श्री हरभगवान चावला

(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरभगवान चावला जी की अब तक पांच कविता संग्रह प्रकाशित। कई स्तरीय पत्र पत्रिकाओं  में रचनाएँ प्रकाशित। कथादेश द्वारा  लघुकथा एवं कहानी के लिए पुरस्कृत । हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति सम्मान। प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के पश्चात स्वतंत्र लेखन।) 

आज प्रस्तुत है आपकी एक विचारणीय लघुकथा – बुत का दर्द )

☆ लघुकथा – बुत का दर्द ☆ श्री हरभगवान चावला ☆

बुत बना। बुत का कोई अंग टूटा। हिंसा हुई। ख़ूब ख़ून बहा। ख़ून देख बुत बहुत रोया, पर उसका रोना किसी ने नहीं देखा। उसका टूटा अंग जोड़ा गया। कुछ लोग आए। बुत के सामने हाथ जोड़े, बुत के चरणों में सिर झुकाया और मुस्कुराए। उनकी मक्कार मुस्कान देख बुत का ख़ून खौल उठा। उसने चाहा इन सबका सिर तोड़ दे, पर वह इन्सान नहीं बुत था; मर्यादा नहीं लाँघ सकता था।

अब वह पुलिस के जवानों की क़ैद में था।

वह चिल्लाता, “मुझे इस क़ैद से रिहा करो। मुझे यहाँ से हटाओ।” पर उसका चिल्लाना किसी ने नहीं सुना। लोग अब एक नए बुत की तैयारी में लगे थे।

©  हरभगवान चावला

सम्पर्क – 406, सेक्टर-20, हुडा,  सिरसा- 125055 (हरियाणा) फोन : 9354545440

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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