श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं।  आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं  में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “ ख़ास चर्चा ”। इस सार्थक रचना के लिए  श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।

आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 33 – ख़ास चर्चा ☆

पत्र सदैव से ही आकर्षण का विषय बने रहे हैं। कोई भी इनकी उपयोगिता को, नकार नहीं सकता है। प्रमाण पत्र, परिपत्र, प्रशस्ति पत्र, सम्मान पत्र, अभिनंदन पत्र, परिचय पत्र, प्रेमपत्र, अधिपत्र, इन सबमें प्रशस्ति पत्र, वो भी डिजिटल ; बाजी मारता हुआ नजर आ रहा है। किसी भी कार्य के लिए, जब तक दो तीन सम्मान पत्र न मिल जाएँ, चैन ही नहीं आता। इसके लिए हर डिजिटल ग्रुप में दौड़ -भाग करते हुए, लोग इसे एकत्र करने के लिए जुनून की हद से गुजर रहे हैं। विजेता बनने की भूख सुरसा के मुख की तरह बढ़ती ही जा रही है।

लगभग रोज ही कोई न कोई उत्सव और एक दूसरे को सम्मानित करने की होड़ में, कोरोना काल सहायक सिद्ध हो रहा है। आजकल अधिकांश लोग घर,परिवार व मोबाइल इनमें ही अपनी दुनिया देख रहे हैं। कर्मयोगी लोग बुद्धियोग का प्रयोग कर धड़ाधड़ कोई न कोई कविता,कहानी, उपन्यास, व्यंग्य, आलेख या कुछ नहीं तो संस्मरण ही लिखे जा रहे हैं।  वो कहते हैं न, कि एक कदम पूरी ताकत से बढ़ाओ तो सही,  बहुत से मददगार हाजिर हो जायेंगे। वैसा ही इस समय देखने को मिल रहा है। गूगल मीट, वेब मीट, जूम और ऐसे ही न जाने कितने एप हैं, जो मीटिंग को सहज व सरल बना कर; वैचारिक दूरी को कम कर रहे हैं।

अरे भई चर्चा तो सम्मान पत्र को लेकर चल रही है, तो ये मीटिंग कहा से आ धमकी। खैर कोई बात नहीं, इस सबके बाद भी तो  सम्मान पत्र मिलता ही है। वैसे समय पास करने का अच्छा साधन है, ये मीडिया और डिजिटल दोनों का मिला जुला रूप।

जब भी मन इस सब से विरक्त होने लगता है, फेसबुक  प्रायोजित पोस्ट पुनः जुड़ने के लिए बाध्य कर देती है। और व्यक्ति फिर से इसे लाइक कर चल पड़ता है, इसी राह पर। यहाँ पर सबसे अधिक रास्ता, मोटिवेशनल वीडियो रोकते हैं। इन्हें देखते ही खोया हुआ आत्मविश्वास जाग्रत हो जाता है। और पुनः और सम्मान पत्र पाने की चाहत बलवती हो जाती है। अपने चित्त को एकाग्र कर, गूगल बाबा की मदद से, सीखते-सिखाते हुए हम लोग पुनः अभिनंदन करने व कराने की जुगत, बैठाने लगते हैं।

खैर कुछ न करने से, तो बेहतर है, कुछ करना, जिससे अच्छे कार्यों में मन लगा रहता है। इस पत्र की लालसा में ही सही, हम सम्मान करना और करवाना दोनों ही नहीं भूलते हैं। जिससे वातावरण व पारस्परिक आचार- व्यवहार में सौहार्दयता बनी रहती है।

 

© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’

माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020

मो. 7024285788, [email protected]

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments