श्री राकेश कुमार

(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ  की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” ज प्रस्तुत है आलेख – “पोस्ट कार्ड।)

☆ आलेख ☆ पोस्टकार्ड  ☆ श्री राकेश कुमार ☆

संदेश भेजने का सबसे प्रचलित साधन जिसका उपयोग लंबे समय तक चला।ये तो संचार क्रांति ने पोस्ट कार्ड का जीवन ही समाप्त सा कर दिया। साठ के दशक में छः पैसे या इक्कनी प्रति पोस्ट कार्ड हुआ करता था। उस समय दो पोस्ट कार्ड जुडे़ हुए रहते थे, जिसको जवाबी कार्ड कहा जाता था। पोस्ट कार्ड भेजने वाला ही एक जवाबी कार्ड साथ में अपना पत्ता लिख कर भेजता थ। शिक्षा की कमी के कारण पोस्टमैन अपनी लेखनी से पूछ कर जवाब लिख देता था। शिक्षा के प्रसार के कारण कुछ वर्ष पूर्व जवाबी कार्ड बंद हो गया हैं, वैसे अब पोस्ट कार्ड देखे हुए भी दशक से अधिक समय हो चुका हैं।

बाल्य काल में पिताजी के नाम से उर्दू भाषा में लिखा हुआ पोस्ट कार्ड आता था, तो अंदाज लगाते थे किस नातेदार का होगा। यदि उस पर  हल्दी के छीटें होते थे तो खुशी का समाचार होता था। किनारे से थोड़ा सा फटा हुआ कार्ड किसी दुःख की खबर वाला होता था। जिसको पढ़ने के बाद तुरंत नष्ट कर दिया जाता था। कारण ये ही रहा होगा। बार बार आंखों के सामने आने से मन दुःखी होता होगा।

व्यापार में भी पोस्ट कार्ड का भरपूर उपयोग हुआ। कम कीमत के कारण व्यापारी इसका बहुत उपयोग करते थे। बाद में सरकार ने छपे हुए कार्ड की कीमत में वृद्धि कर इसके व्यापारिक उपयोग को सीमित करने में सफलता प्राप्त की थी। कम आय या गरीब व्यक्ति इसी के सहारे अपने से दूर रहने वाले से जुड़ा रहता था।

वर्ष नब्बे में भिलाई शाखा की बिल्स सीट में कार्यरत रहते हुए शाखा प्रबंधक की सहमति से पोस्ट कार्ड छपवा कर बिल भेजने वाली कम्पनी को बैंक का बिल क्रमांक लिख कर पावती भेज देते थे। डाक किताब में प्रवष्टि पर समय खर्च बचाने के लिए पूरा खर्च प्रिंटिंग मद में डाल दिया गया था। इस सिस्टम से बिल भेजने वाली कंपनियों के काम काफी हद तक सुचारू और सुविधाजनक हो गए थे। एक शहर में तो कुकिंग गैस की बुकिंग करने के लिए भी हमने पोस्ट कार्ड का उपयोग किया था। आजकल तो शायर भी ऐसी बातें करने लगे हैं।                        

डाकिया वापिस ले आया आज खत मेरा,

बोला पता सही था मगर लोग बदल गए हैं।

© श्री राकेश कुमार

संपर्क –  B  508 शिवज्ञान एनक्लेव, निर्माण नगर AB ब्लॉक, जयपुर-302 019 (राजस्थान) 

मोबाईल 9920832096

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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