स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”
(संस्कारधानी जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया। वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – बूँदा भर बुंदेली…)
साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # २५३ – बुन्देली कविता – बूँदा भर बुंदेली… ४
(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से)
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आवत जावत देख के, नैनन से मुसकाय ।
कैसी बोली-बानगी, चुरियन में बतयाय ||
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आँच तुमाये आँग की, हमसें सही न जाय ।
ऐरी अब ऐसो करौ, छार करौ लपटाय ||
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आँखन में जौआ दिखौ, छिपो लतर की ओट ।
जरुआ-जरिया बीच में, लगी करेजे चोट ॥
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बादर ऐसे छा गये, धरती के अघरान ।
जैसे पिय की गोद में, तिय की तनै कमान ||
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बादर सें बिजुरी कहै, सुन हिरदै के मीत |
हिया फटै तौ फटन दे, निभै प्रीत की रीत ॥
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बरस बरस में दरस हों, तरस तरस रह जाँय ।
अखियां बेबस हो रयें, बरस बरस रह जाँय ||
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चित चितवन की एक गत, गनै न हार पहार |
अगुन सगुन कोऊ मिलै, मिलबे में दरकार ||
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चौका बासन कर लली, चली भली कर पौंछ ।
मुख चन्दा पे लग परी, एक रेख कालौंछ |
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उर उरझत सुरझत रहै, अंग अकारथ होय ।
रसना रस की चाहना, सूखी सैम भिगोय |
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सम्पत विपत समान गन, मन में नेह बसाय ।
बखत परौसी जान कें, कॉटन सें निभ जाय ॥
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सेंदुर बेंदुर तनक में, अपनो ताव बताँय ।
तिरिया तोसक एक गत, दाबै सें दब जाँय ॥
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कंचन केसर तीतुरी, इनखों लये समेंट ।
बिन कौं विधि नें विधि सहित, करे नारि खों भेंट ॥
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© डॉ. राजकुमार “सुमित्र”
साभार : डॉ भावना शुक्ल
112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈







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