श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 56 ☆ देश-परदेश – आज का मक्खन ☆ श्री राकेश कुमार ☆
आज सांय रेडियो पर एक गीत “ओ मेरे मखना मेरी सोनिए” बज रहा था, तो मक्खन शब्द पर मन में अनेक विचार आने लगे। हमारे परिवार में एक बुजुर्ग भी “मक्खन लाल” के नाम से जाने जाते थे। जब नौकरी आरंभ हुई तो वरिष्ठ साथी कहने लगे मक्खन लगाना सीख लो, तभी ऊंचाई तक पहुंच पाओगे।
अब तो नाश्ते में भी “ब्रैड बटर” को प्रमुखता दी जाती हैं।
विगत दो दशकों से “ढाबा” संस्कृति का चलन बहुत अधिक हो गया हैं। घर का भोजन छोड़ बाहर के भोजन को प्राथमिकता दी जाने लगी है। आजकल किसी भी ढाबे पर जाओ मक्खन दिल खोल कर खिला रहा है। खाने के साथ कटोरी में या परांठों के ऊपर मक्खन के बड़े से क्यूब रख दिए जाते हैं या फिर इस मक्खन को दाल और सब्जियों के ऊपर गार्निश की तरह डाल दिया जाता है।
खाने वाले गदगद हो जाते हैं कि देखो क्या कमाल का होटल है पूरा पैसा वसूल करवा रहा है।
ये मक्खन नहीं सबसे घटिया पाम आयल से बनी मार्जरीन है।
बटर टोस्ट, दाल मखनी, बटर ऑमलेट, परांठे, पाव भाजी, अमृतसरी कुल्चे, शाही पनीर, बटर चिकन और ना जाने कितने ही व्यंजनों में इसे डेयरी बटर की जगह इस्तेमाल किया जा रहा है और आपसे दाम वसूले जा रहे हैं डेयरी बटर के।
कुछ लोगों को ढाबे पर दाल में मक्खन का तड़का लगवाने और रोटियों को मक्खन से चुपड़वा कर खाने की आदत होती है। उनकी तड़का दाल और बटर रोटी में भी यही घटिया मार्जरीन होती है।
लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए इसे जीरो कोलेस्ट्रॉल का खिताब भी हासिल है। क्योंकि मेडिकल लॉबी ने लोगों के दिमाग में ठूंस दिया है कि बैड कोलेस्ट्रॉल ह्रदय आघात का प्रमुख कारण है। इसीलिये आजकल जिस भी चीज पर जीरो कोलेस्ट्रॉल लिखा होता है जनता उसे तुरंत खरीद लेती है। इस प्रकार के उत्पाद जो किसी असली चीज का भ्रम देते हैं उनपर सरकार को कोई ठोस नियम बनाना चाहिए।
सरकार को चाहिये इस मार्जरीन का रंग डेयरी बटर के रंग सफ़ेद और हल्के पीले के स्थान पर भूरा आदि करने का नियम बनाये जिससे लोगों को इस उत्पाद को पहचानने में सुविधा हो ताकि उन्हें मक्खन के नाम पर कोई मार्जरीन ना खिला सके… आप मार्जरीन के बारे मे और अधिक गूगल पर सर्च कर सकते है यह मक्खन नहीं है।
इसलिए बाज़ार के मक्खन का उपयोग दूसरों को लगाने में ही करें। आपके अटके हुए कार्य इत्यादि जल्द पूरे हो जाएंगे। यदि मक्खन खाना है, तो घर में बनाया हुआ ही खाए और स्वस्थ रहें।
मदनगंज किशनगढ़ (राजस्थान) में “पहाड़िया” के मक्खन वड़े बहुत प्रसिद्ध होते हैं। कहते हैं, सबके साथ खाने से जल्दी हजम हो जाते हैं।
© श्री राकेश कुमार
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