श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक श्री प्रतुल श्रीवास्तव, भाषा विज्ञान एवं बुन्देली लोक साहित्य के मूर्धन्य विद्वान, शिक्षाविद् स्व.डॉ.पूरनचंद श्रीवास्तव के यशस्वी पुत्र हैं। हिंदी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रतुल श्रीवास्तव का नाम जाना पहचाना है। इन्होंने दैनिक हितवाद, ज्ञानयुग प्रभात, नवभारत, देशबंधु, स्वतंत्रमत, हरिभूमि एवं पीपुल्स समाचार पत्रों के संपादकीय विभाग में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन किया। साहित्यिक पत्रिका “अनुमेहा” के प्रधान संपादक के रूप में इन्होंने उसे हिंदी साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान दी। आपके सैकड़ों लेख एवं व्यंग्य देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके द्वारा रचित अनेक देवी स्तुतियाँ एवं प्रेम गीत भी चर्चित हैं। नागपुर, भोपाल एवं जबलपुर आकाशवाणी ने विभिन्न विषयों पर आपकी दर्जनों वार्ताओं का प्रसारण किया। प्रतुल जी ने भगवान रजनीश ‘ओशो’ एवं महर्षि महेश योगी सहित अनेक विभूतियों एवं समस्याओं पर डाक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी किया। आपकी सहज-सरल चुटीली शैली पाठकों को उनकी रचनाएं एक ही बैठक में पढ़ने के लिए बाध्य करती हैं।

प्रकाशित पुस्तकें –ο यादों का मायाजाल ο अलसेट (हास्य-व्यंग्य) ο आखिरी कोना (हास्य-व्यंग्य) ο तिरछी नज़र (हास्य-व्यंग्य) ο मौन

आज प्रस्तुत है आपका एक अप्रतिम व्यंग्य  “मूड” की बीमारी

साप्ताहिक स्तम्भ ☆ प्रतुल साहित्य # 13 

☆ हास्य – व्यंग्य ☆ “मूड” की बीमारी ☆ श्री प्रतुल श्रीवास्तव

दुनिया के सभी डाक्टरों, वैद्यों, हकीमों, मनोवैज्ञानिकों और जादू – टोना जानने वालों से “मूड नामक बीमारी” से पीड़ित मुझ जैसे लाखों करोड़ों भाई – बहिनों का हाथ जोड़ कर निवेदन है कि वे जल्दी से जल्दी इस बीमारी का सस्ता और टिकाऊ इलाज ढूंढें। आज के युग में हृदय रोग और कैंसर की भांति “मूड” नामक बीमारी भी बड़ी तेज गति से फैलती हुई लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ रही है। इसके लिए लिंग और उम्र का बंधन नहीं है। बच्चे, जवान, बूढ़े सभी महिलाएं और पुरुष इसका शिकार हो रहे हैं। प्रेमी अथवा प्रेमिका के खराब मूड के कारण न जाने कितने प्रेमी जोड़े बिछुड़ के विरह गीत गाने लगते हैं तो अच्छा मूड लोगों को मिला भी देता है।

ख़िलाफ़-ए-मा’मूल मूड अच्छा है आज मेरा मैं कह रही हूं

फिर कभी मुझसे करते रहना ये भाव – ताव मुझे मनाओ

मजे की बात तो यह है कि मूड से जो पीड़ित हैं उन्हें तो नुकसान होता ही है, जो उनके संपर्क में आते हैं उन्हें भी नुकसान उठाना पड़ता है। घर के मुखिया का मूड खराब तो सारा घर परेशान, ऑफीसर का मूड खराब तो सारे कर्मचारी और यदि नेता का मूड खराब तो जनता परेशान। सब जानते हैं कि जनता का अच्छा/बुरा मूड यदि किसी को नेता बना देता है तो उसे गद्दी से उतार भी देता है। न जाने क्या बला है यह, कहां से आती है यह मूड की बीमारी और काम बनाकर अथवा बिगाड़ कर कहां चली जाती है।

कितनी भी कोशिश कर लो

            खुश रहने की…..

