श्री अरुण श्रीवास्तव

(श्री अरुण श्रीवास्तव जी भारतीय स्टेट बैंक से वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। बैंक की सेवाओं में अक्सर हमें सार्वजनिक एवं कार्यालयीन जीवन में कई लोगों से  मिलना  जुलना होता है। ऐसे में कोई संवेदनशील साहित्यकार ही उन चरित्रों को लेखनी से साकार कर सकता है। श्री अरुण श्रीवास्तव जी ने संभवतः अपने जीवन में ऐसे कई चरित्रों में से कुछ पात्र अपनी साहित्यिक रचनाओं में चुने होंगे। उन्होंने ऐसे ही कुछ पात्रों के इर्द गिर्द अपनी कथाओं का ताना बाना बुना है। आज से प्रस्तुत है आपके कांकेर पदस्थापना के दौरान प्राप्त अनुभवों एवं परिकल्पना  में उपजे पात्र पर आधारित श्रृंखला “आत्मलोचन “।)   

☆ कथा कहानी # 31 – आत्मलोचन– भाग – 1 ☆ श्री अरुण श्रीवास्तव 

आत्मलोचन ने अंबानी – अदानी परिवार में मुँह में सोने का चम्मच दबाये हुये जन्म नहीं लिया था, बल्कि एक अत्यंत साधारण परिवार में जन्मजात कवच कुंडल जड़ित गरीबी के साथ धरती पर अवतरित हुये थे. बड़ी मुश्किल से मां बाप ने संतान का मुख देखा था तो इस दुर्लभ संतान का उपहार पाकर ईश्वर का वो सिर्फ आभार ही प्रगट कर सकते थे.

आत्मलोचन शिक्षा के प्रारंभिक काल से ही मेधावी छात्र निकले और उनके मुँह में सोने का चम्मच तो नहीं था पर इरादों में TMT के सरिया जैसी मजबूती जरूर थी. पता नहीं कब, पर बहुत जल्द उनको ये समझ आ गया था कि इस गरीबी को इस तरह से उतार फेंकना है कि उनके जीवन भर फिर कभी गरीबी से सामना करने की नौबत न आये. और इसका सिर्फ एक ही रास्ता था कि पूरा ध्यान पढ़ाई पर केंद्रित करके सबसे बेहतर परिणाम हासिल किये जायें.

 ऐसा हुआ भी, धीरे धीरे उनकी निष्ठा, श्रम और इंटेलीजेंस से वो सारे इम्तिहान नंबर वन की पोजीशन से पास करते गये पर ये सफलता सिर्फ एकेडमिक थी. उनका स्वभाव दिन-ब-दिन कठोर और निर्मोही होता गया और निरंतर बढ़ते मेडल और पुरस्कार उनके मित्रों की संख्या भी कम करते गये. शायद उन्हें इनकी जरूरत भी महसूस नहीं हुई क्योंकि ये सब भी परिवार की आनुवांशिक गरीबी के शिकार थे और आत्मलोचन अपने जीवन से न केवल गरीबी हटाना चाहते थे, बल्कि वो सारे लोग वो सारी यादें भी, जो उन्हें गरीबी की याद दिलाती हों, हमेशा के लिये त्यागना चाहते थे. इतना ही नहीं बल्कि गरीबरथ पर यात्रा करने या गरीबी रेखा से संबंधित चैप्टर उनकी किताबों से और जेहन से गायब थे.

फिल्म एक फूल दो माली के “गीत गरीबों की सुनो वो तुम्हारी सुनेगा” पर उनका बिल्कुल भी विश्वास नहीं था और वो उसे अनसुना करने का पूरा प्रयास करते थे. गरीबी को मात देने की ये लड़ाई उन्होंने अपने TMT सरिया जैसे मज़बूत इरादों से आखिर जीत ही ली जब उन्होंने देश की सबसे कठिन, सबसे ज्यादा स्पर्धा वाली UPSC की परीक्षा भी प्राइम प्लेसमेंट के साथ क्लियर की और प्रशिक्षण के लिये लालबहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन मसूरी प्रस्थान किया.

गरीबी की आखिरी निशानी उनके शिक्षक मां-बाप थे जो उनके सपनों की उड़ान के सहभागी थे और फ्लाइट के टेकऑफ करने का इंतज़ार कर रहे थे. सामान्यतः IAS होने से बेहतर और प्रतिष्ठित सफलता का मापदंड भारतीय समाज़ में आज भी दूसरा नहीं है. तो अतीत की गरीबी के जन्मजात कवच कुंडल को अपनी काया और अपने मन मस्तिष्क से पूरी तरह त्यागकर “आत्मलोचन” ने अपने सुनहरे भविष्य की ओर अपने मज़बूत इरादों के साथ उड़ान भरी.

क्रमशः…

© अरुण श्रीवास्तव

संपर्क – 301,अमृत अपार्टमेंट, नर्मदा रोड जबलपुर

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments