श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक  व्यंग्य “रात जो रात नहीं रही ।  इस  साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता  को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल # 8 ☆

☆ व्यंग्य – रात जो रात नहीं रही 

 

“वेलकम, यात्रा कैसी रही ?” मैंने केके को स्टेशन पर रिसीव करते हुए पूछा. केके यानी कपिल कुमार यानी कुम्भकरण हमारे होस्टल का. आज जब स्टेशन पर उतरा तो एक लम्बी सी जमुहाई लेते हुए बोला- “नींद नहीं हुई डियर ठीक से.”

“तुम्हारी नींद नहीं हुई. कमाल है ! छह-छह महिनों तक सोने का रिकार्ड है तुम्हारे नाम. आज तक कोई तोड़ नहीं पाया फिर ………”

“वो त्रेता युग की बात है डियर. उन दिनों मोबाईल नहीं हुआ करते थे ना. ”

“स्विच ऑफ करके सो जाना था.”

“मैंने अपना तो कर दिया था, सहयात्री का क्या करता ? हर थोड़ी देर में इनकमिंग. हर इनकमिंग पर ईश्क सूफियाना. सूफी संतों को ही क्या पता था प्रेम के उनके संदेशों की ये गत बनेगी.”

फियांसी रही होगी उसकी. रह-रह कर उसकी घंटी बजती और रह-रह कर नींद हमारी हराम होती जाती. पहले बोगी में, फिर ट्रेन में और रात के पौने एक बजते बजते सारी कायनात को पता चल गया कि इंदौर हावड़ा क्षिप्रा एक्सप्रेस की बोगी नं. एस-6 में तैंतीस नम्बर की बर्थ पर एक प्रेमी पसरा पड़ा है, विरह में व्याकुल जिसकी फियांसी न खुद सो पा रही है न डिब्बे में किसी और को ही सोने दे रही है. समय बदल गया है साहब. कभी प्रेमी जन प्रतीक्षा किया करते थे कि सो जाये सारा जमाना तो कर लें मन की बातें, इतनी धीमे कि दूसरा कान भी न सुन पाये. अब तो लव इतना लाउड कि न ईश्क की छुपम-छुपाई का आनंद रहा न सूफियाना पवित्रता. जमाना तो कबूतरों वाला ही बेहतर था. बांध दिया पुर्जा पंजों में और जा बैठे छज्जे में. उत्तर की प्रतीक्षा करते-करते एक दो विरह गान लिख मारे. पंखिड़ा ने संदेश लाने में देरी की तो थोड़ा सूख साख लिये. वजन भी कम हो लिया साथ ही साथ. अब तो  घंटों लेटे लेटे बतियाते रहो कि आसानी रहे चर्बी को चढ़ने में. तुम ही बताओ डियर, जब तक एक भी प्रेमी जाग रहा हो डिब्बे में तब तक बाकी सब कैसे सो सकते थे ?”

“टोक देना था उसे.”

“किस-किस को टोकता डियर. मिडिल बर्थ वाले अंकलजी रात डेढ़ बजे तक अपनी वाइफ को सफाई देते रहे. मामला टसर सिल्क की साड़ी पर अटका था. उनकी बेटर-हॉफ उनके मेमेारी-लॉस के आर्ग्युमेंट को मानने के लिये तैयार नहीं थी. अंकलजी ने कंजूसी के तमाम आरेाप खारिज किये. आंटीजी के प्यार में पगे होने की कसमें खाई. हर बार वही ढाक के तीन पात. दलीलें उनकी खारिज होती जाती थी – नींद हमारी खराब होती जाती थी. फिर कहानी में एक टर्निंग पाईंट आया – किसी कामिनी मैडम के नाम पर. अंकलजी ने गले की सबसे निचली तह से, पूरे हाई पिच पर, घर पहुँचते ही चार जूते लगाने की घोषणा की. सहयात्री महिलायें डर गईं. ऐसे मरद का क्या भरोसा ! जोश में किसी को भी जूते मार सकता है. कुछ देर पहले कह ही रहे थे अंकलजी – औरतें सब एक जैसी होती हैं.”

“फिर”

“फिर क्या डियर, गॉड इज ग्रेट. बेलेन्स खत्म हो गया उनके मोबाईल में. तूफान के बाद की खामोशी छा गई. निस्तब्ध नीरव निशा में हम नींद के आगोश में समाने ही वाले थे कि साइड अपर का अलार्म बज उठा. शिर्डी वाले सांई बाबा, आया है तेरे दर पे…….”

“तुम्हें इन्हीं से दुआ करनी थी.”

“की मैंने. मन्नत मांगी कि आज की रात सारे नेटवर्क ठप्प हो जायें. कुबूल भी हो गई. मगर तब तक कुछ स्टूडेंटस्  कैलाशा-लाइव बजाने लगे.”  स्टेशन से घर तक केके अपनी आपबीती रातबीती सुनाता रहा.

हमारा मुल्क ऐसा ही है साहब-आप वोट देते हैं सरकार मिल जाती है, शासन नहीं मिल पाता. अधिकार मिल जाता है सूचना नहीं मिल पाती. एडमिशन मिल जाता है शिक्षा नहीं मिल पाती. आप पैसे देते हैं बर्थ मिल जाती है, नींद नहीं मिल पाती. कैसे-कैसे जतन करते हैं! भिनसारे आरक्षण की लाईन में लग जाते हैं. तत्काल में ज्यादा पैसे देते हैं. एजेन्ट से लेकर कुली तक की चिरौरी करते हैं. प्लेटफार्म के इस छोर से उस छोर तक काले कोट वाले के पीछे-पीछे घूमते हैं. उसकी घुड़कियों का बुरा नहीं मानते. मिन्नतें करते हैं, ऑन देने को सहमत होते हैं, बमुश्किल एक बर्थ का जुगाड़ जम पाता है. चलिये साहब, चेन-ताले से अटैची बांध के पसर जाइये. सुन्दर, सलोने सपनों के संसार में प्रवेश करने जा ही रहे हैं कि उपर की बर्थ वाला जगा कर पूछता है आपसे “भाई साहब कौन सा स्टेशन आया ?” उल्लू हैं आप जो धनघोर अंधेरे में डूबे स्टेशन का नाम पढ़कर बतायेंगे.

“होनोलुलु है. उतरेंगे आप ?”

“नहीं, बकानियाँ भौंरी जाना है. आये तो बताईयेगा.”

“अभी देर है. दो घंटे लेट चल रही है.” – साइड लोअर से आवाज आई.

“एक घंटा बावन मिनिट” – किसी ने एक्जेक्ट बताने की कोशिश की.

“राजधानी का क्रॉसिंग है.”

“अभी और पिटेगी ट्रेन. जयपुर निकालेंगे इसको रोककर.”

शब-ए-फुरकत का जागा हूँ फरिश्तों अब तो सोने दो. आप गाना चाहते हैं मगर गा नहीं पाते. बस बाल नोंच कर रह जाते हैं. अमजद खान भी नहीं रहे अब कि डरा सकें आप – सो जा, सो जा वरना गब्बर आ जायेगा.

निशांत की गहरी नींद में होते हैं आप तब पैसठ नम्बर की बर्थ से ओमऽऽऽऽ का ब्रम्हनाद गूंजता है. समूची सृष्टि में गुंजायमान होने की नीयत से निकला प्राणायाम का स्वर बोगी में सोये यात्रियों को हिलाकर रख देता है. कांप उठते हैं आप. ट्रेन पटरी से उतर तो नहीं गई ?  ऐसा कुछ नहीं हुआ है,  बस चादर बिछा ली है उन्होने, डिब्बे के फर्श पर भृस्त्रिका कर रहे हैं. अनुलोम विलोम करेंगे. आप दुआ करते हैं कि डेस्टिनेशन आने तक शवासन करते रहें. मगर आपका ऐसा नसीब कहाँ! नित्य नियम तो वे पूरा करेंगे ही. टिकट के पीछे लिखा है कहीं कि चलती ट्रेन में योगा करना मना है. महर्षि पतंजलि के जमाने से करते आ रहे हैं, आज क्यूं छोडें ? उनके फेफड़ों में समाती ऑक्सीजन के आरोह अवरोह आपके खर्राटों पर भारी पड़ते हैं. सो आप चद्दर से मुँह ढंके रहें. कान, आँख, मुँह, स्लीपिंग सेन्सेटिव इन्द्रियों को चद्दर में छुपाये रखें साहब. बेवफा नींद कभी तो आयेगी. जीरो से एक सौ अस्सी डिग्री तक करवटें बदलते रहें. हाथ पीछे ले जाकर पीठ खुजाते रहें. कुम्भकरण तक नहीं सो पाता, किसी और की क्या बिसात! जतन करते रहें.

