श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। आज प्रस्तुत है आपके द्वारा पुस्तक की समीक्षा “बूझोवल”।
☆ पुस्तक समीक्षा ☆ बूझोवल – रचनाकार – महादेव प्रेमी ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
पुस्तक- बूझोवल
रचनाकार- महादेव प्रेमी
प्रकाशक- किताबगंज प्रकाशन, रेमंड शोरूम, राधा कृष्ण मार्केट, एसबीआई के पास, गंगापुर सिटी- 322201 जिला -सवाई माधोपुर (राजस्थान)
पृष्ठ संख्या- 116
मूल्य- ₹195
पहेलियों का इतिहास काफी पुराना है. जब से मानव ने इशारों में बातें करना सीखा है तब से यह अभिव्यक्त होते आ रहे हैं. आज भी ये इशारें विभिन्न रूपों में प्रचलित है. जब घर पर कोई मेहमान आता है तब मां अपने बच्चों को इशारा कर के चुप करा देती है. बच्चे मां का इशारा तुरंत समझ जाते हैं.
अधिकांश बाल पत्रिकांए इन्हीं इशारों पर आधारित बाल पहेलियां प्रकाशित करती है. इन में वर्ग पहेली, प्रश्न पहेली, चित्र पहेली और गणित पहेलियां मुख्य होती है. कई किस्सेकहानियों में भी पहेलियां प्रयुक्त होती आई है. अकबर-बीरबल, विक्रम-बेताल के किस्से पहेलियों पर ही आधारित है. ऋग्वेद, बाइबिल, महाभारत, संस्कृत साहित्य आदि में पहेलियां भरी हुई है.
पहेलियां पूछना और बूझाना हमारी सांस्कृतिक परंपरा रही है. दादीनानी से हम ने कई पहेलियां सुनी है. वे आज भी हमें याद है. इसी तरह संस्कृत साहित्य में भी कई रोचक पहेलियां प्रयुक्त हुई है. इन्हें प्रहेलिका कहते हैं. इन प्रहेलिका में पहेलियों के गूढ़ रूप का ज्यादा प्रचलन रहा है. संस्कृत की एक पहेली देखिए-
श्यामामुखी न मार्जारी, द्विजिह्वा न सर्पिणी
पंचभर्ता न पांचाली, यो जानाति स पंडित.
यानी काले मुखवाली होते हुए बिल्ली नहीं है. दो जिह्वा होते हुए भी सर्पिणी नहीं है. पांच पति वाली होते हुए भी द्रोपदी नहीं है. जो इस का नाम बता देगा वह पंडित यानी ज्ञानवान कहलाएगा. जिस का उत्तर कलम है. यानी पुराने जमाने की नीब वाल पेन. जिस की नीब में बीच में चीरा लगा होता है.
ऐसी कई पहेलियों ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया है. अमीर खुसरों का नाम पहेलियों के लिए ही प्रसिद्ध है. इन के अलावा अनेक साहित्यकारों ने पहेलियां लिखी है. मगर, खुसरों को छोड़ दें तो अधिकांश साहित्यकारों ने कथासाहित्य के साथसाथ पहेलियोें की रचनाएं की है.
पारंपरिक रूप से पहेलियां मानव की बुद्धिलब्धि जानने और उस की क्षमता विकसित करने का एक साधन रही है. ये हमेशा ही सरलसहज, कठिन और गूढ़ अर्थ में प्रयुक्त होती रही है. इन पहेलियों में किसी वस्तु के गुण, रूप या उपयोगिता का वर्णन संकेत में किया जाता है. इसी के आधार पर इस का उत्तर बताना होता है.
ये पहेलियों सदा से मानव को चुनौतियां प्रस्तुत करती रही है. इस रूप में और आधुनिक समय में भी इस का महत्व बना हुआ है. पुराने समय में यह राजामहाराज के लिए मनोरंजन और आनंद उठाने के लिए उपयोग में आती थी. वर्तमान में इस का उपयोग मानव मस्तष्कि के विकास और उस की क्षमता बढ़ाने और उस की क्षमता जानने के लिए उपयोग हो रहा है.
इसी परिपेक्ष्य में ‘महादेव प्रेमी’ ने अपनी पुस्तक- बूझोवल, में पहेलियां प्रस्तुत कर के इस प्रयास में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है. प्रस्तुत पुस्तक में आप की पहेलियां सरल और गूढ़ दोनों रूपों में लिख कर प्रस्तुत की है. इस में पहेलियां कई रूपों में प्रयुक्त हुई है.
पहेली के वाक्य में छूपे उत्तर की पहेलियां अपने विशिष्ट रूप के कारण ज्यादा सहज व सरल होती है. इस में उत्तर रूपी शब्द पहेलियों में ही व्यक्त होता है. उसे ढूंढ कर या बूझ कर पहेली का उत्तर बताना होता है. बस इस के लिए थोड़ा सा दिमाग लगाना होता है. उत्तर सामने होता है. जिस से ज्यादा आनंद की प्राप्ति होती है.
उल्टा किया तो हो गया राजी
डाल दिया तो बन गई भाजी.
करते हैं सब ही उपयोग मेेरा
क्या मूल्ला है क्या काजी.
यह इसी प्रकार की पहेली है. इस का उत्तर इसी पहेली में छूपा हुआ है. ये पहेलियां सरल व सहज होती है. जिन्हें पढ़ने में आनंद की अनुभूति होती है. इस अनुभूति के कारण व्यक्ति पहेलियों को पढ़ते चले जाता है.
छज्जे जैसे कान है मेरे
सब से लंबी नाक .
खंबे जैसे पैर है मेरे
बच्चों जैसी आंख.
इस पहेली में सहजता से उत्तर का पता चल जाता हैं. उत्तर का पता चलते ही मन प्रसन्न हो जाता है. हम भी कुछ जानते हैं यह भाव अच्छा लगता है. इस से पहेलियां पढ़ने की उत्सुकता बढ़ जाती है.
तीन अक्षर का मेरा नाम
उल्टा-सीध एक समान.
मेरे साथ ही आप सभी के
बनते रहते हैं पकवान.
इसे पहेली को बूझ कर देखिए. यदि उत्तर पता चल जाए तो मन प्रसन्न हो जाएगा. नहीं चले तो कोई बात नहीं, आप का मन-मस्तिष्क इस का उत्तर खोजने के लिए प्रेरित हो जाएगा. जब तक उसे इस का उत्तर नहीं मिलेगा तब तक वह उत्तर खोजने के प्रयास में लगा रहेगा.
पहेलियां मस्तिष्क को सक्रिय और क्रियाशील रखने में मुख्य भूमिका निभाती है. संकेताक्षर में लिखी पहेलियां मन को बहुत लुभाती है. इस से पढ़ने वाले का आत्मविश्वास बढ़ता है. इसी संदर्भ में यह पहेली देखिए-
धोली धरती काला बीज
बौने वाला गाए गीत.
इस पहेली को पढ़ कर आप मन ही मन मुस्करा रहे होंगे. इस बात का पता है मुझे. हम सब यही चाहते हैं कि आप कि यह मुस्कान सदा बनी रही. क्यों कि इस पुस्तक के रचनाकार ने अपनी पुस्तक का श्रीगणेश कुछ इसी तरह की पहेली के साथ किया है.
नर शरीर धारण किया
मुख किया पशु समान.
प्रथम पूज्य देवता भये
पहेली है आसान.
कुछ इसी तरह की आसान और आनंददायक पहेलियों इस पुस्तक में प्रस्तुत की गई है. पहेलियों की भाषा सरल और सहज है. इन पहेलियां में रूप, गुण और उस के स्वरूप के वर्णन कर के संकेत रूप में इन का लिखा गया है.
इस अर्थ में प्रस्तुत पुस्तक के रचनाकार ने अच्छी पहेलियां प्रस्तुत की है. सभी पहेलियां बच्चों के साथ बड़ों के लिए उपयोगी है. कहींकहीं भाषा का प्रवाह बाधित हुआ है. जिसे संपादक ने अपनी कुशलता से दूर कर दिया गया हे.
इस पुस्तक का प्रकाशन किताबगंज द्वारा किया गया है. इस रूप में इस की साजसज्जा और प्रस्तुतिकरण बहुत बढ़िया है. 116 पृष्ठ की पुस्तक का मूल्य ₹195 है. उपयोगिता की दृष्टि से वाजिब है. कुल मिला कर पुस्तक बहुउपयोगी बनी है. इस का साहित्य के क्षेत्र में तनमनधन से स्वागत किया जाएगा. ऐसा विश्वास है.
समीक्षक- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’
04/05/2019
पोस्ट ऑफिस के पास, रतनगढ़, जिला- नीमच (मध्य प्रदेश) पिनकोड-458226
ईमेल – [email protected]
मोबाइल – 9424079675
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