श्री अरुण कुमार डनायक

(श्री अरुण कुमार डनायक जी  महात्मा गांधी जी के विचारों केअध्येता हैं. आप का जन्म दमोह जिले के हटा में 15 फरवरी 1958 को हुआ. सागर  विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने के उपरान्त वे भारतीय स्टेट बैंक में 1980 में भर्ती हुए. बैंक की सेवा से सहायक महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृति पश्चात वे  सामाजिक सरोकारों से जुड़ गए और अनेक रचनात्मक गतिविधियों से संलग्न है. गांधी के विचारों के अध्येता श्री अरुण डनायक जी वर्तमान में गांधी दर्शन को जन जन तक पहुँचाने के  लिए कभी नर्मदा यात्रा पर निकल पड़ते हैं तो कभी विद्यालयों में छात्रों के बीच पहुँच जाते है. पर्यटन आपकी एक अभिरुचि है। इस सन्दर्भ में श्री अरुण डनायक जी हमारे  प्रबुद्ध पाठकों से अपनी कुमायूं यात्रा के संस्मरण साझा कर रहे हैं। आज प्रस्तुत है  “कुमायूं -3 – कौसानी”)

☆ यात्रा संस्मरण ☆ कुमायूं -3 – कौसानी ☆

कौसानी में हम भाग्यशाली थे कि सुबह सबेरे हिमालय की पर्वत श्रंखला नंदा देवी के दर्शन हुए, जो कि भारत में कंचन चंघा के बाद दूसरी सबसे ऊँची चोटी है, व कौसानी आने का मुख्य आकर्षण भी ।

कौसानी में उस स्थान पर जाने का अवसर मिला जहाँ जून 1929 में गांधीजी  ठहरे थे। यहाँ वे अपनी थकान मिटाने दो दिन के लिये आये थे पर हिमालय की सुन्दरता से मुग्ध हो वे चौदह दिन तक रुके और इस अवसर का लाभ उन्होने गीता का अनुवाद करने में किया । इस पुस्तिका को उन्होने नाम दिया “अनासक्तियोग”। गान्धीजी को कौसानी की प्राकृतिक सुन्दरता ने मोहित किया और उन्होने इसे भारत के स्विटजरलैन्ड की उपमा दी। गांधीजी जहाँ ठहरे थे वह भवन चायबागान के मालिक का था । कालान्तर में उत्तर प्रदेश गान्धी प्रतिष्ठान ने इसे क्रय कर गान्धीजी की स्मृति में आश्रम बना दिया व नाम दिया अनासक्ति आश्रम । यहाँ एक पुस्तकालय है, गान्धीजी के जीवन पर चित्र प्रदर्शनी है, सभागार है व गान्धी साहित्य व अन्य वस्तुओं का विक्रय केन्द्र । अनासक्ति आश्रम से ही लगा हुआ एक और संस्थान है सरला बहन का आश्रम । इसे गान्धीजी की विदेशी शिष्या मिस कैथरीन हिलमैन ने 1946 के आसपास स्थापित किया था। उनके द्वारा स्थापित कस्तुरबा महिला उत्थान मंडल इस पहाडी क्षेत्र के विकास व महिला सशक्तिकरण में बिना किसी शासकीय मदद के योगदान दे रहा है और पहाड़ी क्षेत्र में कृषि व कुटीर उद्योग के लिए  औजारों का निर्माण कर रहा है  । दोनो पवित्र  स्थानों के भ्रमण से मुझे आत्मिक शान्ति मिली।

कौसानी प्रकृति गोद में बसा छोटा सा कस्बा अपने सूर्योदय-सूर्यास्त, हिमालय दर्शन व सुरम्य चाय बागानो के लिये तो प्रसिद्ध है ही साथ ही वह जन्म स्थली है प्रकृति के सुकुमार कवि , छायावादी काव्य संसार के प्रतिष्ठित ख्यातिलव्य  सृजक सुमित्रानंदन पंत की। पंतजी के निधन के बाद उनकी जन्मस्थली को संग्रहालय का स्वरुप दे दिया गया है। संग्रहालय के कार्यकर्ता ने हमें उनका जन्म स्थल कक्ष दिखाया, उनकी टेबिल कुर्सी दिखाई, पंत जी के वस्त्र और साथ ही वह तख्त और छोटा सा बक्सा भी दिखाया जिसका उपयोग पंतजी करते रहे। पंतजी के द्वारा उपयोग की सामग्री दर्शाती है कि उनका रहनसहन सादगी भरा एक आम मानव सा था। संग्रहालय में बच्चन, दिनकर, महादेवी वर्मा, नरेन्द्र शर्मा आदि कवियों के साथ पंत जी के अनेक छायाचित्र हैं। एक कक्ष में बच्चन जी के पंतजी को लिखे कुछ पत्र व बच्चन परिवार के साथ उनका चित्र प्रदर्शित है। सदी के महानायक का नाम अमिताभ रखने का श्रेय भी पंत जी को है। एक बडे हाल में पंतजी द्वारा लिखी गई पुस्तकें एक आलमारी में सुरक्षित हैं तो कम से कम बीस आलमारियों में उनके द्वारा पढी गई किताबें। दुख की बात यह है की संग्रहालय और  उसके रखरखाव पर  सरकार का ज्यादा ध्यान नहीं है।

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈
image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments