श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – प्रार्थना।)

☆ लघुकथा – प्रार्थना ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

“तुम रोज़ सुबह क्या प्रार्थनाएँ बुदबुदाती हो।”

“मैं अपने देवताओं से प्रार्थना करती हूँ।”

“क्या माँगती हो इनसे?”

“कुछ नहीं।”

“ऐसा कैसे हो सकता है? कुछ न कुछ तो माँगती ही होगी। मुझे लगता है अपने और अपने देश के लिए बेहतर भविष्य माँगती हो।”

“भविष्य तो वे लोग तय करते हैं जिनके हाथ में वर्तमान का नियंत्रण होता है। उन्हीं के आज के कार्यकलाप में भविष्य देखा जा सकता है।”

“तो फिर भविष्य में क्या देख रही हो तुम?”

“गुंडों की दनदनाती टोलियाँ! सब के एक जैसे कपड़े, एक जैसे नारे, एक जैसी गालियाँ। सबके हाथ में चाक़ू, तलवार, फरसे, पिस्टल। सबके चेहरों पर नृशंसता… सब तरफ़नफ़रत की आग जिसमें प्यार लकड़ी की तरह जल रहा है… सब तरफ़ धर्म का शोर है पर धर्म कहीं नहीं… मौत का जश्न मनाते वीभत्स चेहरे… और… और…”

“इतना भयानक भविष्य अगर तुम देख रही हो तो फिर यह प्रार्थना किसके लिए?”

“इस नृशंसता के बावजूद मुझे यक़ीन है कि कुछ लोग इन्सानियत को बचाने में जुटे रहेंगे। मैं चाहती हूँ कि सूर्य, पृथ्वी, जल और वायु देवता कभी कुपित न हों। ये हमेशा ऐसेलोगों के साथ बने रहें। बस यही प्रार्थना मैं रोज़ इन देवताओं से करती हूं।”

“मैं तुम्हारी प्रार्थनाओं में इन देवताओं की सलामती की दुआ शामिल करता हूँ। वर्तमान जिनके नियंत्रण में है, वे इन्सान और इन्सानियत के ही नहीं, देवताओं के भी शत्रु हैं।”

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क –  406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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