श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

? अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस ?

‘सारा जगत एक रंगमंच है और सारे स्त्री-पुरुष केवल रंगकर्मी।’

यह वाक्य लिखते समय शेक्सपिअर ने कब सोचा होगा कि शब्दों का यह समुच्चय, काल की कसौटी पर शिलालेख सिद्ध होगा।

जिन्होंने रंगमंच शौकिया भर किया नहीं अपितु रंगमंच को जिया है, वे जानते हैं कि पर्दे के पीछे भी एक मंच होता है। यही मंच असली होता है। इस मंच पर कलाकार की भावुकता है, उसकी वेदना और संवेदना है। करिअर, पैसा, पैकेज की बनिस्बत थियेटर चुनने का साहस है। पकवानों के मुकाबले भूख का स्वाद है।

फक्कड़ फ़कीरों का जमावड़ा है रंगमंच। समाज के दबाव और प्रवाह के विरुद्ध यात्रा करनेवाले योद्धाओं का समवेत सिंहनाद है यह रंगमंच।

इस अनहद नाद में अपना स्वर मिलाने वाले हर रंगकर्मी को नमन।

अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस की हार्दिक शुभकामनायें।

  – संजय भारद्वाज

? संजय दृष्टि – महाकाव्य  ?

तुम्हारा चुप,

मेरा चुप,

चुप लम्बा खिंच गया,

तुम्हारा एक शब्द,

मेरा एक शब्द,

मिलकर महाकाव्य रच गया!

©  संजय भारद्वाज

(कवितासंग्रह ‘योंही’ से।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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माया कटारा

अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस की हार्दिक बधाई – रंगकर्मिता आपकी रगों में समाई हुई है रंगकर्मी ! एक भिखारिन की मौत की रंगमंचीय प्रशंसा दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रहे – अनंत शुभेच्छाएँ …..

अलका अग्रवाल

दोनों के शब्दों के कारण रचा गया महाकाव्य। वाह!अद्भुत परिकल्पना।

Sanjay k Bhardwaj

हृदय से धन्यवाद आदरणीय।

subedar pandey kavi atmanand

आपके भीतर रंगकर्मिता ही नहीं,रंगधर्मिता भी है,
आप आप विभिन्न विधाओं के माध्यम से भावों के कुशल चितेरे है तथा शब्दबिंब गढ़ने में आपको महारत हासिल है उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए बधाई अभिनंदन आदरणीय श्री आपका।

Sanjay k Bhardwaj

हृदय से धन्यवाद आदरणीय।