श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है बच्चों के लिए एक ज्ञानवर्धक आलेख – “हैलो की आत्मकथा ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 115 ☆
☆ बाल साहित्य – हैलो की आत्मकथा ☆
आप ने मेरा नाम सुना है. अकसर बोलते भी हो. जब आप के पास टैलीफोन आता है. तब आप यही शब्द सब से पहले बोलते हो. मगर, आप ने सोचा है कि आप यह शब्द क्यों बोलते हो? नहीं ना?
चलो ! मैं आप को बताती हूं. इस के शुरुवात की एक रोचक यात्रा. मैं यह कहानी आप को बताती हूँ. आप इसे ध्यान से सुनना. यह मेरी आत्मकथा भी है.
हैलो ! इस नाम को हरेक की जबान पर चढ़ाने का श्रेय अलेक्जेंडर ग्राहम बैल को जाता है. हां, आप ने ठीक सुना और समझा. ये वही महान आविष्कारक ग्राहम बैल हैं, जिन्हों ने टैलीफोन का आविष्कार किया था.
हैलो ! चौंकिए मत. मेरा नाम हैलो ही है. मैं एक जीती जागती लड़की थी. मेरा पूरा नाम था मारग्रेट हैलो. ग्राहम बैल मुझ से बहुत प्यार करते थे. मैं उन की सब से प्यारी दोस्त थी. वे प्यार से मुझे हैलो कह कर पुकारते थे.
वे भी मेरे सब से अच्छे दोस्त थे. इस वजह से हम अपनी बातें आपस में साझा किया करते थे. वे अपनी सब बातें मुझे बातते थे. मैं भी अपनी सब बातें उन्हें बताती थी. जैसा अकसर दोस्तों के बीच होता है, वैसा हमारे बीच बातों का आदानप्रदान होता रहता था.
यह उन दिनों बात की है जब वे टैलीफोन का आविष्कार कर रहे थे. तब वे उस फोन का परिक्षण मुझे फोन कर के करते थे. इस के लिए उन्हों ने एक फोन का एक चोंगा मुझे दे रखा था. दूसरा चोंगा उन के पास रखा हुआ था.
उस में उन्हों ने कई सुधार किए. इस के बाद वे मुझे फोन करते. सुनते-देखते सुधार के बाद कुछ अच्छा हुआ है. इस के लिए वे अक्सर फोन लगाते थे. तब वे सब से पहला शब्द में मेरे नाम बोलते थे- हैलो !
ऐसा उन्हों ने अनेकों बार किया. इस बात को उन के मित्र भी जानते थे. परिक्षण के दौरान भी उन्हों ने सब से पहला शब्द हैलो ही बोला था. तब से यह शब्द टैलीफोन करने- वालों के लिए एक संबोधन बन गया. जब भी कोई किसी को टैलीफोन करता या किसी का टैलीफोन उठाता सब से पहला यही शब्द बोलता था.
इस से यह शब्द टैलीफोन के लिए चल निकला.
यह शब्द ग्राहम बैल की देन है. इन्हों ने टैलीफोन सहित अनेक आविष्कार किए है. इन के अविष्कार ने ग्राहम बैल को अमर बना दिया हैं. मगर आप यह जान कर हैरान हो जाएगे कि आज तक उन का नाम इतनी बार नहीं बोला गया होगा जितनी बार मेरा नाम- हैलो बोला गया है. हमेशा बोला जाता रहेगा.
वे टैलीफोन के आविष्कारक और मेरे सब से अच्छे दोस्त थे. उन्हों ने मेरा नाम अमर कर दिया. मुझे उन की दोस्ती पर नाज है. ऐसा दोस्त सभी को मिले. यह आशा करती हूँ. चुंकि ग्राहम बैल ने सब से पहले मुझे ही टैलीफोन किया था. इस हिसाब से टैलीफोन की सब से पहली स्रोता मैं ही बनी थी. इस तरह दो प्रसिद्धि मेरे साथ जुड़ गई है. जिस ने मुझे सदा के लिए अमर बना दिया.
आशा है आप को मेरी यह आत्मकथा अच्छी लगी होगी.
© ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