श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

एकादश अध्याय

(अर्जुन द्वारा भगवान के विश्वरूप का देखा जाना और उनकी स्तुति करना )

 

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति ।

तथा तवामी नरलोकवीराविशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति ।।28 ।।

 

जैसे नदियां वेग से करतीं उदधि प्रवेश

वैसे ही योद्धा ये सब , तव मुख अग्नि प्रवेश ।।28 ।।

 

भावार्थ :  जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात समुद्र में प्रवेश करते हैं, वैसे ही वे नरलोक के वीर भी आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं॥28॥

 

Verily, just as many torrents of rivers flow towards the ocean, even so these heroes of the

world of men enter thy flaming mouths

 

प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

[email protected]

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments