डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 58 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

रोटी

तरसें रोटी के लिए,

दीनहीन  लाचार।

रोटी उनकी जिंदगी,

तन-मन मूलाधार।।

 

अनुवाद

संबंधों का कीजिए,

मधुर सरस अनुवाद।

जीवन जीना प्रेम से,

होगा नहीं विवाद।।

 

उल्लास

दृष्टि-दृष्टि को देखकर,

जाग उठा उल्लास।

मोह लिया मन आपने,

जगी प्रेम की आस।।

 

दर्पण

दर्पण में छवि देखकर,

आई मुझको लाज।

सीरत को पहचानकर,

बजे हृदय के साज।।

 

घाव

भूले से  देना नहीं,

इतने गहरे घाव।

सहन न कर पाएँ कभी,

जिनके दुखद प्रभाव।।

 

पंछी

पंछी की पीड़ा हमें,

करती है बेचैन।

बिना नीड़ के हो गया,

जिसका कलरव चैन।।

 

पहाड़

सुंदरता है प्रकृति की,

नदियाँ  पेड़ पहाड़।

फिल्मों की शोभा बढ़ी,

लेकर इनकी आड़।।

 

प्यास

जल बिन जीवन व्यर्थ है,

सूखी नदिया मौन।

सावन अंगारा लगे,

प्यास बुझाए कौन।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
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