डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं। आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका एक अत्यंत विचारणीय एवं सार्थक आलेख “रिश्तों में खटास”.)
☆ किसलय की कलम से # 55 ☆
☆ रिश्तों में खटास ☆
दुनिया का हर इन्सान रिश्तों में बँधा होता है। ये बन्धन आपसी सुख-दुख, त्याग-समर्पण व प्रेम-भाईचारे को मजबूती प्रदान करते हैं। खून के रिश्ते हों, प्रेम के रिश्ते हों अथवा वैवाहिक, व्यावसायिक, सामाजिक सरोकारों के हों, सभी में एकता और आदान-प्रदान का सकारात्मक ध्यान रखा जाता है। खून के रिश्ते सबसे सुदृढ होते हैं। इन रिश्तों में बँधे लोग एक-दूसरे का हर तरह से ध्यान रखते हैं। खून के रिश्तों के निर्वहन में लोग अपनी जान की बाजी तक लगा देते हैं। वैवाहिक रिश्ते भी दूध-शक्कर का मिला स्वरूप होते हैं। सामाजिक रिश्तों में भी वजन होता है। दोस्ती के रिश्तों की तो मिसालें दी जाती हैं।
दुनिया में रिश्तों की जहाँ अहमियत होती है वहीं रिश्तों में खटास के चर्चे भी कम नहीं होते। कभी वास्तविकता, कभी झूठ, कभी भ्रम अथवा अन्य कारणों से रिश्तों में खटास या दरारें पड़ जाती हैं। कभी कभी इनका अलगाव इतना अधिक बढ़ जाता है कि पुनः आजीवन जुड़ाव नहीं होता। रिश्तों में खटास के विविध कारण हो सकते हैं। इस खटास की वजह से लड़ाई, झगड़े यहाँ तक कि हत्यायें भी हो जाती हैं। कभी कभी अलगाव की अवधि इतनी लंबी होती है कि लोगों को बहुत बड़ी क्षति भी उठाना पड़ती है। इन सबके अतिरिक्त रिश्तों के बीच ‘अहम’ भी इन अलगाव में अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वहन करता है।
रिश्तों की खटास उभय पक्षों के लिए हानिकारक होती है। ये हानि व्यवहारिक, आर्थिक, व्यावसायिक होने के साथ-साथ मानसिक भी होती है। ये हानि कभी कभी तो आदमी का जीवन तक तबाह कर देती है। कुछ अप्रत्याशित हानि भी लोगों का संतुलन बिगाड़ती है। दुनिया में खून के रिश्ते एक बार ही जन्म लेते हैं। इन रिश्तों की टूटन बेहद पीड़ादायक होती है। दोनों पक्ष कभी कभी अहम के वशीभूत हो झुकना ही नहीं चाहते और सारी जिंदगी पीड़ा भोगते रहते हैं। ये ऐसी पीड़ा होती है जो आदमी की आखरी साँस तक साथ नहीं छोड़ती।
इंसान में बुद्धि व विवेक दोनों होते हैं लेकिन पता नहीं क्यों परिस्थितिजन्य खटास या अलगाव समाप्त करने की बात पर प्रायः उसका सदुपयोग नहीं करते। शायद इसके आड़े उनका अहम अथवा स्वार्थ ही आता होगा। कुछ भी हो एक इंसान को इसका निराकरण समय रहते अवश्य कर लेना चाहिए अन्यथा उसे इसकी पीड़ा जीवन भर भोगना पड़ सकती है।
हम इंसान हैं। ईश्वर की असीम कृपा से हमारा इस जग में जन्म हुआ है। इंसानियत के नाते हमें धैर्य, धर्म, संतोष, परोपकार व भाईचारे की राह पर चलना चाहिए। हमारे न रहने पर भी लोग हमारे सत्कर्मों की चर्चा करें, हमें ऐसे कर्म और व्यवहार के मानदण्ड स्थापित करना होंगे। लोगों के दुराचरण उनको पतन और अमानवीयता के रास्ते पर ले जाते हैं और आपके सदाचरण आपको श्रेष्ठ बनाते हैं। आपकी श्रेष्ठता, आपके परिवार, समाज और व्यवहारिक जीवन को सार्थक बनाती है। इसलिये कभी भी रिश्तों में खटास न आये, हमे सदैव सजग रहना होगा।
© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’
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आलेख प्रकाशन हेतु आभार अग्रज।