☆ पुस्तक चर्चा ☆ “काव्य रंग निशा के संग (काव्य-संग्रह)” – डॉ निशा अग्रवाल ☆

काव्य रंग निशा के संग (काव्य-संग्रह)

लेखिका : डॉ निशा अग्रवाल

प्रकाशक : SGSH Publication

पृष्ठ – 81 

मूल्य – रु 149/-

अमेज़न लिंक  >> काव्य रंग निशा के संग

 

“अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं, खो दो तो एक कहानी हूँ मैं” – सुश्री मंजु शर्मा, कैलीफोर्निया

आवरण ही मनमोहक-कमलपुष्प विविध रंगों की आभा बिखेरता हुआ, निशा जी की कर्म के प्रति निर्लिप्तता,निष्कामता प्रतिपादित करता हुआ।

उनकी कविताओं में गहन भावों की निर्झरिणी प्रवाहित होती है जिसमें अवगाहन कर रसानुभूति प्राप्त होती है। डॉ निशा, नारी सशक्तिकरण का सटीक उदाहरण हैं, इस दिशा में किए गए उनके प्रयत्न प्रशंसनीय हैं। कविताओं में भी नारी की व्यथा उभारती हैं। स्वयं शिक्षिका होते हुए गौरवान्वित अनुभव करते हुए ”निःस्वार्थ भाव से शिक्षा देकर, राहों की रहबर बन जाऊँ” क्या ख़ूब अभिलाषा प्रकट की है। हौसले इतने बुलंद कि मस्त गगन में उड़, चाँद को छूना चाहती हैं। ”अगर रख सको तो एक निशानी हूँ मैं, खो दो तो एक कहानी हूँ मैं” कविता मन क़ो छू गयी। विविध विषयों पर कलमबद्ध कविताएँ और समसामयिक लेख, पाठकों में नवीन ऊर्जा भर चिंतन मनन के लिए प्रेरित करेंगे। 

– सुश्री मंजु शर्मा, कैलीफोर्निया

श्रीमती सुनीता शर्मा, डायरेक्टर, स्वामी विवेकानंद टी टी कॉलेज (जयपुर) को ‘काव्य रंग निशा के संग’ भेंट की। चिरअभिलिप्सित और चिरप्रतीक्षित स्वप्न साकार हुआ। वर्षों से सजे स्वप्न और अपने अंतर्मन की अभिव्यक्ति को काव्य रंग में समेटा है। दिल के एहसासों को शब्दों की माला में पिरोकर कागज़ पर उकेरा है। अहसास के पन्नों से बने पुलिंदे को काव्य रंग में भिगो कर आज आप सभी के लिए लेकर आई हूँ।

मेरे सभी सम्मानित एवं प्रिय साथियों, वरिष्ठ साहित्यकारों , शिक्षाविदों , एवं परिवारजनों  का हार्दिक आभार , जिनके आशीर्वचनों एवं स्नेहिल सहयोग से आज काव्य रंग को मूर्त रूप मिला हैl

डॉ निशा अग्रवाल

“ए जिंदगी जरा आहिस्ता चल..” – ‘राव’ शिवराज पाल सिंह

एक कलमकार अपने आसपास घटित हो रहे घटनाक्रम से प्रभावित होता  ही है, यही बात कवयित्री निशा की कविता “कोरोना का भय” से प्रमाणित होती है। इस कविता में उन्होंने उस भयावह काल की तस्वीर उतार कर रख दी है। दूसरी कविता धन मद में उन्मत्त हुए मानव के उथले चरित्र को बखूबी दर्शाती है। एक अन्य कविता में कवियत्री का अपनी माटी अपनी भाषा से जुड़ाव दिखता है, जो उनके स्वयं की अवधारणाओं के बारे में पाठक को बताता है।

“ए जिंदगी जरा आहिस्ता चल..”  कविता हमें एक ऐसे धरातल पर ले जाती है जहां जीवन का सार तत्व भी है, तो जीवन को व्यर्थ कैसे नही जाने दिया जाए और उसका अधिकतम उपयोग के बारे में परोक्ष रूप से परामर्श भी देती है।

कवयित्री निशा की कलम सशक्त है और सभी तरह की रचनाओं को रचने में सक्षम भी है। मैं निशा अग्रवाल जी को अंत:स्तल से अशेष शुभकामनाएं और बधाइयां।   

 – ‘राव’ शिवराज पाल सिंह

वरिष्ठ साहित्यकार, कॉलम राइटर,  सह-संयोजक INTACH करौली चैप्टर, एक्जीक्यूटिव समिति सदस्य अरावली राजस्थान, राजपूताना इतिहास, धर्म और संस्कृति अध्येता, पक्षी विशेषज्ञ एवम फोटोग्राफर। इनायती, करौली/ जयपुर, राजस्थान

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Dr Nisha Agrawal

Thanks a lot Sir