डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “मुस्कुराना”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 12 ☆ 

☆ मुस्कुराना  ☆

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

ना सोचना किसने दिल दुखाया, सबको माफ कर देना।

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

हर बाग में फूल और कांटे भी हैं, फूल चुन लेना।

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

रास्ते आड़े तिरछे और सीधे भी हैं, सीधे चुन लेना।

 

प्यार  में  तकरार में, प्यार को चुन लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना,

दोस्त अच्छे और बुरे भी हैं, हर सफर में अच्छे चुन लेना।

 

जब कालिमा और रोशनी राह में मिल जाएगी, रोशनी चुन लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

मैं रूठूँ, बात पे अड़ जाऊँ, तुम मना लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

मैं चुप हूँ और गम में डूब जाऊँ, तुम चुप्पी तोड़ देना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

बात छोटी हो और दिल पे लगा जाऊँ, तुम हाथ बढ़ा लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

जब दरार खाई बन जाये, तो तुम खाई भर देना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

ज़िंदगी यूँ ही कट जाएगी, जब मूँद लू आँखें तो यादों में समेत लेना,

जरा सा मुस्कुरा देना, हर गम को भुला देना।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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