    मगर कोई न कोई कुछ कह कर…..

            मूड ऑफ कर ही देता है…..

मूड नहीं है तो आफत, मूड है तो आफत, दोनों तरफ से आफत। यदि मूड है तो पता नहीं आदमी क्या कर डाले, यदि मूड नहीं है तो भी पता नहीं आदमी क्या कर डाले। आजकल बिना मूड के कोई कुछ करना ही नहीं चाहता। काम तभी होगा जब मूड होगा।

प्रश्न उठता है कि मूड कब होगा, कैसे होगा ? कुछ लोग भाग्यवादी होते हैं। ऐसे लोग उस समय तक के लिए काम बंद कर देते हैं जब तक “मूड” नहीं आता, जब भूले भटके कहीं से मूड आता है और ऐसे लोगों के दिमाग की सांकल खटखटाता है तब ये लोग काम करते हैं। इसके विपरीत ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो भाग्यवादी नहीं कर्मवादी हैं। ऐसे लोग मूड के आने का रास्ता नहीं देखते बल्कि तरह – तरह के उपायों से मूड बनाने का प्रयत्न करते हैं। कोई गीत – संगीत सुनकर, कोई चाय – कॉफी, सिगरेट पीकर, तमाखू खाकर, कोई एकांत में, कोई भीड़ में, तो कोई किसी बार में  2/4 पैग पीकर अपना मूड बनाते हैं। किसी का मूड किसी व्यक्ति विशेष, अपने परिजनों अथवा अपने पड़ोसियों या अधीनस्थों को डांटने – फटकारने, चीखने – चिल्लाने से ठीक हो जाता है तो कुछ लोगों का उछल – कूद करता मूड किसी से अपमानित होकर, जूते खाकर ठीक हो जाता है। कुछ बेचारे ऐसे भी हैं जिन्हें हर मानसिक परिस्थिति में काम करना पड़ता है –

जिंदगी ऐसी गुजर रही है कि

      मूड ऑफ़ होने पर भी…..

हंसना पड़ता है ताकि किसी….

      को पता न चले…..!!

जी हां भाईयो, इस कठिन जीवन में तमाम अवरोधों और तनावों के बाद भी यदि आपका मूड अच्छा है तो आप भाग्यशाली हैं और यदि किसी कारण से आपका मूड खराब हो जाए तो अपनी मुख मुद्रा और वाणी से किसी को अपने खराब मूड का पता न लगने दें। सामने वाले को खुश और सामान्य दिखते हुए सहज व्यवहार करें। कहते हैं कि फायदा उठाने का मौका आने पर लोग गधे को भी बाप बना लेते हैं। चापलूस और चमचों से सीखना चाहिए वे कितना अपमान सहकर लातें खाकर भी अपना मूड ठीक रखते हैं और काम के व्यक्ति की चरण वंदना जारी रख कर अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त करते हैं। हम और आप न जाने कितने ऐसे अयोग्य व्यक्तियों को जानते हैं जो अपने मूड को वश में करके शीर्ष पर पहुंच गए और इसके विपरीत न जाने कितने योग्य व्यक्ति मूड के वशीभूत होकर खाक में मिल गए। सावधान, यदि आप “मूड” के वश में आ गए तो नुकसान पक्का है और यदि “मूड” को वश में कर लिया तो सफलता की राह भी पक्की है।

© श्री प्रतुल श्रीवास्तव 

संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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Ramesh Chandra Rai
  • मूड–हास्य व्यंग्य की अति उत्तम रचना है,जिसे पढ़कर उनका भी मूड अच्छा हो सकता है जिनका मूड खराब है।उत्तम हास्य-व्यंग्य की रचना पेश करने के लिए धन्यवाद।