श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ बची रहेगी कविता ☆
पाठकों …अपितु
समर्थकों का प्रशंसागान,
जब आत्ममोह को
घेर लेगी आत्मग्लानि,
आकाश में
उदय हो रहे होंगे
नये नक्षत्र और तारे,
यह तुम्हारा
अवसानकाल होगा,
शुक्लपक्ष का आदि
कृष्णपक्ष की इति
तक आ पहुँचा होगा,
सोचोगे कि अब
कुछ नहीं बचा
लेकिन तब भी
बची रहेगी कविता,
कविता नित्य है,
शेष सब अनित्य,
कविता शाश्वत है,
शेष सब नश्वर,
अत: गुनो, रचो,
और जियो कविता!
© संजय भारद्वाज
प्रात: 8:21 बजे, 2 नवम्बर 2020
मोबाइल– 9890122603
सच ही है अवसान के समय में भी कविता नश्वर और शाश्वत रहेगी।बहुत सुंदर।