श्रीमती कृष्णा राजपूत
( श्रीमती कृष्णा राजपूत जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है। एक आदर्श शिक्षिका के साथ ही आप साहित्य की विभिन्न विधाओं जैसे गीत, नवगीत, कहानी, कविता, बालगीत, बाल कहानियाँ, हायकू, माहिया, हास्य-व्यंग्य, बुन्देली गीत कविता, लोक गीत आदि की सशक्त हस्ताक्षर हैं। विभिन्न पुरस्कारों / सम्मानों से पुरस्कृत एवं अलंकृत हैं तथा आपकी रचनाएँ आकाशवाणी जबलपुर से प्रसारित होती रहती हैं। आपने अगले सप्ताह से प्रत्येक बुधवार को “साप्ताहिक स्तम्भ – कृष्णा साहित्य” शीर्षक प्रकाशित करने के लिए हमारे आग्रह को स्वीकार किया है जिसके लिए हम आपके ह्रदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है आपकी एक लघुकथा “जीवन साथी का परिवार”।)
☆ लघुकथा – जीवन साथी का परिवार☆
नयी बहू नये-नये अरमानों संग ससुराल की दहलीज पर कदम रखते ही सकुचाई, पर उसनें घूंघट को सरकने न दिया. एकाध स्थान पर तो नेग-दस्तूर में गिरते-गिरते बची. खिला चेहरा नये अरमान और बहू के लिये अनजाने नये एक दूसरे मेहमानों का अदब-कायदा करती जा रही थी. सासू माँ आजकल की लड़कियों का रहन-सहन तो जानती थी.
वर्तमान के वातावरण से परिचित थी. जैसे ही बहू ससुर साहब के पैर छूने झुकी तुरन्त सासु माँ ने कहा – “बेटी इतना अधिक परदा मत करो, मै और तुम्हारे ससुर साहब आँखों के परदे पर विश्वास करते हैं. पर्दा बड़ो के सम्मान में किया जाता है.”
इतना सुनते ही बहू के चेहरे पर पहले से और ज्यादा निखार आ गया. उस चेहरे का क्या कहना मानो चार चाँद लग गये हों.
अगाध खुशी उसके चेहरे की रौनक पर चमक बढ़ाती ही जा रही थी.
© श्रीमती कृष्णा राजपूत
अग्रवाल कालोनी, गढ़ा रोड, जबलपुर -482002 मध्यप्रदेश