डॉ.  मुक्ता

(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं  माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं।  साप्ताहिक स्तम्भ  “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक  साहित्य” के माध्यम से आप  प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी का आलेख “खामोशी और आबरू”.  डॉ मुक्ता जी का यह विचारोत्तेजक एवं प्रेरक लेख हमें  जीवन के कठिन से कठिन समय  में विपरीत परिस्थितियों में भी सम्मानपूर्वक जीने का लक्ष्य निर्धारित करने हेतु प्रेरणा देता है। इस आलेख का कथन “जीवन में हम कभी हारते नहीं, जीतते या सीखते हैं अर्थात् सफलता हमें विजय देती है और पराजय अनुभव अथवा बहुत बड़ी सीख… जो हमें गलत दिशा की ओर बढ़ने से रोकती है। ” ही इस आलेख का सार है। डॉ मुक्त जी की कलम को सादर नमन।  कृपया इसे गंभीरता से आत्मसात करें एवं अपने विचार कमेंट बॉक्स में अवश्य  दर्ज करें )    

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 32☆

☆ समस्या नहीं : संभावना 

‘जीवन में संभावनाएं देखिए, समस्याएं नहीं। सपने देखिए, रास्ता स्वयं मिल जाएगा’— अनुकरणीय उक्ति है। आप समस्या, उससे उपजी परेशानियों व  चिंताओं को अपने जीवन से बाहर निकाल फेंकिए, आपको मंज़िल तक पहुंचने का सीधा-सादा विशिष्ट मार्ग मिल जाएगा। आप संभावनाएं तलाशिए अर्थात् यदि मैं ऐसा करूं, तो इसका परिणाम उत्तम होगा, श्रेष्ठ होगा और झोंक दीजिए… स्वयं को उस कार्य में… अपनी सारी शक्ति अर्थात् तन, मन, धन उस कार्य को संपन्न करने में लगा दीजिए… और पथ में आने वाली बाधाओं-आपदाओं का चिंतन करना छोड़ दीजिए। सपने देखिए…रास्ता भी मिलेगा और मंज़िल भी बाहें फैलाए आपका स्वागत-अभिनंदन करेगी। हां! सपने सदैव उच्च, उत्तम व श्रेष्ठ देखिए …बंद आंखों से नहीं, खुली आंखों से देखिए…जैसा अब्दुल कलाम जी कहते हैं। आप पूर्ण मनोयोग से उन्हें साकार करने में लग जाइए…पथ की बाधाएं- आपदाएं स्वत: अपना रास्ता बदल लेंगी।

‘ए ऑटो विन विस्मार्क’ का यह वाक्य भी किसी संजीवनी से कम नहीं है कि ‘ समझदार इंसान दूसरों की गलती से सीखता है। मूर्ख इंसान गलती करके सीखता है।’ सो! बन जाइए बुद्धिमान और समझदार …दूसरों की गलती से सीखिए, खुद संकट में छलांग न लगाइये… जलती आग को छूने का प्रयास मत कीजिए ताकि आपके हाथ सुरक्षित रह सकें। इससे सिद्ध होता है कि दूसरों के अनुभव का आकलन कीजिए… उन्हें आज़माइये मत …और बिना सोचे-समझे कार्य-व्यवहार में मत लगाइए। बड़े बड़े दार्शनिक अपने अनुभवों को, दूसरों के साथ सांझा कर उन्हें गलतियां करने से बचाते हैं और कुसंगति से बचने का प्रयास करते हैं।

जो लोग ज़िम्मेवार, सरल, ईमानदार व मेहनती होते हैं, उन्हें ईश्वर द्वारा विशेष सम्मान मिलता है, क्योंकि वे धरती पर उसकी श्रेष्ठ रचना होते हैं। अब्दुल कलाम जी की यह उक्ति उपरोक्त भाव को पुष्ट करती है। ऐसे लोगों का अनुकरण कीजिए…उन द्वारा दर्शाये गये मार्ग पर चलने का प्रयास कीजिए, क्योंकि सरल स्वभाव के व्यक्ति ईमानदारी व परिश्रम को जीवन में धारण कर सबका मार्ग-दर्शन करते हैं,  उन सभी महापुरुषों के जीवन का उद्देश्य आमजन को दु:खों-संकटों व आपदाओं  से बचाना होता है। कबीर, नानक, तुलसी व कलाम सरीखे महापुरूषों के जीवन का विकास व आत्मोन्नति कीचड़ में कमलवत् था। इसलिए आज भी उनके उपदेश समसाययिक हैं और एक लंबे अंतराल के पश्चात् भी सार्थक व अनुकरणीय रहेंगे।

वे संत पुरुष सबके हित व कल्याण की कामना करते हैं तथा सबके साथ रहने का संदेश देते हैं। संत बसवेश्वर अपने घुमंतू स्वभाव के कारण गांव-गांव का भ्रमण कर रहे थे तथा वे एक सेठ के निमंत्रण पर उसके घर गए… जहां उनकी खूब आवभगत हुई। थोड़ी देर में उनसे मिलने कुछ लोग आए और उन्होंने उन लोगों को यह कह कर लौटा दिया कि ‘मैं अभी अतिथि के साथ व्यस्त हूं।’ इसके पश्चात् वे भीतर चले आये और संत से कल्याण के मार्ग के बारे में पूछने लगे। ‘जो व्यक्ति द्वार पर आये अतिथि से कटु व्यवहार करता है, उन्हें भीषण गर्मी में लौटा देता है… उसका कल्याण किस प्रकार संभव है? यह सुनते ही सेठ समझ गया कि व्यर्थ दिखावे व  पूजा-पाठ से अच्छा है,  हम सदाचार व परोपकार को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। शायद! इसीलिए वे धरती पर प्रभु की सर्वश्रेष्ठ रचना कहलाते हैं तथा लोगों को यह भी समझाते हैं कि कुदरत ने तो आनंद ही आनंद दिया है और दु:ख मानव की खोज है। हर वस्तु के दो पक्ष होते हैं। परंतु फूल व कांटे तो सदैव साथ रहते हैं। यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस का चुनाव करते हैं? हम घास पर बिखरी ओस की बूंदों को मोतियों के रूप में देख उल्लसित -आनंदित हो सकते हैं या प्रकृति द्वारा बहाये गये आंसुओं के रूप में देख व्यथित हो सकते हैं।

उसी प्रकार कांटों से घिरे गुलाब को देख, उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो सकते हैं तथा कांटों को देख, उसकी नियति पर आंसू भी बहा सकते हैं। इसी प्रकार सुख-दु:ख का चोली दामन का साथ है… दोनों इकट्ठे कभी नहीं आते। एक के विदा होने के पश्चात् ही दूसरा दस्तक देता है, परंतु यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम सुखों को स्थायी समझ, उसके न रहने पर आंसू बहते हैं… अपने भाग्य को कोसते हैं तथा अपने जीवन को दूभर व नरक बना लेते हैं। उस स्थिति में हम भूल जाते हैं कि सुख तो बिजली की कौंध की भांति हमारे जीवन में प्रवेश करता है-और हम भ्रमित होकर अपने वर्तमान को दु:खी बना लेते हैं। सुख- दु:ख दोनों मेहमान हैं और आते-जाते रहते हैं। इसलिए सुख का लालच व दु:ख का भय हमें सदैव कष्टों व आपदाओं में रखता है और हम चाह कर भी उस व्यूह से मुक्ति नहीं पा सकते।

सो! दोस्ती व प्रेम उसी के साथ रखिए, जो तुम्हारी हंसी व गुस्से के पीछे का दर्द अनुभव कर सके मौन की वजह तक पहुंच सके। अर्थात् सच्चा दोस्त वही है, जो आपका गुरू भी है… सही रास्ता दिखलाता है और विपत्ति में सीना ताने आपके साथ खड़ा होता है। सुख में वह आपको भ्रमित नहीं होने देता तथा विपत्ति में गुरु की भांति आपको संकट से उबारता है। वह उस कारण को जानने का प्रयास करता है कि आप  दु:खी क्यों हैं? आपकी हंसी कहीं बनावटी व  दिखावे की तो नहीं है? आपकी चुप्पी तथा मौन का रहस्य क्या है? कौन-सा ज़ख्म आपको नासूर बन साल रहा है? उसके पास सुरक्षित रहता है… आपके जीवन के हर पल का लेखा-जोखा। सो! ऐसे लोगों से संबंध रखिए और उन पर अटूट विश्वास रखिए, भले ही संबंध बहुत गहरे ही न हों? इसके साथ ही वे ऐसे मुखौटाधारी लोगों से भी सचेत रहने का संदेश देते हैं, जो अपने बनकर, अपनों को छलते हैं। इसलिए उनसे सजग व सावधान रहिए, क्योंकि चक्रव्यूह रचने वाले व पीठ में छुरा घोंकने वाले सदैव अपने ही होते हैं। यह तथ्य कल भी सत्य था, आज भी सत्य है और कल भी रहेगा। इसलिए मन की बात बिना सोचे-समझे, कभी भी दूसरों से सांझा न करें, क्योंकि कुछ लोग बहुत उथले होते हैं। इसलिये वे बात की गंभीरता को अनुभव किए बिना, उसे आमजन के बीच प्रेषित कर देते हैं, जिससे आप ही नहीं, वे स्वयं भी जग-हंसाईं का पात्र बनते हैं। सो! सावधान रहिये, ऐसे मित्रों और संबंधियों से.. जो आपकी प्रशंसा कर, आपके मनोबल को गिराते हैं तथा आपको निष्क्रिय बना कर, अपना स्वार्थ साधते हैं। ऐसे ईर्ष्यालु आपको उन्नति करते देख, दु:खी होते हैं तथा आपके कदमों के नीचे से सीढ़ी खींच सुक़ून पाते हैं। तो चलिए इसी संदर्भ में जिह्वा का ज़िक्र भी कर लें, जो दांतों के घेरे में रहती है…अपनी सीमा व मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करती। इसलिए वह भीतरी षड्यंत्र व बाहरी आघात से सुरक्षित रहती है… जबकि उसमें विष व अमृत दोनों तत्व निवास करते हैं… प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं, बल्कि साथी व सहयोगी के रूप में और मानव उनसे मनचाहा संबंध बनाने व प्रयोग करने में स्वतंत्र है। इसी प्रकार वह कटु वचन बोलकर दोस्त को दुश्मन बना सकता है और शत्रु को को पल भर में अपना साथी-सहयोगी, मित्र व विश्वासपात्र।

हमारी वाणी में अलौकिक शक्ति है… यह प्रयोगकर्ता  पर निर्भर करता है कि वह शर-संधान अर्थात् कटु वचन रूपी बाण चला कर हृदय को आहत करता है या मधुर वाणी से, उसके अंतर्मन में प्रवेश पाकर व  उसे आकर्षित कर अपना पक्षधर बना लेता है। इसलिये स्वयं को पढ़ने की आदत बनाइए, क्योंकि कुदरत को पढ़ना अत्यंत दुष्कर कार्य है। दुनिया बहुत बड़ी है, इसलिए सब कुछ समझना व सब की आकांक्षाओं पर खरा उतरना मानव के वश में नहीं है। सो! दूसरों से अपेक्षा मत कीजिए। अपने अंतर्मन में झांकिये व आत्मावलोकन कीजिये जो समस्याओं के निदान का सर्वश्रेष्ठ उपाय है। जब आप अपने दोषों व अवगुणों से अवगत हो जाते हैं तो आप सब के प्रिय बन जाते हैं। इस स्थिति में कोई भी आपका शत्रु नहीं हो सकता। आप अनहद नाद की मस्ती में डूब, अलौकिक आनंद में अवगाहन कर सकते हैं… यही जीते जी मुक्ति है, कैवल्य है।

सो! हर समस्या के दो पहलुओं के अतिरिक्त, तीसरे विकल्प की ओर भी दृष्टिपात कीजिए… जीवन उत्सव बन जाएगा और कोई भी आपके जीवन में अंर्तमन में खलल नहीं डाल पाएगा। इसलिए जीवन में संभावनाओं की तलाश कीजिये और निरंतर अपनी राह पर बढ़ते जाइए… स्वर्णिम भोर पलक पांवड़े बिछाए आपकी प्रतीक्षा कर रही होगी। जीवन में हम कभी हारते नहीं, जीतते या सीखते हैं अर्थात् सफलता हमें विजय देती है और पराजय अनुभव अथवा बहुत बड़ी सीख… जो हमें गलत दिशा की ओर बढ़ने से रोकती है। तो आइए! जीवन में सम स्थिति में रहना सीखें…जीवन में सामंजस्यता का प्रवेश होगा और समरसता स्वत: आ जायेगी, जो आपको अलौकिक आनंद प्रदान करेगी क्योंकि संभव और असंभव के बीच की दूरी, व्यक्ति की सोच और कर्म पर निर्भर करती है।

 

© डा. मुक्ता

माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।

पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी,  #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com

मो• न•…8588801878

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