श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपके द्वारा पुस्तक की समीक्षा “प्रकृति की पुकार”।
आप साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। )
☆ पुस्तक समीक्षा ☆ प्रकृति की पुकार – संपादक- डॉक्टर सूरज सिंह नेगी, डॉक्टर मीना सिरोला ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
पुस्तक- प्रकृति की पुकार
संपादक- डॉक्टर सूरज सिंह नेगी, डॉक्टर मीना सिरोला
प्रकाशक- साहित्यागार, धमाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर (राज)
पृष्ठ संख्या- 340
मूल्य- ₹500
सभी सुनें प्रकृति की पुकार
प्रकृति अमूल्य है। हमें बहुत कुछ देती है। जिसका कोई मोल नहीं लेती है। यह बात अस्पताल में कई मरीज बीमारी के दौरान जान पाए हैं। 10 दिन के इलाज में ऑक्सीजन के ₹50000 तक खर्च करने पड़े हैं। यही ऑक्सीजन प्रकृति हमें मुफ्त में देती है। जिसका कोई मोल नहीं लेती है। यह हमारे लिए सबसे अनमोल उपहार है।
तालाबंदी यानी लॉकडाउन के इसी दौर में नदियां स्वत: ही शुद्ध हुई है। हम लाखों रुपए खर्च कर उसे शुद्ध नहीं कर पाए थे। मगर तालाबंदी यानी लॉकडाउन ने इसे संभव कर दिया। कल-कल करती गंगा साफ-सुथरी हो गई। उसकी स्वच्छता अद्भुत थी। मगर तालाबंदी खत्म होते ही नदिया पुन: गंदी होना शुरू हो गई है।
सामान्य दिनों में हमें दूर की चीजें साफ दिखाई नहीं देती हैं। तालाबंदी ने ही वायु को शुद्ध कर दिया था। हवा में तैरती गंदगी कम हो गई थी। बहुत दूर की चीजें साफ दिखाई देने लगी थी।
यह सब हमारी प्रकृति के बदलते स्वरूप के कारण संभव हुआ था। तालाबंदी के दौरान वाहन बंद हो गए थे। ध्वनि और वायु प्रदूषण कम हो गया था। इसका असर प्रकृति पर दिखने लगा था।
प्रकृति के इसी दौर में, उसकी पुकार को संपादक सूरजसिंह नेगी ने सुना और महसूस किया। उनके मन में 5 जून 2019 के दिन यानी विश्व पर्यावरण दिवस पर यही पुकार मस्तिष्क में गूंजी। तब उन्होंने भूली-बिसरी यादें पाती को पुनर्जीवित करने वाली अपनी मुहिम में इसी प्रकृति की पुकार को भी अपना अभियान बनाया।
स्मरण रहे कि नेगी जी ने राजस्थान में पाती प्रतियोगिता की मुहिम चला रखी है। जिसमें कई विद्यालय के छात्र, अनेक कनिष्ठ और वरिष्ठ रचनाकार इसमें प्रतिभाग कर सम्मान प्राप्त कर चुके हैं। उन्होंने इसी अभियान में ‘प्रकृति की पाती मानव के नाम’ को शामिल किया। प्रतियोगिता आयोजित की। ताकि मानव मन को प्रकृति की पुकार को सुना जा सके। ताकि हम मानव अपने-अपने स्तर पर उसकी आवाज सुनकर उसे सजा और संवार सकें।
बस! इसी को पाती प्रतियोगिता के रूप में रूपांतरित किया गया। इसमें कनिष्ठ और वरिष्ठ- दो वर्ग में बांटा। फलस्वरूप इस प्रतियोगिता को अच्छा प्रतिसाद मिला। 250 से अधिक पत्रों में से 118 पत्रों का चयन कर “प्रकृति की पुकार” नामक पुस्तक में चयनित पत्रों को स्थान दिया गया।
प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहित हरेक पाती अनोखें और अलग अंदाज में लिखी गई है। प्रकृति ने रचनाकार को आत्मसात कर मानव के नाम अनोखी पाती लिखी है। इसमें कई रंग, कई भाव, कई भंगिमा और कई आयाम प्रस्तुत किए गए हैं। जिसमें विविध रंग भरे हुए हैं। यह सब रंग हमें भातें और सुहाते हैं। साथ ही रुचिका लगते हैं। बस पढ़ने, गुनने और महसूस करने की जरूरत है।
प्रस्तुत पुस्तक उसी पाती मुहिम का अंग है। इसमें रचनाकारों द्वारा प्रकृति की पाती मानव के नाम लिखी गई है। इसी में प्रकृति अपने मन की बात, मानव के द्वारा कह रही है।
आज की आवश्यकता को देखते हुए “प्रकृति की पुकार” बहुत ही आवश्यक पुस्तक है। इसका संपादन सूरजसिंह नेगी व डॉक्टर मीना सिरोला ने किया है। पुस्तक का आवरण पृष्ठ आकर्षक है। त्रुटि रहित छपाई, बेहतरीन आवरण पृष्ठ, ऊत्तम साजसज्जा, हार्डकवर बाइंडिंग और 340 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ₹500 वाजिब है। प्रकृति व मानव की भलाई की दृष्टि से यह बहुत ही उपयोगी पुस्तक है। जिसे समस्त रचनाकारों को ससम्मान भेंट किया गया है। यह पुस्तक सभी के लिए अनुपम उपहार है।
आशा है कोरोना काल में देखी व महसूस की गई विसंगतियों को दूर करने के लिए इस पुस्तक का सभी हार्दिक स्वागत करेंगे। ऐसा विश्वास है। इस पुस्तक के संयोजन के लिए सभी बधाई के पात्र हैं।
समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226
मोबाइल – 9424079675
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