रेल के सफर में आप अपने को सर्वाधिक भाग्यशाली उस रात समझते है जिस रात कोई बारात आपकी बोगी में नहीं फंसती. डिब्बे में पसरी खिजाओं को भी वे बहारें मानकर अनुरोध करते चलते हैं-फूल बरसाओ कि मेरा महबूब आया है. भोजन घर से पैक करा कर लाया है. स्टील की टंकियों में भरी पूरियाँ, आलू गोभी की सब्जी, अचार की तीखी गंध आपकी निद्रा ही नहीं क्षुधा को भी जगाये रखती है. आज की रात पूरा डिब्बा ही बारात है. पेपर प्लेट पर रखी मनुहार जगाये रखती है. सकुचाइये नहीं. शानदार खोपरा पाक कह रहा है सोया क्यूं है पट्ठे. उठ. सेंव कम है तो भुआजी से मांग. खाना निपटे तो अंत्याक्षरी शुरू करें. बड़ी मामी कब से ढोलक तैयार किये बैठी है. महोबावाली मौसी पहले दो भजन गायेंगी. फिर युवा मंडली के हवाले पूरा एस-6. पप्पा तो ट्रेन में ही डीजे लगवाने को कह रहे थे. सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देती. न चांदनी न सुहानापन, बस कुछ फटे बांस हैं. कुछ दूसरों के कान फोड़ने की कवायदें और एक रात है जो रात नहीं रही. ‘ती’ पर खत्म हुआ है तो ‘ती’ से ही गाइये. नाऽऽऽ नाऽऽऽ नईऽऽ नईऽऽ ये ‘आ’ से शुरू होता है आपको ‘ती’ से गाना है. चीटींग.. चीटींग.. तमाम सालियाँ चीख रहीं हैं. जिज्जाजी मान नहीं रहे. चीटींग तो आज रात आपके साथ घट रही है. आपके पगला जाने में कुछ ही क्षण बाकी है. तभी पिछले जन्म के  कुछ कुछ पुण्यकर्मों का उदय होता है. आपको नींद आती ही है कि ‘थ्री सिक्स थर्टी-सिक्स.‘ घबराईये नहीं. आपकी बर्थ कोई और क्लेम नहीं कर रहा. तम्बोला निकाल लिया है छोटी मामी ने. बोगी… बोगी. पूरी की पूरी बोगी कांप उठी है उनकी चीखों से जिनके कार्नर्स अभी तक कटे नहीं हैं. पहले बॉटम लाईन, फिर मिडिल, फिर अपर. सम्भल कर सोइये आपकी  लाईन खतरे में हैं ? लुक फॉर फुल हाउस डियर. हर वो आनंद जो कहीं नहीं लिया जा सकता एस-6 में है. सोना मना है यहाँ कि अभी कुछ देर में चाय की फेरी शुरू होने वाली है.

ऐसी रातों से केके का वास्ता अक्सर पड़ता ही है. उसकी परेशानी का अंदाजा बहुत से लोगों को नहीं है. उसे आज ही मेरे शहर में तीन प्रजेन्टेशन्स करना है. क्लाइंटस को सेट करना है. आर्डर्स बुक करने है. टारगेट्स का दैत्य सामने खड़ा है. व्यक्तित्व को खुशनुमा रखना उसकी मजबूरी है. क्लाइंट्स से मिलते समय जॉली, जोवियल, हंसमुख, सजग दिखना कम्पलसरी है. कॉम्बीफ्लेम लें आप, सिंकारा पियें, बार-बार आँखों पर गीला रूमाल रखें. वाट एवर इट टेक्स. मार्केटिंग की क्लास में कहा गया है पसनैलिटी प्लीजंट होना. नींद युवा पीढ़ी की जरूरत नहीं विवशता है. ‘करवटें बदलते रहें सारी रात हम, आपकी कसम’ आप अपनी प्रियतमा से तो कह सकते हैं अपने बॉस को कैसे कहें. वो तुरन्त एक पिंक स्लिप पकड़ा देगा आपको, गुडबॉय कर देगा.

आपा धापी भरी जीवन शैली में चैन की नींद कुम्भकरण को भी मयस्सर नहीं है.

 

© शांतिलाल जैन 

F-13, आइवरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, टी टी नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments