक्त किया था. मैंने ये पंक्तियां लिखी थी तब जो वेब दुनिया पोर्टल पर प्रकाशित हैं…

स्वर साम्राज्ञी कोकिल कंठी, हम सब का है प्यार लता

भारत रत्न, रत्न भारत का, गीतो का सुर, सार लता ।

रागो का जादू, जादू गजल का, सरगम की लय, तार लता,

तबले की धिन् पर, सितारों की धड़कन, नगमों की रस धार लता ।

बनारस घराना, जयपुर तराना, गीतो का इकरार लता,

बैजू सुना था सुर बावरा वो, तानसेन दीदार लता।

सरहद की रेखा से सुर बड़ा है, नूपुर की झंकार लता

भारत पाक लाख दुश्दुमन हों, जनता की सरकार लता ।

तुम्हारा ये जाना न माने जमाना, रहेंगी सदा गुलजार लता

कुल मिलाकर कहना चाहता हूं कि सुरमयी लता लिखकर सुरेश पटवा जी ने एक समसामयिक जागरूख अन्वेषी लेखक होने का दायित्व निभाया है. पुस्तक तथ्यात्मक जानकारियों के साथ रोचक शैली में लिखी गई भावात्मक अभिव्यक्ति है. पठनीय है और संदर्भ में बार बार पढ़ी जाती रहेगी. पुस्तक त्रुटि रहित मुद्रण के साथ अच्छे कागज पर स्तरीय है. लता जी जैसे किरदार सार्वजनिक संपदा हो जाते हैं, जिनके विषय में हर कोई जानना चाहता है, इस तरह की परिचयात्मक किताबों की सीरीज अन्य गायको तथा फिल्म जगत के कलाकारों पर सुरेश पटवा जी से अपेक्षित है. संतोष इस बात का है कि लता जी को गायकी में स्थापित होने के लिये भले ही संघर्ष करने पड़े किंतु नये संसाधनो के जरिये आज हर मोबाईल पर स्टार मेकर्स जैसे  ऐप हैं जिनसे प्रतिभायें अपनी सार्वजनिक उपस्थिति दर्ज कर रही हैं. इंडियन आईडल जैसे रियलटी शो प्लेटफार्म हैं जिनसे लता जी के कई प्रतिरूप शनैः शनैः गायिकी में अपना स्थान बना रहे हैं. किन्तु निर्विवाद तथ्य है कि लता दी तो लता दी ही थीं, न भूतो न भविष्यति. यद्यपि जिस दिन एक नई लता स्थापित होगी, संभवतः स्वर्ग में बैठी लता जी को ही सर्वाधिक प्रसन्नता होगी, क्योंकि सुर साधना सरस्वती की तपस्या और पूजा है.


चर्चाकार… विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’

ए २३३, ओल्ड मीनाल रेसीडेंसी, भोपाल, ४६२०२३

मो ७०००३७५७९८

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Subedarpandey

लता दी पर सारगर्भित पुस्तक लिख कर हिंदी पाठकों पर सुरेश पटवा जी ने समस्त पाठक वर्ग को अनुग्रहित किया है । जिसके लिए हम समीक्षक संपादक प्रकाशक तथा लेखक महोदय का आभार व्यक्त करते हैं।——-
सूबेदार पाण्डेय कवि आत्मानंद जमसार सिंधोरा बाजार वाराणसी