श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद”

(प्रत्येक रविवार हम प्रस्तुत कर रहे हैं  श्री सूबेदार पाण्डेय “आत्मानंद” जी द्वारा रचित ग्राम्य परिवेश पर आधारित  एक धारावाहिक उपन्यासिका  “पगली  माई – दमयंती ”।   

इस सन्दर्भ में  प्रस्तुत है लेखकीय निवेदन श्री सूबेदार पाण्डेय जी  के ही शब्दों में  -“पगली माई कहानी है, भारत वर्ष के ग्रामीण अंचल में पैदा हुई एक ऐसी कन्या की, जिसने अपने जीवन में पग-पग पर परिस्थितिजन्य दुख और पीड़ा झेली है।  किन्तु, उसने कभी भी हार नहीं मानी।  हर बार परिस्थितियों से संघर्ष करती रही और अपने अंत समय में उसने क्या किया यह तो आप पढ़ कर ही जान पाएंगे। पगली माई नामक रचना के  माध्यम से लेखक ने समाज के उन बहू बेटियों की पीड़ा का चित्रांकन करने का प्रयास किया है, जिन्होंने अपने जीवन में नशाखोरी का अभिशाप भोगा है। आतंकी हिंसा की पीड़ा सही है, जो आज भी  हमारे इसी समाज का हिस्सा है, जिनकी संख्या असंख्य है। वे दुख और पीड़ा झेलते हुए जीवनयापन तो करती हैं, किन्तु, समाज के  सामने अपनी व्यथा नहीं प्रकट कर पाती। यह कहानी निश्चित ही आपके संवेदनशील हृदय में करूणा जगायेगी और एक बार फिर मुंशी प्रेमचंद के कथा काल का दर्शन करायेगी।”)

इस उपन्यासिका के पश्चात हम आपके लिए ला रहे हैं श्री सूबेदार पाण्डेय जी भावपूर्ण कथा -श्रृंखला – “पथराई  आँखों के सपने”

☆ धारावाहिक उपन्यासिका – पगली माई – दमयंती –  भाग 16 – उन्माद ☆

(अब  तक आपने पढ़ा  —- अब तक आप पढ़ चुके हैं कि पगली दवा ईलाज से ठीक हो अपना सामान्य जीवन जी रही थी, उसनें सेवा धर्म अपना लिया था। निस्वार्थ सेवा ही उसके जीवन का अंतिम लक्ष्य बन गया था। उसकी दिनचर्या अच्छी भली चल रही थी। अब आगे पढ़े—- )

पूर्वावलोकन–पगली माई जब लोगों की सेवा करते करते थक कर निढाल हो जाती, तो कुछ पल आराम करने के लिए वटवृक्ष की छांव में आकर लेट जाती। आज पगली माई का दिल बहुत घबरा रहा था।

आज वह ठीक से सो भीनहीं पाई थी, उसे देश और समाज की चिंता सता रही थी। एक तरफ पडोसी देश ईस्लाम के रक्षा के नाम पर विषवमन कर आतंकवादी कार्यवाही में सहयोग तथा समर्थन दे देश में अपने समुदाय के नवयुवा पीढ़ी को भड़का रहा था, तो दूसरी तरफ अपने देश के तथा कथित राजनेता अपना राष्ट्र धर्म भूल वोटों की खेती में छद्म राष्ट्रभक्ति का स्वांग रच कोरी लफ्फाजी करने में ही मस्त थे।  सभी देश हित का परित्याग कर सत्ता के लिए वोटों का समीकरण अपने पक्ष में करने के चक्कर में थे और जनता बेचारी चक्कर-घिन्नी बन खाली खेल देख रही थी। उसे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था।  चुनाव सर पर था और सत्ता प्राप्ति की चाह उन्हें घिनौनी राजनीतिक चालें चलनें पर मजबूर कर रही थी।

जनता के बीच धार्मिक उन्माद के बीज बो घृणा और नफरत का उन्माद फैला दिया गया था।  कोई खुद को इस्लाम का रक्षक झंडाबरदार बताता तो कोई खुद को हिंदुत्व का पैरोकार और कोई दलित हितों की बात कर अपने स्वार्थ की विषबेल सींच रहा था, कुछ लोग इंसानियत को टुकड़े टुकड़े कर धर्म रक्षा का नाटक कर रहे थे, सभी पार्टियों के नेता धर्म तथा इंसानियत का वास्ता दे आम इंसान का कत्ल करवा रहे थे, क्योंकि उनकी चिता की आग पर राजनीति की रोटी जो उन्हें सेंकनी थी।

वो उन देशवासियों के हत्यारे थे जिनका धर्म, संप्रदाय जातिवाद से कभी कोई रिश्ता भी न था। वे अपनी राह भटक चुके थे।  इन्ही बेकसूरों की चिंता पगली माई को खाये जा रही थी।  कुछ सोचो, जब हमारा राष्ट्र ही नही होगा, तो कहाँ होगा हिन्दू और कहाँ होगा मुसलमान?  आज देश की सारी फिजां में जहर घुला था, लोग अकारण एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे, और पगली माई बरगद की छांव में सोई किसी अज्ञात भय आशंका से थर थर कांप रही थी।  उसका आशंकित मन बारबार किसी अनहोनी की आशंका से दहल रहा था।

