श्रीमद् भगवत गीता
हिंदी पद्यानुवाद – प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
एकादश अध्याय
( विश्वरूप के दर्शन हेतु अर्जुन की प्रार्थना )
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो ।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयात्मानमव्ययम् ।। 4।।
अगर समझते शक्य है देख सकूं वह रूप
तो योगेश्वर दिखायें , मुझको आत्म स्वरूप। ।। 4।।
भावार्थ : हे प्रभो! (उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय तथा अन्तर्यामी रूप से शासन करने वाला होने से भगवान का नाम ‘प्रभु’ है) यदि मेरे द्वारा आपका वह रूप देखा जाना शक्य है- ऐसा आप मानते हैं, तो हे योगेश्वर! उस अविनाशी स्वरूप का मुझे दर्शन कराइए।। 4।।
If Thou, O Lord, thinkest it possible for me to see it, do Thou, then, O Lord of the Yogis, show me Thy imperishable Self!।। 4।।
प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’
ए १ ,विद्युत मण्डल कालोनी, रामपुर, जबलपुर