श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

? संजय दृष्टि – राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका – भाग – 11 ??

लोक के उदात्त भाव को विदेशी लेखकों ने भी रेखांकित किया। कुछ कथन द्रष्टव्य हैं-

“भारत मानव जाति का पालना है, मानवीय वाणी का जन्म स्थान है, इतिहास की जननी है और विभूतियों की दादी है और इन सब के ऊपर परम्पराओं की परदादी है। मानव इतिहास में हमारी सबसे कीमती और सबसे अधिक अनुदेशात्मक सामग्री का भण्डार केवल भारत में है!’

– मार्क ट्वेन (लेखक, अमेरिका)

‘यदि पृथ्वी के मुख पर कोई ऐसा स्थान है जहां जीवित मानव जाति के सभी सपनों को बेहद शुरुआती समय से आश्रय मिलता है, और जहां मनुष्य ने अपने अस्तित्व का सपना देखा, वह भारत है।!‘

– रोम्या रोलां (फ्रांसीसी विद्वान) 

‘हम सभी भारतीयों का अभिवादन करते हैं, जिन्होंने हमें गिनती करना सिखाया, जिसके बिना विज्ञान की कोई भी खोज संभव नहीं थी।!‘

– एल्बर्ट आइनस्टाइन (सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी, जर्मनी) 

‘यदि हम से पूछा जाता कि आकाश तले कौन सा मानव मन सबसे अधिक विकसित है, इसके कुछ मनचाहे उपहार क्या हैं, जीवन की सबसे बड़ी समस्याओं पर सबसे अधिक गहराई से किसने विचार किया है और इसकी समाधान पाए हैं तो मैं कहूंगा इसका उत्तर है भारत।‘

– मेक्स मुलर (जर्मन विद्वान)

‘भारत ने शताब्दियों से एक लम्बे आरोहण के दौरान मानव जाति के एक चौथाई भाग पर अमिट छाप छोड़ी है। भारत के पास उसका स्थान मानवीयता की भावना को सांकेतिक रूप से दर्शाने और महान राष्ट्रों के बीच अपना स्थान बनाने का दावा करने का अधिकार है। पर्शिया से चीनी समुद्र तक साइबेरिया के बर्फीलें क्षेत्रों से जावा और बोरनियो के द्वीप समूहों तक भारत में अपनी मान्यता, अपनी कहानियां और अपनी सभ्यता का प्रचार प्रसार किया है।‘

– सिल्विया लेवी (फ्रांसीसी विद्वान) 

‘भारत ने चीन की सीमापार अपना एक भी सैनिक न भेजते हुए बीस शताब्दियों के लिए चीन को सांस्कृतिक रूप से जीता और उस पर अपना प्रभुत्व बनाया है।‘

– हु शिह (अमेरिका में चीन के पूर्व राजदूत)

क्रमशः…

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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