श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – शून्य ☆
शून्य अवगाहित
करती सृष्टि,
शून्य उकेरने की
टिटिहरी कृति,
शून्य के सम्मुख
हाँफती सीमाएँ,
अगाध शून्य की
अशेष गाथाएँ,
साधो…!
अथाह का
कुछ पता चला
या थाह में
फिर शून्य ही
हाथ लगा?
© संजय भारद्वाज
(18.7.18, रात्रि 9.06)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
शून्य से संबंधित अनेक गाथाएँ हैं । मानस पटल पर अंकित है कि शून्य का प्रतीक चिह्न हिंद की देन है। (zero ) विचारोत्तेजक विषय के लिए अभिवादन …..
शून्य असीम है, विराट है, शून्य अगाध है।अथाह की थाह पाना शून्य की थाह पाने जैसा ही दुर्लभ है।