श्रीमद् भगवत गीता

हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

नवम अध्याय

( निष्काम भगवद् भक्ति की महिमा )

 

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्‌।

साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः ।।30।।

 

दुराचारी भी यदि मुझे भजता देकर ध्यान

उसे भी तो सदबुद्धि दे , देता मैं प्रतिदान।।30।।

 

भावार्थ :  यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझको भजता है तो वह साधु ही मानने योग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात्‌उसने भली भाँति निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है।।30।।

 

Even if the most sinful worships Me, with devotion to none else, he too should indeed be regarded as righteous, for he has rightly resolved.।।30।।

 

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर

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