आज भारत बंद का आह्वान था, जुलूस निकलने वाला था जिसका उद्देश्य विपक्ष का अपना शक्ति परीक्षण तथा पक्ष का उद्देश्य उसे रोकना था।  टकराव की स्थिति उत्पन्न
हो गई थी।  भीड़ जुट गई थी, जोर जोर से नारेबाजी हो रही थी – “जो हमसे टकरायेगा, मिट्टी में मिल जायेगा”, “जिन्दाबाद मुर्दाबाद” के नारों के बीच प्रशासनिक अमला पूरी तरह चाक चौबंद दिख रहा था।

इसी बीच किसी नें भीड़ के बीच पत्थर उछाल दिया था। पत्थर उछलना था कि, मानों कयामत आकर खड़ी हो मुस्कुरा उठी हो। उन्मादी भीड़ हिंसक हो उठी थी और राष्ट्रद्रोहीयों की बांछें खिल गई थी। लगातार ईंट पत्थर हवा में उछल उछल कर जमीन पर गिर रहें थे,। लोगों के घायल शरीरों से निरंतर रक्त के फौव्वरे फूट रहे थे। जहाँ शैतान के  चेहरे पर शैतानी की कुटिल मुस्कान थी, वहीं इंसानियत की आंखों में अपनी बेबसी पर दुख और पीड़ा।

इन्ही दृश्यों को पगलीमाई अस्पताल के गलियारे से देख रही थी। जब उससे हिंसा का नग्न तांडव नहीं देखा गया तो वह दौड़ पड़ी माँ भारती का प्रति रूप बन कर लोगों को हिंसा की ज्वाला से बचाने।

वह लगातार दोनों हाथों को उपर उठाये  समझाने वाले अंदाज में चीखती जा रही थी कि अचानक भीड़ से एक पत्थर उछला और सनसनाता हुआ पगली माई के सिर से टकराया तथा उसके जमींदोज होते होते अनेक पत्थर गिरे थे उसके उपर, उसे देख ऐसा लगा कि शक्ति का अवतार बन दुष्टो का संहार करने वाली नारीशक्ति ने आज अचानक अहिंसा का हथियार उठा लिया हो।

वह हिंसा का जबाब प्रतिहिंसा से नहीं अहिंसा से दे रही थी और पत्थरों की मार सहते सहते वहीं गिर गई।  ऐसा लगा जैसे पगली माई और पत्थरों का जनम जनम का पुराना नाता रहा हो। पुलिस ने लाठीचार्ज कर भीड़ को तितर बितर कर दिया था। जब तथा कथित देशभक्तों की भीड़ छंटी तो वहां का दृश्य हृदय विदारक था। बिखरे ईंट पत्थर तथा जूते चप्पलों के ढेर के बीच घायल पगली दर्द और पीड़ा से जल बिन मछली की तरह पड़ी हुई छटपटा रही थी।  जहाँ प्रशासनिक अमला कानूनी कार्रवाई में व्यस्त थे, वहीं दूसरी तरफ मीडिया कर्मी दंगे फसाद की जड़ तक पहुँच अपना सामाजिक दायित्व निभाते हुये सच्चाई उजागर करने के के प्रयास में प्राणपण से जुटे हुए थे। उन पत्थर दिलों के बीच पड़ी पगली दर्द और पीड़ा को पीने का प्रयास कर रही थी। ऐसा लगा जैसे पत्थरों और पगली का चोली दामन का साथ हो।  उसकी आंखों के आंसू उसकी पीड़ा बयां कर रहे थे, और अब राजनैतिक अंतर विरोध के स्वर मुखरित हो उठे थे।  आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी हो चला था जैसा कि हर घटना के बाद होता है।  और पगली माई आज फिर उसी अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में भर्ती थी, जहाँ से पहले भी उसने नवजीवन पाया था। सड़क पर निरपराधों का खून देख फफक फफक कर रो पडी़ थी पगली की आत्मा।

अगले दिन अलसुबह के अखबारों में पगली के घायल होने का समाचार छपा तो लगा कि जैसे उसे देखने सारा शहर उमड़ पड़ा हो, क्योंकि तब तक उसके निस्वार्थ सेवा प्रेम की खबर सारे शहर में चर्चा का विषय बन चुकी थी।  आज क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सारे लोग अपना मतभेद भुला पश्चाताप की मुद्रा में खड़े थे।  सबके सिर झुके थे, शर्म से, उन्हें अपनी करनी पर अफ़सोस था। और वह बिस्तर पर पड़ी पड़ी सबको मानों अपने ममता के दामन में समेट लेना चाहती हो। उसे किसी से कोई गिला शिक़वा नहीं, उसने सबको क्षमादान दे दिया था। और उसके भीतर मूर्तिमान हो उठी थी साक्षात माँ भारती।

क्रमशः  –—  अगले अंक में7पढ़ें  – पगली माई – दमयंती  – भाग – 17  – महाप्रयाण 

© सूबेदार पांडेय “आत्मानंद”

संपर्क – ग्राम जमसार, सिंधोरा बाज़ार, वाराणसी – 221208

मोबा—6387407266

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments