श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक सार्थक एवं विचारणीय रचना  “समय के साथ बदलते रहें…”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 94 ☆

☆ समय के साथ बदलते रहें… ☆ श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’  

सभा कोई सी हो, बस विचारकों को ढूंढती रहती है। अब लोकसभा में न जीत पाएँ तो विधानसभा में जोर आजमाइश कीजिए। और यहाँ भी मुश्किल हो तो राज्यसभा या विधानपरिषद की सीट सुरक्षित कीजिए। बस कुछ न कुछ करते रहना है। कहते हैं राजनीति में कोई भी स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता है। बस कुर्सी ही सबकी माई- बाप है। कुर्सी बदलाव माँगती है, सो अधीरता दिखाते हुए उन्होंने विरोधियों को सूचीबद्ध कर दिया। मगर परिणाम उनकी आशा के विपरीत आया। अब गुस्से में ये लिस्ट उन्होंने बाहर फेंक दी। दूसरे दलों ने ये लिस्ट उठा कर सूची में शामिल लोगों को अपना विश्वास पात्र बना लिया क्योंकि दुश्मन का दुश्मन मित्र होता है। इन अनुभवी लोकोक्तियों ने जीने का अंदाज ही बदल दिया है। अब सब कुछ शॉर्टकट सेट हो रहा है। परिश्रम की बातें करना एक बात है, उसे अमल में लाना दूसरी बात है।

परिश्रम का प्रतिफल तभी सार्थक होता है जब नियत सच्ची हो। एक ही कार्य के दो पहलू हो सकते हैं। जल्दी-जल्दी कार्यकर्ताओं का परिवर्तन, जहाँ एक ओर ये सिद्ध करता है कि संगठन में कमीं हैं तो वहीं दूसरी ओर ये दर्शाता है कि समय-समय पर बदलाव होना चाहिए।

बुद्धिमान व्यक्ति वही होता है जो जिस पल मौका मिले अपने को सिद्ध कर सके क्योंकि समय व विचारधारा कब बदल जाए कहा नहीं जा सकता है। क्रमिक विकास के चरण में बच्चा पहले नर्सरी, प्री प्रायमरी, प्रायमरी, माध्यमिक, उच्चतर माध्यमिक पढ़ते हुए विद्यालय से जुड़ जाता है किंतु आगे की पढ़ाई के लिए उसे  इंटर के बाद सब छोड़ कालेज जाना पड़ता है फिर वहाँ से डिग्री हासिल कर रोजी रोटी की तलाश में स्वयं को सिद्ध करना पड़ता है।

इस पूरी यात्रा का उद्देश्य यही है कि कितना भी लगाव हो उचित समय पर सब छोड़ आगे बढ़ना ही पड़ता है अतः केवल लक्ष्य पर केंद्रित हो हर पल को जीते चले क्योंकि भूत कभी आता नहीं भविष्य कहीं जाता नहीं। केवल वर्तमान पर ही आप अपने आप को निखार सकते हैं।

©  श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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