डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

(डॉ विजय तिवारी ‘ किसलय’ जी संस्कारधानी जबलपुर में साहित्य की बहुआयामी विधाओं में सृजनरत हैं । आपकी छंदबद्ध कवितायें, गजलें, नवगीत, छंदमुक्त कवितायें, क्षणिकाएँ, दोहे, कहानियाँ, लघुकथाएँ, समीक्षायें, आलेख, संस्कृति, कला, पर्यटन, इतिहास विषयक सृजन सामग्री यत्र-तत्र प्रकाशित/प्रसारित होती रहती है। आप साहित्य की लगभग सभी विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी सर्वप्रिय विधा काव्य लेखन है। आप कई विशिष्ट पुरस्कारों /अलंकरणों से पुरस्कृत /अलंकृत हैं।  आप सर्वोत्कृट साहित्यकार ही नहीं अपितु निःस्वार्थ समाजसेवी भी हैं।आप प्रति शुक्रवार साहित्यिक स्तम्भ – किसलय की कलम से आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका ऐतहासिक, ज्ञानवर्धक एवं रोचक आलेख  “भारत का प्रमुख ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण नगर ‘जबलपुर’”.)

☆ किसलय की कलम से # 40 ☆

☆ भारत का प्रमुख ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण नगर ‘जबलपुर’ ☆

मध्य प्रदेश में स्थित जबलपुर विशाल भारत के प्रमुख ऐतिहासिक एवं महत्वपूर्ण नगरों में से एक है। आचार्य विनोबा भावे द्वारा ‘संस्कारधानी‘ नाम से विभूषित जबलपुर शब्द की उत्पत्ति के संबंध में इसको जाउलीपत्तन का अपभ्रंश माना जा सकता है जो कि कल्चुरी नरेश जयसिंह के ताम्रलेख के अनुसार एक मण्डल था। जाबालि ऋषि की तपोभूमि होने के कारण इसे जाबालीपुरम् से भी जोड़ा जाता है। जबलपुर एवं इसका निकटवर्ती प्रक्षेत्र ऐतिहासिक, दार्शनिक, राजनैतिक, साहित्यिक एवं सामरिक दृष्टि से अपना विशेष महत्त्व रखता है।

प्राकृतिक सुन्दरता की गोद में बसे जबलपुर की दक्षिण – पश्चिम दिशा में बहती पावन नर्मदा एवं दूर तक दृष्टिगोचर होती पर्वत श्रृंखलाओं के फलस्वरूप इस नगर की सुन्दरता में एक अनोखा सामंजस्य बन गया है। भेड़ाघाट में संगमरमरी चट्टानों की सुरम्य घाटियों के दृश्य देखते हुए लोगों की आँखें आश्चर्य चकित हो जाती हैं। पास ही प्रकृति की अनोखी धरोहर ‘धुआँधार‘ नामक जलप्रपात के रूप में दिखाई देता है।

यहीं पहाड़ी पर बना चौसठ योगिनी का मन्दिर प्राचीन शिल्पकला का अनूठा उदाहरण है। एक चक्र के आकार में 86 से भी अधिक देवी, देवताओं एवं योगिनियों की मूर्तियों में अद्भुत शिल्पकला के दर्शन होते हैं। भेड़ाघाट के समीप ही नर्मदा के  लम्हेटाघाट में पाई जाने वाली चट्टानें विश्व की प्राचीनतम् चट्टानों में गिनी जाती हैं। भूगर्भशास्त्रियों द्वारा इनकी  प्राचीनता लगभग 50 लाख वर्ष बताई गई है जिन्हें विश्व की भूगर्भीय भाषा में लम्हेटाईट नाम से जाना जाता है। जबलपुर की पश्चिम दिशा में भेड़ाघाट रोड पर स्थित वर्तमान तेवर ही कल्चुरियों की राजधानी त्रिपुरी है जो कि शिशुपाल चेदि राज्य का वैभवशाली नगर था। इसी त्रिपुरी के त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध करने के कारण ही भगवान शिव का नाम ‘त्रिपुरारि‘ पड़ा।

गांगेय पुत्र कल्चुरी नरेश कर्णदेव एक प्रतापी शासक हुए, जिन्हें ‘इण्डियन नेपोलियन‘ कहा गया है। उनका साम्राज्य भारत के वृहद क्षेत्र में फैला हुआ था। सम्राट के रूप में दूसरी बार उनका राज्याभिषेक होने पर उनका कल्चुरी संवत प्रारंभ हुआ। कहा जाता है कि शताधिक राजा उनके शासनांतर्गत थे।

कल्चुरियों के पश्चात गौंड़ वंश का इतिहास सामने आता है और गढ़ा-मण्डला की वीरांगना रानी दुर्गावती की वीरता तथा देशभक्ति याद आती है। मुगलों से लड़ते हुए उनके पुत्र वीरनारायण की शहादत एवं अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए स्वयं के प्राणोत्सर्ग की घटना दुर्लभ कही जा सकती है। महारानी दुर्गावती के पूर्व मदनशाह की स्मृति में सुरम्य पहाड़ियों के मध्य बना मदन महल हो अथवा रानी दुर्गावती नाम का रानीताल, दुर्गावती के सेनापति अधार सिंह के नाम से अधारताल, श्वसुर संग्राम शाह के नाम से संग्राम सागर,, चेरी अर्थात दासी की स्मृतियों में बने चेरीताल के रूप में आज भी गौड़ वंश की स्मृतियाँ जीवित हैं। गौंड़ साम्राज्य चार भागों में बँटा हुआ था। उत्तर प्रान्त की राजधानी सिंगौरगढ, दक्षिण-पूर्व की मण्डला, पश्चिम की चौरागढ़ तथा मध्य की गढ़ा राजधानी थी। गढ़ा समस्त साम्राज्य का केन्द्र था।

स्वतंत्रा संग्राम की लड़ाई में भी जबलपुर का सक्रिय योगदान रहा है। भारत में झण्डा आंदोलन का सूत्रपात जबलपुर से ही हुआ था। जबलपुर वासियों की स्वतंत्रता के प्रति सक्रयिता का ही परिणाम था कि सन् 1939 में अखिल भारतीय कांग्रेस का 52 वाँ ‘त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन’ जबलपुर में हुआ था। ज्ञातव्य है कि इस अधिवेशन में महात्मा गांधी समर्थित पट्टाभि सीतारमैया को हराकर सुभाष चन्द्र बोस के राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी और उनके बीच मतभेद की परिणति सुभाष बाबू के फारवर्ड ब्लाक के गठन के रूप में हुई, जिसकी स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। ऐतिहासिक दृष्टि यह बात भी सदैव याद की जाएगी  कि श्री सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रा आंदोलन में जबलपुर सेन्ट्रल जेल में भी रहे हैं।

‘खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी‘ कविता की रचयिता सुभद्रा कुमारी चौहान, व्यंग्य विधा के जनक हरिशंकर परसाई जैसे साहित्यकारों की नगरी जबलपुर में ख्यातिलब्ध व्यक्तित्वों की कमी नहीं रही। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र, मध्य प्रदेश विधान सभा के अध्यक्ष कुंजीलाल दुबे, सेठ गोविन्ददास, राजर्षि परमानन्द भाई पटेल, राजस्थान के पूर्व राज्यपाल निर्मल चंद जैन, साहित्य मनीषी रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल‘ एवं मध्य प्रदेश विधान सभा अध्यक्ष श्री ईश्वरदास रोहाणी का नाम कौन नहीं जानता।

जबलपुर की माटी और संस्कृति में पल्लवित आचार्य रजनीश (ओशो) एवं महर्षि महेश योगी विश्वविख्यात विभूतियाँ हैं। सम्पूर्ण भारत के डाकतार विभाग में पिन कोड अर्थात पोस्टल इन्डेक्स नंबर की प्रणेता भी जबलपुर की ही श्रीमती चौरसिया थीं। मध्य प्रदेश राज्य की विद्युत कंपनियों के मुख्यालय, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, पश्चिम-मध्य रेलवे जोन मुख्यालय, जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय एवं आयुध निर्माणियों का यह नगर देश में अपना विशेष स्थान रखता है।

उपनगरीय क्षेत्र गढ़ा में पर्वत श्रृंखला पर स्थित जैन मंदिर समूह एवं नीचे नंदीश्वर द्वीप सहित कांग्रेस अधिवेशन की स्मृति में निर्मित गांधी स्मारक कमानिया गेट, त्रिपुरी कांग्रेस स्मारक, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय भवन, गोकुलदास धर्मशाला आदि इमारतें आज भी वैभव एवं वास्तुकला के प्रमाण हैं। सुभाष चन्द्र बोस, विनोबा भावे, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु की अनेक प्रवासों की स्मृतियाँ संजोए जबलपुर आज भी राजनीति, साहित्य और संस्कारों की निजी पहचान बनाए हुए हैं।

© डॉ विजय तिवारी ‘किसलय’

पता : ‘विसुलोक‘ 2429, मधुवन कालोनी, उखरी रोड, विवेकानंद वार्ड, जबलपुर – 482002 मध्यप्रदेश, भारत
संपर्क : 9425325353
ईमेल : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments