श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – प्रेम ☆
हरेक को हुआ है प्रेम,
किसीने भोगी, व्यक्त न
कर पाने की पीड़ा,
कोई अभिव्यक्त होने की
वेदना भोगता रहा,
किसीका प्रेम होने से पहले
झोंके के संग बह गया,
किसीका प्रेम खिलने से
पहले मुरझा गया,
किसीका अधखिला रहा,
किसीका खिलकर भी
खिलखिलाने से
आजीवन वंचित रहा,
प्रेम का अनुभव
किसीके लिये मादक रहा,
प्रेम का अनुभव
किसीके लिये दाहक रहा,
जो भी हो पर
प्रेम सबको हुआ..,
प्रेम नित्य, प्रेम सत्य है,
प्रेम कल्पनातीत, प्रेम तथ्य है,
पंचतत्व होते हैं, देह का सार,
प्रेम होता है पंचतत्वों का सार!
© संजय भारद्वाज
(11:07, 3.2.2021)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
प्रेम जीवन का सारतत्व है।
धन्यवाद आदरणीय।
प्रेम की अतुलनीय परिभाषाएँ – प्रेम की धुरी पर चलता है जीवन- जगत – है पंचतत्वों का सार प्रेम …….. अभिवादन रचनाकार
धन्यवाद आदरणीय।
सजीव सृष्टि का शाश्वत तत्व और सत्य है प्रेम।