श्री प्रहलाद नारायण माथुर

( श्री प्रह्लाद नारायण माथुर जी  अजमेर राजस्थान के निवासी हैं तथा ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से उप प्रबंधक पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। आपकी दो पुस्तकें  सफर रिश्तों का तथा  मृग तृष्णा  काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुकी हैं तथा दो पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा  जिसे आप प्रति बुधवार आत्मसात कर सकेंगे। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता कहो तो चले अब. 

 

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☆ साप्ताहिक स्तम्भ – मृग तृष्णा # 8 – कहो तो चले अब

 

उम्र अब मुझे झझकोरने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

दबे पांव बीमारी संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझे कहलाने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

शरीर पर पड़ती झुर्रियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब||

 

उम्र अब मुझे अहसास कराने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,

बैसाखियों के संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझसे रूठने लगी है, सामने तो कुछ नहीं कहती,

दिल मधुमेह जैसी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र अब मुझ पर शिकंजा कसने लगी है, सामने तो कुछ नही कहती,

रोज नयी-नयी बिमारियों संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र जन्म से सांस संग जिस्म में घुसी थी, सामने तो कुछ नही कहती,

रोज अटकती साँस संग कहलाती है, कहो तो चले अब ||

 

उम्र के उतार पर आकर थक गया, सामने तो अब कुछ नही कहती,

हालात से परेशां अब मैं खुद उम्र से कहता हूँ, तैयार हूँ कहो तो चले अब ||

 

©  प्रह्लाद नारायण माथुर 

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